
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में पूश्चिमी यूपी के बाद अब बुंदेलखंड, अवध और पूर्वांचल में सियासी तपिश बढ़ गई है. बसपा को जो भी सीटें पिछले चुनाव में मिली थीं, उनमें से ज्यादातर पूर्वांचल के इलाके की थीं. पूर्वांचल में इस बार सियासी लड़ाई काफी जबरदस्त हो गई है, जहां सपा-बीजेपी के बागी बसपा के हाथी पर सवार होकर चुनावी मैदान में उतरे हैं. बुंदेलखंड, अवध और पूर्वांचल इलाके में बसपा ने मुकाबला त्रिकोणीय बना दिया है.
बुंदेलखंड और यादव बेल्ट की 59 सीटों पर तीसरे चरण में 20 फरवरी को चुनाव हैं. इसके बाद फिर अवध और पूर्वांचल इलाके की सीटों पर चुनाव होने हैं. सपा में चुनाव से ठीक पहले बीजेपी और बसपा के कई नेता शामिल हुए. सपा ने इनमें से ज्यादातर को जिताऊ उम्मीदवार मानते हुए उन्हें टिकट भी दे दिया है. इसका साइड इफेक्ट यह रहा कि अवध और पूर्वांचल में उम्मीदवारों की घोषणा होते ही सपा के कई पुराने नेता बागी हो गए और उन्होंने बसपा से टिकट थामकर चुनावी मैदान में उतर गए हैं.
बुंदेलखंड में सपाई 'हाथी' पर सवार
बुंदेलखंड, अवध और पूर्वांचल की कई सीटों पर बसपा से मैदान में उतरे बागी सपा और बीजेपी से सीधा मुकाबला करते भी दिख रहे हैं. ललितपुर सीट से चंद्र भूषण सिंह बुंदेला को सपा से टिकट मिलने की उम्मीद थी, लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला तो बसपा ताल ठोक रहे हैं. मौरानीपुर सीट पर सपा ने बसपा से आए तिलकचंद अहिरवार तो बसपा ने रोहित रतन अहिरवार को मैदान में उतारा है. महोबा में पूर्व विधायक सिद्ध गोपाल साहू का सपा ने टिकट कटा तो उनका भाई संजय साहू बसपा से मैदान में उतर गया है.
सपा के गढ़ में बागी बने बड़े चुनौती
सपा के गढ़ यादव बेल्ट में भी पूर्व सपाइयों पर मायावती ने दांव लगा रखा है. मसलन एटा के पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष व पूर्व विधायक अजय यादव को सपा ने टिकट नहीं दिया तो बसपा से टिकट लेकर चुनावी ताल ठोक रखी है. फिरोजाबाद सदर से सपा से अजीम भाई दावेदार थे, टिकट नहीं मिला तो बसपा में शामिल हो गए. उनकी पत्नी शाजिया अजीम चुनावी मैदान में हैं. इटावा सदर से रामगोपाल यादव के करीबी कुलदीप गुप्ता सपा से टिकट की दौड़ में पीछे रह गए, तो बसपा ने उम्मीदवार बना उनकी आरजू पूरी कर दी.
सपा के लिए बसपा बनी सिरदर्द
सेंट्रल यूपी में भी कई सीटों पर बागी हाथी पर सवार होकर सपा के लिए मुसीबत बन गए हैं. अयोध्या के रुदौली से सपा के टिकट नहीं मिलने पर दो बार विधायक रहे अब्बास अली जैदी रुश्दी मियां बसपा के टिकट पर मैदान में हैं. टांडा में शबाना खातून को टिकट नहीं मिला, तो वह बसपा से मैदान में उतर गईं. मड़ियांहू में सपा से टिकट न मिलने पर पूर्व विधायक श्रद्धा यादव बसपा से मैदान में हैं. प्रयागराज की बारा सीट को भाजपा ने अपना दल (एस) के खाते में डाल दी तो वहां से मौजूदा विधायक अजय कुमार का टिकट कट गया. चुनाव मैदान में उनके उतरने की इच्छा बसपा ने अपने टिकट पर पूरी कर दी.
पूर्वांचल में बसपा मुख्य फाइट में
पूर्वांचल के फाजिलनगर सीट पर सपा ने बीजेपी से आए स्वामी प्रसाद मौर्य को मैदान में उतारा, तो सपा के पूर्व जिलाध्यक्ष इलियास अंसारी बागी हो गए हैं. वह अब बसपा से चुनावी मैदान में हैं. बीजेपी के बरहज से विधायक सुरेश तिवारी का टिकट काटा तो बसपा का दामन थाम लिया और रुद्रपुर सीट से ताल ठोक दी है. गाजीपुर की जहूराबाद सीट से भी अखिलेश सरकार में कैबिनेट मंत्री रहीं शादाब फातिमा को भी बसपा ने ओम प्रकाश राजभर के खिलाफ उतार रखा है. नौतनवां से बसपा ने अमन मणि त्रिपाठी को उतार रखा है.
मायावती ने बागियों को टिकट दिया
दरअसल, उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बसपा के तमाम कद्दावर नेता पार्टी छोड़कर चले गए हैं या फिर उन्हें मायावती ने बाहर का रास्ता दिखा दिया है. वहीं, सूबे में बीजेपी और सपा के बीच सिमटते चुनाव के बीच बसपा के कई नेता हाथी से उतरकर साइकिल पर सवार हो गए. ऐसे में मायावती के सामने 2022 के चुनाव में अपने सियासी वजूद को बचाए रखने की चुनौती खड़ी हो गई है, जिसके चलते उन्होंने सपा और दूसरे पार्टियों के कद्दावर नेताओं को टिकट देकर चुनावी रणभूमि में उतारकर मुकाबले को त्रिकाणीय बना दिया है.
बसपा ने आखिरी मौके पर आए बीजेपी व सपा के चेहरों को न केवल टिकट दिया, बल्कि उनके लिए पहले से अपने घोषित प्रत्याशी भी बदल दिए. बसपा ने इस रणनीति और बागियों के सहारे सपा-भाजपा की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. पार्टी को लगता है कि दूसरे दलों के प्रभावी चेहरों को टिकट देने से चुनाव में उसकी स्थिति बेहतर हो सकती है. कोर वोट के साथ दूसरे दलों के असंतुष्ट वोट को साधने में भी उसे मदद मिलेगी. प्रत्याशी अगर अपने साथ समर्थक वर्ग को भी साध लेगा तो जीत की संभावनाएं बढ़ जाएंगी. ऐसे में देखना है कि मायावती का यह दांव कितना सफल रहता है?