
क्रांति धरा मेरठ का इतिहास बहुत पुराना और समृद्ध रहा है. प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भी मेरठ ने अहम भूमिका निभाई थी. मेरठ भी कभी कांग्रेस का गढ़ रहा है. मेरठ में पड़ने वाली मेरठ शहर सीट भी कांग्रेस का गढ़ मानी जाती थी लेकिन अब हालात कुछ अलग हैं. बदलते समय के साथ ये सीट भी कांग्रेस के हाथ से निकलती चली गई. कांग्रेस यहां कमजोर होती गई और अब ये सीट भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के लिए बेहतर मानी जाती है.
मेरठ शहर विधानसभा सीट के तहत मेरठ का एक बड़ा पुराना हिस्सा भी आता है. यहां कई पुराने मंदिर और स्कूल हैं तो सूरजकुंड पार्क, चंडी देवी मंदिर और बाले मियां की मजार भी इसी विधानसभा क्षेत्र में आते हैं. मेरठ शहर को रावण की ससुराल भी कहा जाता है. प्रचलित कथा के मुताबिक चंडी देवी मंदिर में रावण की पत्नी मंदोदरी पूजा किया करती थी. इसी विधानसभा क्षेत्र के कुछ इलाके में वह क्षेत्र भी आता है जहां मंदोदरी के पिता मय दानव का राजमहल हुआ करता था.
इसी विधानसभा क्षेत्र के तहत शहर की जामा मस्जिद, टाउन हॉल, जली कोठी, सोहराब गेट बस स्टैंड, भूमिया का पुल, ब्रह्मपुरी, खैर नगर, कोतवाली, पुरानी तहसील और यूनिवर्सिटी जैसे इलाके आते हैं. मेरठ शहर विधानसभा सीट मेरठ नगर निगम के क्षेत्र में आती है साथ ही मेरठ तहसील क्षेत्र भी इसी विधानसभा में है. इस विधानसभा क्षेत्र में बीच-बीच में हैरान करने वाले सियासी रंग भी देखने को मिले हैं.
राजनीतिक पृष्ठभूमि
सत्ताधारी बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके लक्ष्मीकांत वाजपेयी मेरठ शहर विधानसभा क्षेत्र से चार बार विधायक रहे हैं. हालांकि, लक्ष्मीकांत वाजपेयी को इस विधानसभा क्षेत्र से हार का मुंह भी देखना पड़ा है. कभी जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हाजी अखलाक कुरैशी ने लक्ष्मीकांत वाजपेयी को चुनावी शिकस्त दी तो कभी वाजपेयी को समाजवादी पार्टी (सपा) के रफीक अंसारी से भी मात मिली. यूडीएफ के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे हाजी याकूब ने भी लक्ष्मीकांत वाजपेयी को हराया.
आजादी के बाद इस सीट पर लगातार कांग्रेस कांग्रेस का कब्जा रहा. बाद में यह सीट बीजेपी के गढ़ में तब्दील होती गई. हालांकि, बीच-बीच में अन्य दलों के उम्मीदवार भी विजयी रहे. साल 1989 के चुनाव में लक्ष्मीकांत वाजपेयी पहली बार बीजेपी से विधायक निर्वाचित हुए. साल 1993 में जनता दल के टिकट पर मैदान में उतरे हाजी अखलाक ने वाजपेयी को हराया. 1996 और 2002 में लक्ष्मीकांत वाजपेयी विजयी रहे लेकिन 2007 में यूपीयूडीएफ के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे हाजी याकूब ने उन्हें हरा दिया. 2012 में वाजपेयी मेरठ शहर सीट से चौथी दफे विधानसभा पहुंचने में सफल रहे.
2017 का जनादेश
साल 2017 के विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत के साथ बीजेपी यूपी की सत्ता पर काबिज हो गई लेकिन मेरठ शहर विधानसभा सीट पर उसे हार मिली. मेरठ शहर सीट से सपा के रफीक अंसारी ने यूपी बीजेपी के पूर्व विधायक लक्ष्मीकांत वाजपेयी को हरा दिया था. रफीक को 1 लाख 3 हजार 217 वोट मिले जबकि लक्ष्मीकांत वाजपेयी को 74 हजार 448 वोट मिले थे.
सामाजिक ताना-बाना
मेरठ शहर क्षेत्र में अधिकतर आबादी पढ़े-लिखे लोगों की है. यहां पंजाबी और दलित वोटर भी हैं. मुस्लिम समुदाय की आबादी भी अच्छी तादाद में है. पिछले कुछ चुनाव की बात करें तो यहां चुनावी मुकाबला बीजेपी और सपा के बीच ही रहा है. यहां व्यापारी वोटर भी निर्णायक भूमिका निभाते हैं. इस विधानसभा क्षेत्र में कुल तीन लाख से अधिक वोटर हैं.
मेरठ में ये हैं मुद्दे
मेरठ शहर विधानसभा क्षेत्र में सबसे बड़ा मुद्दा साफ सफाई, अपराध, लड़कियों के साथ होने वाला अपराध, सड़कें, रोजगार, बिजली, शिक्षा जैसी समस्याएं मुद्दा हैं. मेरठ को स्पोर्ट सिटी के नाम से भी जाना जाता है लेकिन यहां बड़ी तादाद में कैंची कारोबार भी है. कैंची उद्योग के छोटे-छोटे कारखाने लगे हैं और यहां की कैंची पूरी दुनिया में मशहूर है. हालांकि, पिछले कुछ सालों से यह कारोबार गिरता ही जा रहा है. मेरठ शहर की तंग गलियां और तंग सड़कें, अतिक्रमण से पूरे शहर में जाम की स्थिति रहती है जो बड़ा मुद्दा है. मेरठ शहर मैं घंटाघर का इलाका भी आता है जो मशहूर है लेकिन जाम की समस्या विकराल है.