
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की सरगर्मियों के बीच मंगलवार को बीजेपी को तगड़ा सियासी झटका लगा है. स्वामी प्रसाद मौर्य ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा देते हुए बीजेपी को अलविदा कह दिया है और साथ ही पार्टी के चार अन्य विधायकों ने भी बीजेपी छोड़ दी है. स्वामी प्रसाद मौर्य ने सपा प्रमुख अखिलेश यादव से मुलाकात के बाद साइकिल पर सवार होने का मन बनाया है.
वहीं, यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने स्वामी प्रसाद से नाराजगी छोड़कर साथ बैठकर बात करने और बीजेपी में बने रहने की अपील की है, लेकिन स्वामी प्रसाद ने तो अब सियासी मैदान में दो-दो हाथ करने का फैसला किया है. इसीलिए उन्होंने कहा कि केशव प्रसाद मौर्य को अब हमारा दर्द और कमी महसूस हो रही है.
इससे साफ जाहिर होता है कि 2022 के चुनाव में मौर्य-कुशवाहा वोटों को लेकर बीजेपी और सपा के बीच शह-मात का खेल होगा. ऐसे में स्वामी प्रसाद मौर्य और केशव मौर्य में से कौन मौर्य-कुशवाहा वोटों का असल वारिस बनकर उभरता है, ये देखना दिलचस्प रहेगा.
स्वामी प्रसाद बनाम केशव प्रसाद
उत्तर प्रदेश की सियासत में स्वामी प्रसाद मौर्य ने 80 के दशक में कदम रखा है. स्वामी प्रसाद मौर्य 'बुद्धिज्म' को फॉलो करते हैं. वह अंबेडकरवाद और कांशीराम के सिद्धांतों को मानने वाले नेताओं में हैं, जिसके चलते दलित-ओबीसी की राजनीति ही करते रहे हैं. स्वामी प्रसाद ने लोकदल से अपना सियासी सफर शुरू किया और बसपा में रहते हुए राजनीतिक बुलंदियों को छुआ. पांच बार के विधायक हैं. बसपा से लेकर बीजेपी तक की सरकार में मंत्री रहे. बसपा के प्रदेश अध्यक्ष से लेकर राष्ट्रीय महासचिव और विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता तक रहे.
वहीं, केशव प्रसाद मौर्य ने हिंदुत्व की राजनीति से अपना सियासी सफर शुरू किया. विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष रहे अशोक सिंघल के सानिध्य में रहे. 2012 में पहली बार केशव प्रसाद मौर्य बीजेपी से विधायक बने और दो साल के बाद ही 2014 में लोकसभा सांसद चुन लिए गए. हालांकि, केशव प्रसाद का राजनीति कद बीजेपी के यूपी प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद बढ़ा. 2017 में डिप्टी सीएम बनने के बाद केशव प्रसाद की यूपी में सियासी तूती बोलने लगी, लेकिन असल परीक्षा तो उनकी अब स्वामी प्रसाद के पार्टी छोड़ने के बाद होनी है.
यूपी में मौर्य वोटों की ताकत
उत्तर प्रदेश में यादव और कुर्मियों के बाद ओबीसी में तीसरा सबसे बड़ा जाति समूह मौर्य समाज का है. यह समाज मौर्य के साथ-साथ शाक्य, सैनी, कुशवाहा, कोइरी, काछी के नाम से भी जाना जाता है. यूपी में करीब 6 फीसदी मौर्य-कुशवाहा की आबादी है, लेकिन करीब 15 जिलों में 15 फीसदी के करीब है. पश्चिमी यूपी के जिलों में सैनी समाज के रूप में पहचान है तो बृज से लेकर कानपुर देहात तक शाक्य समाज के रूप में जाने जाते हैं. बुंदेलखंड और पूर्वांचल में कुशवाहा समाज के नाम से जानी जाती है तो अवध और रुहेलखंड व पूर्वांचल के कुछ जिलों में मौर्य नाम से जानी जाती है.
यूपी के इन जिलों में प्रभाव
पूर्वांचल के गोरखपुर, बस्ती, वाराणसी, कुशीनगर, देवरिया, आजमगढ़, वाराणसी, मिर्जापुर, प्रयागराज, अयोध्या मंडल की दो दर्जन से ज्यादा सीटों पर मौर्य बिरादरी निर्णायक भूमिका में है. बुंदेलखंड के बांदा, हमीरपुर, जालौन, झांसी, ललितपुर और चित्रकूट में कुशवाहा समाज काफी अहम है. फिरोजाबाद, एटा, मैनपुरी, हरदोई, फर्रुखाबाद, इटावा, औरैया, बदायूं, कन्नौज, कानपुर देहात और आगरा में शाक्य वोटर निर्णायक हैं. पश्चिम यूपी के मेरठ, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर और मुरादाबाद में सैनी समाज निर्णायक है. वहीं, बरेली, बदायूं, शाहजहांपुर, रायबरेली, प्रतापगढ़ जिलों की एक दर्जन से ज्यादा सीटों में इस बिरादरी की बड़ी तादाद है.
किसी एक पार्टी के साथ नहीं रहा
ओबीसी के तहत आने वाला मौर्य-कुशवाहा-शाक्य-सैनी समाज का वोट किसी एक पार्टी के साथ उत्तर प्रदेश में कभी नहीं रहा. यह समाज चुनाव दर-दर चुनाव अपनी निष्ठा को बदलता रहा है. आजादी के बाद कांग्रेस का परंपरागत वोटर रहा तो लोकदल और जनता दल के भी साथ गया. इसके बाद सपा और बसपा के बीच अलग-अलग क्षेत्रों में बंटता रहा और 2017 में बीजेपी को 90 फीसदी मौर्य समाज का वोट मिला था.
स्वामी तीन दशक से स्थापित नेता
हालांकि, कभी बसपा प्रमुख मायावती ने स्वामी प्रसाद मौर्य के जरिए मौर्य-कुशवाहा समाज के लोगों को आकर्षित करने का काम किया थी, जिसके चलते उन्हें पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद से लेकर राष्ट्रीय महासचिव तक बनाया. इतना ही नहीं 1996 के बाद से स्वामी प्रसाद मौर्य लगातार यूपी की सियासत में बड़े ओहदे पर रहे हैं, जिसके जरिए उन्होंने अपने समाज के बीच अच्छी पकड़ बनाने में कामयाब रहे.
मौर्य समाज की पकड़ का नतीजा है कि स्वामी प्रसाद मौर्य रहने वाले तो प्रतापगढ़ से हैं, लेकिन चुनाव वो कभी रायबरेली से जीते तो अब पूर्वांचल के कुशीनगर को कर्मभूमि बना रखा है. इतना ही नहीं, अपनी बेटी को रुहेलखंड के बदायूं से सांसद बनाया. इसके अलावा उनके कई करीबी मौर्य नेता यूपी के अलग-अलग क्षेत्रों में विधायक रहे हैं. बसपा में रहते हुए स्वामी ने अपने करीबी नेताओं को खूब ओबलाइज किया है.
केशव-स्वामी की जोड़ी सफल रही
यूपी में बसपा के गिरते सियासी ग्राफ को देखते हुए बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद मौर्य-कुशवाहा-सैनी-शाक्य वोटों को साधने के लिए केशव प्रसाद मौर्य को प्रदेश अध्यक्ष बनाया. साथ ही 2016 में स्वामी प्रसाद मौर्य भी बसपा छोड़कर बीजेपी में आए गए. ऐसे में मौर्य-कुशवाहा-सैनी-शाक्य समाज ने एकमुश्त होकर बीजेपी को वोट दिया था. केशव प्रसाद मौर्य डिप्टी सीएम बने, लेकिन स्वामी प्रसाद मौर्य कैबिनेट मंत्री बने. ऐसे में स्वामी प्रसाद मौर्य का जो कद बसपा में हुआ करता था, वो उन्हें बीजेपी में रहते हुए हासिल नहीं हो सका.
स्वामी प्रसाद मौर्य के बीजेपी छोड़ने और साइकिल पर सवार होने के बाद मौर्य वोटों के लिए सपा और बीजेपी के बीच सियासी घमासान मचना तय हो गया है. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि स्वामी प्रसाद मौर्य को अपने खेमे में लाकर अखिलेश यादव ने मास्टरस्ट्रोक चल दिया है. इतना ही नहीं इससे पहले अखिलेश ने आरएस कुशवाहा को भी अपने साथ मिला लिया है.
बीजेपी के लिए बढ़ी सियासी चिंता
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के सियासी संग्राम को देखते हुए समाजवादी पार्टी को गैर यादव वोट के लिए काफी समय से बड़े चेहरे की तलाश थी. ऐसे में स्वामी प्रसाद मौर्य के आने से इस तलाश के पूरी होने की उम्मीद जताई जा रही है. बीजेपी भी केशव प्रसाद मौर्य को फिर से आगे कर रही है. अमित शाह और पीएम मोदी के साथ केशव मौर्य रैलियों में मंच शेयर करते दिखे हैं, जहां पीएम ने बाकायदा उनके नाम को लेकर सियासी संदेश देने की कोशिश की है.
हालांकि, करीब दो-तीन दशकों से स्वामी प्रसाद मौर्य उत्तर प्रदेश में मौर्य बिरादरी के स्थापित नेता बने हुए हैं जबकि केशव मौर्य को सियासत में आए अभी एक दशक ही हुए हैं. ऐसे में सूबे के सामने करीब 6 फीसदी मौर्य-कुशवाहा-शाक्य-सैनी वोटों को लेकर बीजेपी के सामने सहेजने की चुनौती आ गई है तो सपा स्वामी प्रसाद के जरिए उन्हें अपने साथ जोड़ने का दांव चला है. ऐसे में देखना है कि सैनी, शाक्य, कुशवाहा, कोली, मौर्या आदि जातियों के लोग किसके साथ जाते हैं. इससे यह भी पता चल सकेगा कि केशव प्रसाद और स्वामी प्रसाद में कौन मौर्य समाज का बड़ा नेता है.