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यूपी में अपना दल परिवार क्या फिर एक होगा? अनुप्रिया पटेल ने मां के सामने रखा सुलह का फॉर्मूला

यूपी चुनाव की आहट के साथ ही अपना दल (एस) की नेता व केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने परिवार को एकजुट करने के लिए अपनी मां कृष्णा पटेल के सामने सुलह-समझौते का फॉर्मूला दिया है. अनुप्रिया ने कृष्णा पटेल को यूपी में मंत्री और विधान परिषद भेजने का प्रस्ताव दिया है, लेकिन इस पर भी सहमति नहीं बन पा रही.

कृष्णा पटेल, अनुप्रिया पटेल, पल्लवी पटेल (फाइल फोटो) कृष्णा पटेल, अनुप्रिया पटेल, पल्लवी पटेल (फाइल फोटो)
कुमार अभिषेक
  • लखनऊ,
  • 14 सितंबर 2021,
  • अपडेटेड 3:54 PM IST
  • दो धड़ों में बंटा अपना दल परिवार क्या एक होगा?
  • अनुप्रिया पटेल ने मां कृष्णा पटेल को दिया ऑफर
  • कृष्णा पटेल ने अनुप्रिया के ऑफर को ठुकरा दिया

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की आहट के साथ ही दो धड़ों में बंटा 'अपना दल' फिर से एकता की कोशिशें कर रहा है. अपना दल (एस) की नेता व केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने परिवार को एकजुट करने के लिए अपनी मां कृष्णा पटेल के सामने सुलह-समझौते का फॉर्मूला दिया है. अनुप्रिया ने कृष्णा पटेल को यूपी में मंत्री और विधान परिषद भेजने का प्रस्ताव दिया है, लेकिन इस पर भी सहमति नहीं बन पा रही. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्या वजह है कि अपना दल परिवार फिर से एक नहीं हो पा रही है? 

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अनुप्रिया ने मां दिया समझौते का फॉर्मूला

अनुप्रिया पटेल ने सुलह-समझौता करने के लिए कृष्णा पटेल को राज्य सरकार में मंत्री पद दिलवाने, अपने पति आशीष पटेल की जगह विधान परिषद भेजने, आगामी विधानसभा चुनाव में टिकट देकर जितवाने और उनके समर्थकों को भी दो-तीन सीटें देने की पेशकश की है. हालांकि कृष्णा पटेल का कहना है कि उन्हें अभी तक अनुप्रिया पटेल की ओर से ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं मिला है. यदि ऐसा कोई प्रस्ताव आता भी तो वह उसे स्वीकार नहीं करेंगी. 

अपना दल सूत्रों की मानें तो केंद्रीय राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल ने पिछले दिनों अपने करीबी रिश्तेदारों के जरिए परिवार के बीच सुलह-समझौता रखा है. इनमें पहला प्रस्ताव यह है कि कृष्णा पटेल यूपी के मंत्रिमंडल विस्तार में अपना दल कोटे से मंत्री बनें. दूसरा प्रस्ताव यह है कि आशीष पटेल विधान परिषद से इस्तीफा दे देंगे और उनकी जगह कृष्णा पटेल एमएलसी बनें. एमएलसी के तौर पर आशीष का कार्यकाल मई 2024 तक यानि पौने तीन साल का है. 

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कृष्णा पटेल को 2022 के विधानसभा चुनाव में मनचाही सीट से चुनाव लड़ने का ऑफर दिया है. इसके अलावा उनके समर्थकों को लिए भी दो से तीन सीटें देने का प्रस्ताव दिया है. साथ ही चुनाव जिताने की जिम्मेदारी अनुप्रिया पटेल और आशीष पटेल पर होगी और चुनाव खर्च भी देने की बात रखी गई है. उन्हें पार्टी का आजीवन संरक्षक या राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने का भी प्रस्ताव है और चुनाव बाद सरकार बनती है तो फिर अपना दल (एस) कोटे से मंत्री बनाया जाएगा.

अपना दल दो धड़ों में बंटी हुई है

बता दें कि अपना दल का गठन सोनेलाल पटेल ने किया था, जिसकी कमान उनके निधन के बाद अनुप्रिया पटेल ने संभाली. 2012 में अनुप्रिया पटेल पहली बार विधायक चुनी गई और 2014 में बीजेपी से गठबंधन कर सांसद बनी. इसके बाद मोदी सरकार में मंत्री बनने के बाद अनुप्रिया पटेल और उनकी मां कृष्णा पटेल के बीच सियासी वर्चस्व की जंग छिड़ गई. 

अपना दल की अध्यक्ष कृष्णा पटेल द्वारा पल्लवी पटेल को अपनी जगह पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाने का फैसला किया था, जिसका अनुप्रिया पटेल ने विरोध किया था. इसके बाद में अनुप्रिया ने खुद को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित कर दिया था, जिस पर उनकी मां ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया था. 

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फिर अपना दल दो हिस्सों में बंट गई. एक की कमान अनुप्रिया पटेल ने अपने हाथों में ले ली तो दूसरी की कमान उनकी मां कृष्णा पटेल और बहन पल्लवी पटेल के हाथों में है. अनुप्रिया पटेल खुद को सोनेलाल पटेल के वारिस के तौर पर साबित करने में सफल रही हैं जबकि कृष्णा पटेल को सफलता नहीं मिली. ऐसे में अनुप्रिया के गुट के नेताओं को मानना है कि पल्लवी पटेल के चलते परिवार में सुलह-समझौता का फॉर्मूला नहीं बन पा रहा है. 

कृष्णा पटेल ने ऑफर ठुकराया

कृष्णा पटेल की तरफ से बाकायदा एक बयान जारी किया गया, जिसमें उन्होंने साफ कर दिया है कि किसी भी कीमत पर अनुप्रिया पटेल के साथ नहीं जाएंगी. उन्होंने कहा कि डॉक्टर सोनलाल पटेल के आंदोलन की अहमियत और हैसियत का इन्हें अंदाजा ही नहीं है. यह नहीं जानते कि डॉक्टर पटेल मंत्री बनाने और एमएलसी बनाने के लिए नहीं लड़ रहे थे. वह लड़ रहे थे किसानों के लिए. जो लोग इनसे समझौता करके बैठे हैं वह बहुत छोटी राजनीति कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि मै अपना दल की राष्ट्रीय अध्यक्ष हूं. मुझे पार्टी के बाहर का कोई व्यक्ति, जिसे पार्टी से निकाला जा चुका हो उसे यह बोलने से पहले सोचना चाहिए. मेरी अध्यक्षता ही स्वीकार होती तो ऐसे समाज और इस पार्टी को धोखा देकर नहीं जाते. जनता और समाज इस खेल को समझ रहा है.

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