
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election) से पहले राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई है. AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) मुस्लिम बहुल बहराइच (Bahraich) जिले में अपनी राजनीतिक पैठ बनाने के लिए आज यूपी कैम्प कार्यालय (UP Camp Office) का उद्घाटन करेंगे.
बहराइच के इसी कैम्प कार्यालय से ओवैसी पूर्वांचल के 27 जिलों की मॉनिटरिंग करेंगे. इतना ही नहीं उनके प्रदेश अध्यक्ष हाजी शौकत अली का बहराइच से चुनाव लड़ना भी तय माना जा रहा है. वहीं दूसरी ओर ओवैसी का कार्यालय उद्घाटन के बाद बहराइच शहर स्थित सैय्यद सालार मसूद गाजी की दरगाह पर माथा टेकेंगे.
अमूमन बहराइच की मसूद गाजी की इस दरगाह पर खुद को मुस्लिमों का रहनुमा बताने के उद्देश्य से हर सेकुलर पार्टी का नेता माथा टेकता है. उसी पैटर्न पर ओवैसी भी दरगाह पहुंचेंगे. मसूद गाजी की दरगाह के सियासी मायने इसलिए भी अधिक हैं क्योंकि मुस्लिम मसूद गाजी को एक संत के रूप में तो दूसरी ओर हिंदुओं का एक बड़ा तबका मुस्लिम आक्रांता मानता है.
ओवैसी का मजार पर जाना राजभर के लिए नुकसान दायक!
भारत पर 17 बार आक्रमण करने वाले महमूद गजनवी के भांजे सैय्यद सालार मसूद गाजी को बहराइच में तत्कालीन टेढ़ी नदी के समीप 1034 में महाराजा सुहेलदेव ने 5 दिनों तक चले भीषण युद्ध में पराजित कर मार डाला था. इसलिए राजा सुहेलदेव को इस इलाके में हिन्दू नायक के तौर पर पेश किया जाता रहा है.
बीजेपी ने बीते कुछ वर्षों में महाराजा सुहेलदेव को पूर्वांचल की राजनीति में अपना केंद्र बिंदु भी बनाने का प्रयास किया है. बीते 16 फरवरी को बहराइच के चित्तौरा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाराजा सुहेलदेव स्मारक का शिलान्यास किया है. सुहेलदेव का सियासी महत्व ओम प्रकाश राजभर के लिए कितना अधिक है, इसका अंदाजा उनकी पार्टी के नाम से ही लगाया जा सकता है.
सुहेलदेव को अपने समाज का नायक बताकर ओम प्रकाश राजभर पूर्वांचल के राजभर समाज से जुड़े 18 फीसदी वोटों पर नज़रें टिकाए हैं. अब जब ओपी राजभर की सुभासपा व असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM में यूपी विधान सभा चुनाव में सियासी गठबंधन की बात चल रही है.
ऐसे में असदुद्दीन ओवैसी के मसूद गाजी की दरगाह उनकी मजार पर चादर पोशी के साथ इस इलाके में चुनाव शंखनाद को जहां सुहेलदेव के ऐतिहासिक महत्व के विपरीत समझा जा रहा है वहीं उनके इस कदम से ओपी राजभर व उनके बीच होने वाला गठबंधन कितना मजबूत साबित होगा इस पर संशय के बादल मंडराने लगे हैं.
(रिपोर्ट- राम बरन चौधरी)