
किसी भी पर्व या त्यौहार के दौरान उसपर बहुत सारे लोगों की रोजी-रोटी निर्भर हो जाती है और लोगों को रोजगार भी मिलता है. ठीक उसी तरह लोकतंत्र के महापर्व चुनाव में भी होता रहा है. लेकिन कोरोना महामारी के चलते चुनाव आयोग की ओर से रैली सभाओं पर काफी हद तक रोक लगाई गई है और सीमित संख्या में ही कार्यक्रम को करने की अनुमति दी जा रही है. इसका असर पिछले 2 वर्षों में कोरोना की मार झेल रहे प्रिंटिंग प्रेस और ग्राफिक्स प्रिटिंग वालों पर भी पड़ रहा है और जहां चुनाव प्रचार सामग्री छापने को लेकर सांस लेने की भी फुर्सत नहीं हुआ करती थी, वहां सन्नाटा छाया हुआ है.
लोकतंत्र का महापर्व चुनाव किसी महोत्सव से कम नहीं था, लेकिन करोना ने जैसे सभी जगह की सूरत बदल दी. ठीक वैसे ही इस चुनावी पर्व की भी तस्वीर बदल गई है. चुनाव के दौरान पूर्वांचल की राजधानी माने जाने वाले वाराणसी में न केवल बनारस की सभी आठों विधानसभाओं की प्रचार सामग्रियों की छपाई का काम जोरों पर हुआ करता था, बल्कि आसपास के अन्य जिलों से काम पटा रहता था. लेकिन इस बार चुनाव आयोग की ओर से रैली सभाओं पर काफी हद तक पाबंदी लगी हुई है. इसको देखते हुए प्रचार सामग्री की जरूरत ना के बराबर हो गई है और सारा प्रचार डिजिटल प्लेटफॉर्म पर ही चल रहा है. फ्लेक्स सहित अन्य प्रिंटिंग के काम करने वाले श्री काशी अन्नपूर्णा ग्रैफिक्स के मालिक चंद्रेश नारायण पांडे ने बताया कि प्रिंटिंग के सारे काम उनके यहां होते हैं. इस बार कड़ाई के चलते चुनाव में प्रचार सामग्री की छपाई का काम नहीं लिया गया है.
उन्होंने बताया कि जिस तरह से होली दीपावली दशहरा के पर्व के मौके पर कपड़े मिठाई की दुकानों पर भीड़ लगी रहती है. उसी तरह लोकतंत्र के पर्व चुनाव के दौरान उनकी दुकानों पर भी भीड़ हुआ करती थी. 6 माह पहले से ही चुनाव प्रचार सामग्री की तैयारी और छपाई शुरू हो जाती थी और उसके बावजूद भी डिमांड के मुताबिक सप्लाई नहीं हो पाती थी. आज के समय में स्थिति ऐसी है कि सारे स्टॉक धरे के धरे रह गए हैं और काम नहीं है. अगर कुछ चुनाव से संबंधित काम भी आ रहा है तो चुनाव आयोग की ओर से इतनी ज्यादा कड़ाई कर दी गई है कि उसको प्रत्याशी पूरा ही नहीं कर पा रहे हैं और हम भी सारा ब्यौरा डीएम ऑफिस में जमा नहीं कर पा रहे हैं. चंद्रेश ने आगे बताया कि उनकी जैसी छपाई वाले बनारस में 100 से ज्यादा लोग हैं और उनका एक संगठन भी है. अगर चुनाव से संबंधित काम आएगा और उसको शुरू भी किया जाएगा तो एक साथ मिलकर, नहीं तो नहीं किया जाएगा. अगर नियम सरल होते हैं तब तो काम संभव है वर्ना तो संभव नहीं है. कोरोना की वजह से पहले ही उनका काम ठप पड़ा हुआ था और अब रैली सभा पर लगी रोक के चलते और भी हालत खराब हो गई है. आलम यह है कि अपने कर्मचारियों को तनख्वाह तक नहीं दे पा रहे हैं.
एक अन्य ग्राफिक प्रिंटिंग का काम करने वाले ग्रैफिक्स मीडिया के मालिक प्रमोद पांडे ने बताया कि पहले चुनाव के काम को लेकर काफी मारामारी रहा करती थी. बहुत काम था. फ्लेक्स का काम तो बहुत बड़े स्तर पर होता था. माना जा रहा था कि कोरोना में हुए नुकसान की भरपाई इस बार चुनाव में हो जाएगी. लेकिन चुनाव आयोग ने जिस तरह से डिजिटल प्रचार को बढ़ावा दिया है, उसके चलते कहीं भी बैनर पोस्टर होर्डिंग का इस्तेमाल नहीं हो रहा है. जिसके चलते कोई काम आ भी नहीं रहा है. इसके अलावा नियम कानून में कड़ाई भी काफी कर दी गई है, जिसकी वजह से एक काम भी लेने में काफी हिचकिचाहट हो रही है. अगर नियम सरल होते हैं तब तो काम लिया जा सकता है नहीं तो नहीं. क्योंकि अभी आलम यह है कि जितना वे कमाई नहीं करेंगे उससे ज्यादा समय उन्हें चुनाव प्रचार सामग्री की छपाई का ब्यौरा जमा करने में लगा देंगे.
वही ग्राफिक्स डिजाइनर दीपक जायसवाल ने बताया कि चुनाव बहुत सारे देखे गए हैं, लेकिन अभी सारी प्रक्रिया ही बदल गई है. जिससे हम काफी दुखी हैं. पहले उनके यहां प्रत्याशियों की भीड़ हुआ करती थी और काम का दबाव भी चुनाव के वक्त हुआ करता था. रात दिन एक करके काम होता था. लेकिन आज के वक्त में काम है ही नहीं. आचार संहिता लग जाने के बाद इतनी ज्यादा कड़ाई और औपचारिकता है कि जिसको चाहकर भी पूरा नहीं किया जाता रहा है. प्रत्याशी चाहते हुए भी ऑर्डर नहीं दे पा रहे हैं. चुनाव को उनके धंधे के लोग एक पर्व के रूप में देखा करते थे, लेकिन जिला प्रशासन की ओर से इतनी ज्यादा कड़ाई कर दी गई है कि काम है ही नहीं. रैली सभा पर लगी रोक से भी काम नहीं आ रहा है. सारे पहले के ऑर्डर भी कैंसिल कर दिए गए हैं.
समाजवादी पार्टी के स्थानी नेता रविकांत विश्वकर्मा ने बताया कि इस बार निर्वाचन आयोग ने पूरी तरह से चुनाव प्रक्रिया ही बदल कर रख दी है. पहले खुले में कार्यक्रम हुआ करते थे, लेकिन इस बार कोविड प्रोटोकॉल को देखते हुए सारे चुनाव प्रचार का काम वर्चुअल हो चुका है. वह खुद बैनर पोस्टर होर्डिंग्स के जरिए इस वक्त चुनाव प्रचार में जुट जाया करते थे, लेकिन जो थोड़ा काम लेकर वह प्रिंटिंग प्रेस में जा भी रहे हैं तो प्रिंटिंग प्रेस वाले काम करने को तैयार नहीं हैं. निर्वाचन आयोग ने इतनी ज्यादा फॉर्मेलिटी रखी है यह बताकर लौटा दिया जा रहा है. कुल मिलाकर प्रिंटिंग प्रेस वाले भी निराश हो चुके हैं और राजनीतिक दल भी पब्लिक के बीच में ना जाकर वर्चुअल ही प्रचार करने के लिए मजबूर हैं.