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रामपुर में दो सियासी घरानों की 'शाही' जंग, आजम खान बाप-बेटे के सामने नवाब बाप-बेटे

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण में सभी की निगाहें रामपुर पर है, जहां पर आजम खान और नवाब परिवार के बीच सियासी वर्चस्व की जंग है. रामपुर सीट पर जेल में रहते हुए खुद आजम खान चुनाव लड़ रहे हैं तो स्वार टांडा सीट पर उनके बेटे अब्दुल्ला आजम हैं. वहीं,आजम के खिलाफ नवाब काजिम अली हैं तो अब्दुल्ला के खिलाफ हैदर अली हैं.

आजम खान औैर नवाब काजिम अली आजम खान औैर नवाब काजिम अली
कुबूल अहमद/कुमार अभिषेक
  • नई दिल्ली/लखनऊ,
  • 10 फरवरी 2022,
  • अपडेटेड 4:26 PM IST
  • सपा सांसद आजम खान दो साल से जेल में बंद हैं
  • रामपुर सीट पर आजम खान बनाम काजिम अली
  • स्वार सीट पर अब्दुल्ला आजम बनाम हैदर अली

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण में सभी की निगाहें रामपुर पर है, जहां सियासी जंग दो सियासी राजघरानों की बीच है. आजम खान और नवाब परिवार के बीच रामपुर का चुनाव सिमटा हुआ है. रामपुर शहर सीट पर मोहम्मद आजम खान और रामपुर के नवाब काजिम अली उर्फ नावेद मियां के बीच चुनावी लड़ाई है. वहीं, जिले की स्वार टांडा सीट पर आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम और नवाब काजिम के बेटे हैदर अली खान हैं. यानी रामपुर की दो सीटों पर दो पिताओं और दो बेटों की जंग है.  

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आजम खान जेल में रहते हुए रामपुर सीट से चुनावी मैदान में हैं. मोदी लहर में भी उन्होंने सिर्फ रामपुर सीट पर ही जीत का परचम नहीं फहराया, बल्कि जिले की एक सीट छोड़कर सभी सीटों पर सपा को जीत मिली थी. 2019 के लोकसभा चुनाव में रामपुर संसदीय सीट के साथ-साथ रुहेलखंड की मुरादाबाद, संभल और अमरोहा सीट पर सपा की झोली में डाली थी. इससे आजम खान की सियासी ताकत का अंदाजा लगाया जा सकता है. ऐसे में देखना है कि जेल में रहकर आजम खान सपा के लिए क्या सियासी करिश्मा दिखाते हैं? 

मुलायम सिंह यादव से लेकर अखिलेश यादव की सरकार तक में आजम खान का क्या सियासी रुतबा था, ये किसी से छिपा नहीं है. जेल में होते हुए भी आजम खान का सपा में राजनीतिक रसूख बरकरार है. शायद यही वजह है कि अखिलेश यादव ने उन्हें रामपुर सीट से टिकट दिया है तो उनके बेटे अब्दुल्ला को स्वार टांडा सीट से. इसके अलावा उनकी मर्जी से ही रामपुर की बाकी सीटों पर भी प्रत्याशी उतारे गए हैं. 

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आजम खान पिछले दो साल से जेल में सजा काट रहे हैं और उनके चुनाव प्रचार का जिम्मा पत्नी तंजीम खान और परिवार के सदस्य संभाल रहे हैं. दूसरी ओर रामपुर सीट पर नावेद काजिम अली खान को कांग्रेस ने टिकट देकर मैदान में उतारा है. बीजेपी की ओर से आकाश सक्सेना चुनावी किस्मत आजमा रहे हैं, जबकि बसपा से सदाकत हुसैन प्रत्याशी हैं. रामपुर सीट से लगातार आजम खान जीत रहे हैं. यहां न तो 2007 में बसपा का सर्वजन हिताय काम आया और न ही 2017 में मोदी लहर. 

आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम रामपुर की स्वार टांटा विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में उतरे हैं, जहां मुकाबला बेहद दिलचस्प है. इस सीट पर नवाज काजिम के बेटे हैदर अली खान के बेटे कांग्रेस छोड़कर बीजेपी की सहयोगी अपना दल (एस) से चुनाव लड़ रहे हैं और उनके सामने सपा से अब्दुल्ला आजम खान हैं. 2017 के चुनाव में अब्दुल्ला आजम ने नवाब काजिम को करारी मात दी थी. हालांकि, इस बार का सियासी मिजाज पिछली बार से अलग है. 

अब्दुल्ला आजम के खिलाफ स्वार टांडा सीट पर अपना दल (एस) से हैदर अली खान ताल ठोक रहे हैं. वहीं, बसपा से शंकर लाल सैनी और कांग्रेस से राम रक्षपाल सिंह है. हालांकि, कांग्रेस ने पहले हैदर अली खान को टिकट दिया था, लेकिन वे पार्टी छोड़कर अपना दल (एस) में शामिल हो गए. इस सीट से उनके पिता नवाब काजिम अली कई बार जीत दर्ज कर चुके हैं. पिछली बार उन्हें हार मिली थी. ऐसे में हैदर अली के सामने अपने पिता की सियासी विरासत को दोबारा से हासिल करने के लिए उतरे हैं. 

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काजिम अली खान और हैदर अली रामपुर नवाब के वंशज हैं. जब भारत ब्रिटिश राज के अधीन था, तब रामपुर के नवाब के स्वागत में 15 तोपों की सलामी दी जाती थी. स्वतंत्रता के वक्त रजा अली खान बहादुर रामपुर के नवाब थे. काजिम उनके पोते हैं. कांग्रेस के टिकट पर काजिम के माता-पिता ने 7 बार रामपुर लोकसभा सीट पर जीत दर्ज की थी. 1990 के दौर में दो बार उनकी मां बेगम नूर बानो विजयी हुईं. इससे पहले उनके पिता सैयद जुल्फिकार अली खान ने 1960 से 1980 तक पांच बार रामपुर लोकसभा सीट पर जीत की पताका लहराई. 

काजिम अली चार बार विधायक रह चुके हैं. उन्होंने 1996 में रामपुर जिले की बिलासपुर सीट से पहली बार चुनावी जीत हासिल की थी. उनकी मां ने लोकसभा सीट पर विजय पाई थी. इसके बाद उन्होंने 2002, 2007 और 2012 में स्वार टांडा विधानसभा क्षेत्र से जीत का परचम लहराया, जहां से आजम खान के बेटे अब्दुल्ला खान ने पिछली बार उन्हें मात देकर जीत हासिल की थी. 

रामपुर की सियासत में आजम खान ने पहले नवाब परिवार के सानिध्य में रहकर राजनीतिक बाजी आजमाई, लेकिन उन्हें लगा कि सियासी बुलंदी हासिल करनी है तो नवाब परिवार के खिलाफ बगावत का झंडा उठाना ही होगा. आजम खान ने यही किया और अपने सियासी सफर में महज दो बार उन्हें चुनावी मात मिली है. आजम खान जैसे-जैसे अपने सियासी पैर पसारते गए, वैसे-वैसे नवाब परिवार की सियासत सिमटती गई. ऐसे में नवाब परिवार और आजम खान की सियासी अदावत जगजाहिर है. 

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चमरौआ विधानसभा सीट से आजम खान के करीबी नसीर अहमद खान सपा के टिकट पर चुनावी मैदान में हैं, जिनके खिलाफ बीजेपी से मोहन कुमार लोधी, बसपा से अब्दुल मुस्तफा हुसैन और कांग्रेस से यूसुफ अली मैदान में हैं. 2017 में नसीर अहमद ने जीत दर्ज की थी. बिलासपुर सीट पर बीजेपी से मौजूदा विधायक बलदेव सिंह औलख फिर से चुनाव मैदान में है, जिनके खिलाफ सपा से अमरजीत सिंह, बसपा से रामअवतार कश्यप और कांग्रेस से पूर्व विधायक संजय कपूर हैं. मिलक (एससी) सीट पर बीजेपी से राजबाला, सपा से विजय सिंह, बसपा से सुरेंद्र सिंह सागर और कांग्रेस से कुमार एकलव्य प्रत्याशी हैं. ऐसे में देखना है कि रामपुर की सियासत में किसका वर्चस्व बरकरार रहता है?

 

 

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