
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने एक बार फिर से मुस्लिम-यादव (एमवाई) का अपना पुराना समीकरण आजमाया है. सपा ने सोमवार को 159 प्रत्याशियों की जो सूची जारी की है, उसमें 31 मुसलमान और 20 यादव हैं. इसके अलावा पिछड़े वर्गों में मौर्य, कुर्मी, गुर्जर, निषाद जाट को प्राथमिकता दी गई है. साथ ही आठ ब्राह्मण, पांच ठाकुर, छह वैश्य और दो सिख समुदाय के प्रत्याशी बनाए गए हैं.
मुलायम की राह पर अखिलेश
अखिलेश यादव ने टिकट बंटवारे में भले ही ठाकुर समुदाय को खास तवज्जे नहीं दी है, लेकिन अपने बेस वोट का पूरा ख्याल रखा है. सूबे में यादव और मुस्लिम सपा का कोर वोट माना जाता है. इसी मुस्लिम-यादव समीकरण से मुलायम सिंह पिछले ढाई दशक से प्रदेश की राजनीति में मुख्य ध्रुव बने रहे हैं. मुलायम की सियासी विरासत संभाल रहे अब अखिलेश यादव भी उनकी राह पर चल पड़े हैं.
सपा मुस्लिमों व यादवों को साधने के साथ ही पिछड़ों, अति पिछड़ों को भी जोड़ने की कवायद की है. इसीलिए बड़ी संख्या में गैर-यादव ओबीसी कैंडिडेट बनाए गए हैं, लेकिन वन थर्ड सीटें यादव-मुस्लिम के खाते में गई है. 159 सीटों में से 51 सीट पर यादव और मुस्लिम प्रत्याशी हैं. इससे साफ समझा जा सकता है कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव किसी भी सूरत में अपने कोर वोटबैंक को दरकिनार नहीं करना चाहते हैं.
सपा ने 31 मुस्लिम प्रत्याशी दिए
अखिलेश यादव ने जेल में बंद सपा सांसद आजम खान को उनकी परंपरागत सीट रामपुर और उनके बेटे अब्दुल्ला आजम खान को स्वार-टांडा से मैदान में उतारा है. ऐसे पश्चिमी यूपी और रुहेलखंड के मुस्लिम समीकरण को देखते हुए 31 सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं.
हालांकि, मुजफ्फनगर, बुलंदशहर, गाजियाबाद, बदायूं, पीलीभीत और आगरा जैसे मुस्लिम बहुल जिले में अखिलेश यादव ने एक भी मुस्लिम प्रत्याशी नहीं दिए हैं. वहीं, अखिलेश ने अपने यादव समुदाय का पूरा ख्याल रखा है, जिसके तहत यादव बेल्ट की तमाम सीटों पर यादव प्रत्याशी तो उतारा ही है साथ ही उन सीटों पर भी टिकट दिए हैं, जहां पर कोई खास वोटबैंक नहीं है.
उदाहारण के तौर पर बुलंदशहर की सिकंदराबाद और अलीगढ़ की अतरौली सीट पर यादव प्रत्याशी दिए हैं, जहां यादव समुदाय को कोई खास वोटबैंक नहीं है. बदायूं जिले में 30 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम मतदाता है, लेकिन वहां पर यादव और मौर्य समुदाय ही प्रत्याशी बनाए गए हैं. ऐसे ही पीलीभीत में कुर्मी समुदाय के प्रत्याशी पर भरोसा जताया है, जहां पर मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका में है.
सपा के 20 यादव कैंडिडेट
करहल से अखिलेश यादव, असमौली से पिंकी सिंह, गुन्नौर से राम खिलाड़ी सिंह, सिकंदराबाद से राहुल यादव, अतरौली से वीरेश यादव, जसराना से सचिन यादव, सिरसागंज से सर्वेश सिंह, अलीगंज से रामेश्वर सिंह यादव, एटा से जुगेन्द्र सिंह यादव, मैनपुरी से राजकुमार उर्फ राजू यादव, सहसवान से बृजेश यादव, शेखूपुर से हिमांशु यादव, दातगंज से अर्जुन सिंह,पुरवा से उदयराज, अमृतपुर से जितेन्द्र यादव, छिबरामऊ से अरविन्द यादव, जसवंतनगर से शिवपाल सिंह यादव (प्रसपा), दिबियापुर से प्रदीप यादव, भोगनीपुर से नरेन्द्र पाल सिंह और बबीना से यशपाल यादव को प्रत्याशी बनाया गया है.
पूर्वांचल और अवध सीटें बाकी
पूर्वांचल और सेंट्रल यूपी की सीटों पर अभी कैंडिडेट नहीं उतारे गए हैं. पूर्वांचल के जौनपुर, आजमगढ़, गोरखपुर, गाजीपुर, बलिया, देवरिया, संत कबीरनगर, रायबरेली, बहराइच, प्रतापगढ़, सुल्तानपुर, मिर्जापुर, भदोही, प्रयागराज जिले में यादव मतदाता अच्छी खासी संख्या में है. ऐसे में इन जिलों की सीटों पर भी यादव प्रत्याशी उतारे जाने की संभावना है. ऐसे में यादव प्रत्याशियों का आंकड़ा बढ़ सकता है.
दरअसल, यूपी में 20 फीसदी के करीब मुस्लिम मतदाता हैं तो 8 फीसदी के करीब यादव मतदाता हैं. सपा के यह दोनों कोर वोटबैंक माने जाते हैं. ऐसे में सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने अपने एम-वाई समीकरण का टिकट वितरण में पूरा ख्याल रखा है, लेकिन साथ ही ठाकुर समुदाय के प्रत्याशियों को कम कर ब्राह्मण और दूसरी ओबीसी जातियों के लोंगो पर भरोसा जताया है. ऐसे में देखना है कि अखिलेश यादव का यह फॉर्मूला 2022 चुनाव में कितना कारगर होता है.