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उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए सियासी बिसात बिछाई जाने लगी है. दलितों-पिछड़ों को केंद्र में सरकार में शामिल कर बीजेपी ने एक राजनीतिक दांल चल दिया है तो बसपा ने ब्राह्मण सम्मेलन शुरू कर दिया है. वहीं, सपा के साथ हाथ मिलाने के बाद आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी ने भी चुनावी शंखनाथ फूंक दिया है. आरएलडी अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन को दोबारा से हासिल करने के लिए जाट-मुस्लिम के साथ-साथ अन्य जातियों को जोड़कर सोशल इंजीनियरिंग का नया फॉर्मूला खड़ा करना चाहते हैं.
जयंत चौधरी की पार्टी मंगलवार से भाईचारा सम्मेलन का आगाज मुजफ्फरनगर के खतौली से करने जा रही है. हालांकि, जयंत चौधरी का जातीय फॉर्मूला अपने दादा चौधरी चरण सिंह से काफी अलग हैं. ऐसे में देखना है कि जयंत चौधरी इस सामाजिक समीकरण के जरिए 2022 के चुनाव में कितने कारगर साबित होते हैं?
चौधरी चरण का जातीय फॉर्मूला
बता दें कि पश्चिम यूपी की सियासत में एक समय जयंत चौधरी के दादा चौधरी चरण सिंह किंगमेकर की भूमिका में ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश के सीएम से लेकर देश के पीएम तक बने. चौधरी चरण सिंह ने प्रदेश और देश की सियासत में अपनी जगह बनाने के लिए 'अजगर' (अहीर, जाट, गुर्जर और राजपूत) और 'मजगर' (मुस्लिम, जाट, गुर्जर और राजपूत) फॉर्मूल बनाया था.
कांग्रेस के खिलाफ चौधरी चरण सिंह का यह फॉर्मूला पश्चिम यूपी ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में सफल रहा. आरएलडी के इस जातीय समीकरण को झटका तब लगा, जब चौधरी अजित सिंह और मुलायम सिंह यादव के बीच अनबन हुई. चौधरी चरण के जातीय फॉर्मूले से पहले यादव अलग हुआ और फिर राजपूत समुदाय ने नाता तोड़ा. इसके बाद 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे के बाद सामाजिक ताना-बाना ऐसे टूटा कि जाट और मुस्लिम अलग हो गए. इतना ही नहीं, जब 2014 के बाद बीजेपी-मोदी की आंधी चली तो आरएलडी का पूरा समीकरण ही बिखर गया.
जयंत चौधरी का कास्ट फॉर्मूला
चौधरी अजित सिंह के निधन के बाद आरएलडी की कमान अब उनके बेटे जयंत चौधरी के हाथ में है. ऐसे में जयंत अपनी खोई हुई सियासी जमीन को पाने के लिए हरसंभव कोशिश में जुटे हैं. ऐसे में उन्होंने किसान पंचायत के जरिए पहले माहौल बनाया और जाट समुदाय के विश्वास जीतने की कोशिश की है. किसान पंचायत करने का बड़ा फायदा पंचायत चुनाव में आरएलडी को मिला.
वहीं, आरएलडी एक बार फिर करीब तीन दशक के बाद जातीय समीकरण बनाने में जुटी है, लेकिन चौधरी चरण सिंह से फॉर्मूले से इस बार अलग है. चौधरी चरण सिंह ने अहीर, जाट, गुर्जर, मुस्लिम और राजपूत का फॉर्मूला बनाया था तो जयंत चौधरी जाट और मुस्लिम समीकरण के साथ गुर्जर, सैनी, कश्यप और ब्राह्मण समाज को भी जोड़ने की कवायद में हैं. आरएलडी इन समाजों को जोड़ने के लिए भाईचारा सम्मेलन कर जातीय समीकरण दुरुस्त करना चाहती है.
आरएलडी का सर्वसमाज पर होगा जोर
आरएलडी के प्रवक्ता अभिषेक चौधरी कहते हैं कि किसान पंचायत के बाद अब आरएलडी पश्चिम यूपी में सभी समाजों को जोड़ने के लिए भाईचारा सम्मेलन की शुरुआत कर रही है. विपक्ष हमेशा से आरएलडी को जाट समुदाय की पार्टी के तौर पर पेश करता रहा है जबकि पार्टी की कोशिश शुरू से सर्वसमाज को साथ लेकर चलने की रही है.
वह कहते हैं कि चौधरी चरण सिंह का जो फॉर्मूला था उससे अलग नहीं है बल्कि उसमें हम और भी अन्य समाज के लोगों को जोड़ने का काम कर रहे हैं, क्योंकि मौजूदा सियासी हालात बदल गए हैं. समाज के सभी वर्गों में राजनीतिक चेतना जागी है और इस सम्मेलन के जरिए हम उन्हें पार्टी से जोड़ने का काम करेंगे. मुजफ्फरगनर के बाद शामली, सहारनपुर, मथुरा, मेरठ और आगरा में भी ऐसे सम्मेलन करेंगे, जिसमें पार्टी के तमाम समाज के नेता उपस्थिति रहेंगे.
जाट-मुस्लिम की सियासी ताकत
उत्तर प्रदेश में जाट समुदाय की आबादी करीब 4 फीसदी है, जबकि पश्चिमी यूपी में यह 17 फीसदी के करीब हैं. वहीं 20 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले यूपी के पश्चिमी उत्तर प्रदेश की विधानसभा सीटों पर मुस्लिम समाज की आबादी 35 से 50 फीसदी तक है. इसके अलावा पश्चिम यूपी में गुर्जर-सैनी दो-दो फीसदी, ब्राह्मण तीन फीसदी, कश्यप दो फीसदी वोटर काफी अहम हैं. मौजूदा समय में गुर्जर, सैनी, कश्यप और ब्राह्मण बीजेपी का परंपरागत वोटर हैं, लेकिन अब इन्हें साधकर आरएलडी अपनी राजनीतिक नैया पार लगाना चाहती है.