
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए सपा ने अपने 159 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी है, जिसमें ठाकुर समाज के नेताओं से ज्यादा ब्राह्मण समुदाय के लोगों को तवज्जो दी गई है. सपा ने पहली लिस्ट में ठाकुर समुदाय के पांच नेताओं को टिकट दिए हैं जबकि 8 ब्राह्मण प्रत्याशी बनाए गए हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि मुलायम सिंह के दौर में सपा में ठाकुर नेताओं का दबदबा रहा करता था, लेकिन अखिलेश यादव के एजेंडे से क्यों ठाकुर बाहर हो गए.
मुलायम सिंह यादव के दौर में सपा के सियासी एजेंडे में ठाकुर अहम हुआ करते थे, लेकिन अब योगी आदित्यनाथ के सत्ता में आने के बाद सपा से ठाकुरों नेताओं ने बीजेपी का दामन थामा है. ऐसे में अखिलेश यादव ने सपा की रणनीति बदली है और ठाकुरों की जगह ब्राह्मण और ओबीसी नेताओं को सियासी अहमियत दे रहे हैं. इसकी एक वजह यह भी है कि यूपी में ब्राह्मणों की संख्या ठाकुरों से ज्यादा है. ब्राह्मण करीब 10 फीसदी है तो ठाकुर महज 6 फीसदी है. इसीलिए अखिलेश यादव ने ठाकुर से ज्यादा ब्राह्मण प्रत्याशी उतारे हैं.
सपा ने यूपी में 159 विधानसभा सीटों में से सिर्फ पांच ठाकुर समुदाय के प्रत्याशी बनाए हैं. मथुरा की मांट सीट से संजय लाठर, देवबंद सीट से कार्तिकेय राणा, आगरा की एत्मादपुर सीट से वीरेंद्र सिंह चौहान, रायबरेली की सरेनी सीट से देवेंद्र प्रताप सिंह और माधौगढ़ सीट से राघवेंद्र प्रताप सिंह को सपा ने प्रत्याशी बनाया है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कई जिलों में ठाकुर वोटर काफी अहम है. इसके बावजूद सपा ने वेस्ट्रन यूपी में सिर्फ तीन ठाकुर को टिकट दिए हैं जबकि एक सीट सेंट्रल यूपी की है और एक सीट बुंदेलखंड की है.
बता दें कि सूबे में एक समय जब सपा के कोर वोटबैंक में यादव और मुस्लिम के बाद ठाकुर हुआ करता था. मुलायम सिंह की सरकार से लेकर अखिलेश यादव के राज में ठाकुर नेताओं का बोलबाला हुआ करता था. 2012 में 48 ठाकुर विधायक जीतकर आए थे, जिनमें 38 सपा के टिकट पर जीते थे. यही वजह थी कि अखिलेश सरकार में 11 ठाकुर मंत्री बने थे. इनमें से आधे से ज्यादा नेताओं ने सपा का दामन छोड़कर बीजेपी और दूसरे दल में शामिल हो गए हैं.
अखिलेश सरकार में मंत्री रहे विनोद कुमार सिंह उर्फ पंडित सिंह का कोरोना से निधन हो चुका है. सपा को समर्थन देने वाले रघुराज प्रताप सिंह ने अब अपनी अलग पार्टी बना ली है. राजकिशोर सिंह सपा छोड़ बसपा में शामिल हो चुके हैं. राजा महेंद्र अरिदमन सिंह भी पार्टी छोड़ भाजपा में शामिल हो चुके हैं. समाजवादी पार्टी से टिकट ना मिलने पर मदन चौहान बसपा में शामिल हो गए हैं. इतना ही नही राजा आनंद सिंह का बेटा भाजपा से सांसद है. इस तरह से सपा के अन्य ठाकुर नेताओं का सियासी ठिकाना बीजेपी बन गई.
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो अखिलेश यादव सूबे की सियासी नब्ज को पूरी समझ गए हैं कि ठाकुर वोटर किसी भी कीमत पर योगी को छोड़कर उनके साथ नहीं आएगा. ऐसे में सपा ने ठाकुरों के जगह ब्राह्मण और दूसरे समुदाय पर फोकस किया. इसी का नतीजा है कि अखिलेश यादव के मंच से ठाकुर चेहरे गायब हैं. न किसी राजनीतिक रैली, न प्रेस कॉन्फ्रेंस और न ही कार्यकर्ता सम्मेलन में अखिलेश के साथ कोई ठाकुर चेहरा नजर आ रहा है.
सपा में बेहद कद्दावर नेता रहे और अखिलेश के करीबी अरविंद सिंह गोप, योगेश प्रताप सिंह, राकेश प्रताप सिंह और ओम प्रकाश सिंह जैसे नेता अभी पार्टी के किसी भी चुनावी फ्रंट पर नहीं दिख रहे हैं. वहीं, कभी थोक में ठाकुरों को टिकट देने वाली सपा इस बार जबरदस्त तरीके से कैंची चला रही हैं. इससे साफ जाहिर होता है कि अखिलेश यादव के एजेंडे से ठाकुर समुदाय पूरी तरह से बाहर हो गया है.