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UP की वो OBC जातियां, जो जिस दल के साथ, उसकी जीत तय!

यूपी में इन दिनों सभी राजनीतिक दल छोटी-छोटी जातियों के वोटों को अपने पाले में लाने के लिए उनके समाज की पार्टियों के साथ गठबंधन भी करे रहे हैं. ये छोटी जातियां संख्या कम होने की वजह से अकेले दम पर भले ही सियासी तौर पर खास प्रभाव न दिखा सके, लेकिन किसी बड़ी संख्या वाली जाति या फिर तमाम छोटी-छोटी जातियां मिलकर किसी भी दल का राजनीति खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं. 

कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 01 सितंबर 2021,
  • अपडेटेड 1:51 PM IST
  • यूपी में अतिपिछड़ी जातियां किंगमेकर बन गई हैं
  • गैर-यादव ओबीसी वोटों पर बीजेपी की नजर है
  • सपा छोटी-छोटी जातियों को एकजुट करने में लगी

उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव की सियासी बिसात बिछ चुकी है. सूबे में अलग-अलग जातियों को साधने के लिए सपा और बीजेपी हर संभव कोशिश में जुटी हैं. ये 'छोटी' जातियां संख्या कम होने की वजह से अकेले दम पर भले ही सियासी तौर पर खास प्रभाव ना दिखा सकें, लेकिन किसी बड़ी संख्या वाली जाति या फिर तमाम छोटी-छोटी जातियां मिलकर किसी भी दल का राजनीति खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं.

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यूपी में इन दिनों सभी राजनीतिक दल छोटी-छोटी जातियों के वोटों को अपने पाले में लाने के लिए उनके समाज की पार्टियों के साथ गठबंधन भी करे रहे हैं. बीजेपी ने अपना दल (एस) और निषाद पार्टी से गठबंधन कर लक्ष्य बना लिया है कि यूपी में ओबीसी समुदाय के बड़े हिस्से को अपने पाले में करना है, जिसके लिए जमी पर उतरकर पसीना बहाने जा रही है. वहीं, सपा ने महान दल, जनवादी पार्टी और आरएलडी से हाथ मिलाया है.

OBC यूपी का सबसे बड़ा वोटबैंक

बता दें कि उत्तर प्रदेश में सरकारी तौर पर जातीय आधार पर कोई आधिकारिक आंकड़ा मौजूद नहीं है, लेकिन अनुमान के मुताबिक यूपी में सबसे बड़ा वोट बैंक पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का है. लगभग 52 फीसदी पिछड़ा वोट बैंक में 43 फीसदी वोट बैंक गैर-यादव बिरादरी का है, जो कभी किसी पार्टी के साथ स्थाई रूप से नहीं खड़ा रहता है. यही नहीं पिछड़ा वर्ग के वोटर कभी सामूहिक तौर पर किसी पार्टी के पक्ष में भी वोटिंग नहीं करते हैं.

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लखनऊ वरिष्ठ पत्रकार काशी प्रसाद कहते हैं कि यूपी में ओबीसी समाज अपना वोट जाति के आधार पर करता रहा है. यही वजह है कि छोटे हों या फिर बड़े दल, सभी की निगाहें इस वोट बैंक पर रहती हैं. सपा और बीजेपी अति पिछड़ी जातियों में शामिल अलग-अलग जातियों को साधने के लिए उसी समाज के नेता को मोर्चे पर भी लगा रखा है.

उत्तर प्रदेश में ओबीसी की 79 जातियां हैं, जिनमें सबसे ज्यादा यादव और दूसरे नंबर कुर्मी समुदाय की है. सीएसडीएस के आंकड़ों के मुताबिक ओबीसी जातियों में यादवों की आबादी कुल 20 फीसदी है जबकि राज्य की आबादी में यादवों की हिस्सेदारी 11 फीसदी है, जो सपा का परंपरागत वोटर माना जाता है. 

गैर-यादव ओबीसी जातियां अहम
 
वहीं, यूपी में गैर-यादव ओबीसी जातियां सबसे ज्यादा अहम हैं, जिनमें कुर्मी-पटेल 7 फीसदी, कुशवाहा-मौर्या-शाक्य-सैनी 6 फीसदी, लोध 4 फीसदी, गडरिया-पाल 3 फीसदी, निषाद-मल्लाह-बिंद-कश्यप-केवट 4 फीसदी, तेली-शाहू-जायसवाल 4, जाट 3 फीसदी, कुम्हार/प्रजापति-चौहान 3 फीसदी, कहार-नाई- चौरसिया 3 फीसदी, राजभर 2 फीसदी और गुर्जर 2 फीसदी हैं. यूपी में बीजेपी और सपा ने ओबीसी समुदाय के कुर्मी समाज से प्रदेश अध्यक्ष है तो बसपा ने राजभर और कांग्रेस ने कानू जाति के व्यक्ति को कमान दे रखी है.

वहीं, यूपी में 22 फीसदी दलित वोट काफी अहम माने जाते है, लेकिन यह वोटबैंक जाटव और गैर-जाटव के बीच बंटा हुआ है. वजह यही है कि इनमें तीन चौथाई और कुल आबादी का 12 फीसदी जाटव हैं जो पूरी तरह मायावती के साथ लामबंद हैं जबकि बाकी 8 फीसदी गैर जाटव दलित 50-60 जातियां और उप-जातियां में बंटा हुआ हैं. गौर-जाटव दलित में बाल्मीकि, खटीक, पासी, धोबी, कोरी सहित तमाम जातियों के राजनीतिक दल अपने पाले में लामबंद करने में जुटे हैं. 

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कुर्मी समुदाय

जातिगत आधार पर देखें तो यादव के बाद ओबीसी में सबसे बड़ी कुर्मी समुदाय की है. सूबे के सोलह जिलों में कुर्मी और पटेल वोट बैंक छह से 12 फीसदी तक है. इनमें मिर्जापुर, सोनभद्र, बरेली, उन्नाव, जालौन, फतेहपुर, प्रतापगढ़, कौशांबी, इलाहाबाद, सीतापुर, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, सिद्धार्थनगर और बस्ती जिले प्रमुख हैं. 

मौर्या-कुशवाहा

वहीं, ओबीसी की मौर्या-शाक्य-सैनी और कुशवाहा जाति की आबादी तेरह जिलों का वोट बैंक सात से 10 फीसदी है. इन जिलों में फिरोजाबाद, एटा, मिर्जापुर, प्रयागराज, मैनपुरी, हरदोई, फर्रुखाबाद, इटावा, औरैया, बदायूं, कन्नौज, कानपुर देहात, जालौन, झांसी, ललितपुर और हमीरपुर हैं. इसके अलावा सहारनपुर, मुजफ्फरनगर और मुरादाबाद में सैनी समाज निर्णायक है.  

लोध समुदाय

ओबीसी में एक और बड़ा वोट बैंक लोध जाति का है, जो बीजेपी का परंपरागत वोट बैंक माना जाता है. यूपी के कई जिलों में लोध वोटरों का दबदबा है, जिनमें रामपुर, ज्योतिबा फुले नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़, महामायानगर, आगरा, फिरोजाबाद, मैनपुरी, पीलीभीत, लखीमपुर, उन्नाव, शाहजहांपुर, हरदोई, फर्रुखाबाद, इटावा, औरैया, कानपुर, जालौन, झांसी, ललितपुर, हमीरपुर, महोबा ऐसे जिले हैं, जहां लोध वोट बैंक पांच से 10 फीसदी तक है. 

मल्लाह-निषाद

वहीं, मल्लाह समुदाय भी करीब 6 फीसदी है, जो सूबे में निषाद, बिंद, कश्यप और केवल जैसी उपजातियों से नाम से जानी जाती है. गंगा नदी के किनारे जिलों में स्थिति है. फतेहपुर, चंदौली, मिर्जापुर, गाजीपुर, बलिया, वाराणसी, गोरखपुर, भदोही, प्रयागराज, अयोध्या, जौनपुर, औरैया सहित जिले में है. मछली मारने और नाव चलाने में इनका जीवन बीत जाता है. इसलिए सियासी दलों की नजर इस समुदाय के वोट बैंक पर है. 

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नोनिया-चौहान

पूर्वांचल के कई जिलों में इन्हें स्थानीय भाषा में नोनिया के नाम से जाना जाता है. विशेषकर मऊ, गाजीपुर बलिया, देवरिया, कुशीनगर, आजमगढ़, महराजगंज, चंदौली, बहराइच और जौनपुर के अधिकतर विधानसभा क्षेत्रों में इनकी संख्या अच्छी खासी है. पूर्वांचल की सियासत में सपा और बीजेपी दोनों ही इन समुदाय को साधकर अपने राजनीतिक हित साधना चाहते हैं. 

राजभर पर नजर

पूर्वांचल में राजभर समुदाय ओबीसी में एक अहम वोटबैंक है, जिसकी आबादी भले ही दो फीसदी है, लेकिन कई सीटों पर सियासी खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं. पूर्वांचल के गाजीपुर, बलिया, मऊ, आजमगढ़, चंदौली, भदोही, वाराणसी व मिर्जापुर में इस बिरादरी अच्छी खासी है. इस बिरादरी के नेता के तौर पर ओम प्रकाश राजभर ने पहचान बनाई है. राजभर वोटों के लिए सपा और बीजेपी ही नहीं बल्कि बसपा की नजर है. 

लोहार-कुम्हार

उत्तर प्रदेश की सियासत में लोहार और कुम्हार दोनों ही समुदाय ओबीसी की अति पिछड़ी जातियों में आती है, लोहार जाति के लोग खुद को विश्वकर्मा और शर्मा जाति लिखते हैं तो जबकि कुम्हार समुदाय को लोग खुद को प्रजापति लिखते है. अवध और पूर्वांचल के इलाकों में इन दोनों समुदाय अकेले दम जीतने की ताकत नहीं रखते हैं, लेकिन दूसरे दलों के खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं.

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पाल-गड़रिया-बघेल

उत्तर प्रदेश की ओबीसी समुदाय में पाल समाज अतिपिछड़ी जातियों में आता है, जिसे गड़रिया और बघेल जातियों के नाम से जाना जाता है. बृज और रुहेलखंड के जिलों में पाल समुदाय काफी अहम माने जाते हैं. यह वोट बैंक बदायूं से लेकर बरेली, आगरा, फिरोजाबाद, इटावा, हाथरस जैसे जिलों में काफी महत्व रखते हैं. इसके अलावा अवध के फतेहपुर, रायबरेली, प्रतापगढ़ और बुंदेलखड के तमाम जिलों में 5 से 10 हजार की संख्या में रहते हैं. ओबीसी वोट बैंक में करीब दर्जनों और जातियां हैं, जिन्हें अति पिछड़ों की श्रेणी में शामिल हैं.


 

 

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