
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार (Yogi government of Uttar Pradesh) से स्वामी प्रसाद मौर्य (Swami Prasad Maurya) के बाद दारा (Dara Singh Chauhan) सिंह चौहान ने भी इस्तीफा दे दिया है. कैबिनेट के साथ-साथ बीजेपी (BJP) को भी दारा सिंह चौहान ने अलविदा कह दिया है और सपा की साइकिल पर सवारी कर सकते हैं. बीजेपी छोड़ने के बाद उन्होंने सपा प्रमुख अखिलेश यादव (SP Chief Akhilesh Yadav) से मुलाकात की है.
दो दिनों में बीजेपी के दो ओबीसी नेताओं (OBC Leaders) ने योगी सरकार पर दलित, पिछड़ों, वंचितों, किसानों के साथ भेदभाव के आरोप लगाते हुए अपने इस्तीफा दिए हैं. ऐसे में साफ सवाल खड़ा होता है कि कौन हैं दारा सिंह चौहान, जिनके बीजेपी छोड़ने से 2022 के चुनाव में क्या सियासी असर पड़ेगा?
पूर्वांचल के मऊ, गाजीपुर और आजमगढ़ के इलाके में रखते हैं दबदबा
दारा सिंह चौहान ओबीसी (OBC) की अति पिछड़ी जाति मानी जाने वाली नोनिया (चौहान) समाज से आते हैं. पूर्वांचल में मऊ, गाजीपुर और आजमगढ़ के इलाके में नोनिया समाज का अच्छा खासा सियासी असर है. बिहार के राज्यपाल फागू चौहान के बाद दारा सिंह चौहान नोनिया समाज के बड़े नेताओं में गिने जाते हैं. दारा सिंह चौहान ने अपना सियासी सफर बसपा के साथ शुरू किया और सपा से होते हुए बीजेपी में गए और फिर से सपा के साइकिल पर सवार होने मन बनाया है.
दारा सिंह चौहान का जन्म 15 जुलाई 1963 को आजमगढ़ के गेलवारा गांव में हुआ. उनके पिता राम किशन चौहान हैं. दारा सिंह चौहान का बचपन गरीबी में गुजारा है, उनके पिता किसान थे. खेती किसान और मजदूरी भी की है. दारा सिंह चौहान की पढ़ाई लिखाई आजमगढ़ से हुई है. आजमगढ़ डीएवी डिग्री कालेज से वह स्नातक हैं.
कांशीराम की मुहिम से जुड़कर शुरू की राजनीति
जब कांशीराम ने बसपा (BSP) का गठन किया और अति पिछड़ी जातियों को जोड़ने की मुहिम शुरू की तो दारा सिंह चौहान उनके साथ जुड़ गए. दारा सिंह चौहान को राजनीति में लाने का काम फागू चौहान ने किया, जो अंबेडकरवादी व कांशीराम के सिद्धांतों पर चलने वाले नेता माने जाते थे. फागू चौहान की तर्ज पर दारा सिंह चौहान भी शुरू से दलित-पिछड़ों की राजनीति करते रहे हैं. इसीलिए सवर्ण समाज के बीच वोट भी नहीं मांगते थे.
बीजेपी में पिछड़ा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद संभाला
दारा सिंह चौहान का राजनीतिक सफर वैसे तो बसपा में रहा है, लेकिन सपा से लेकर बीजेपी तक में रहे. बसपा में संसदीय दल से नेता की भूमिका निभाई तो बीजेपी में पिछड़ा मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष का बड़ा दायित्व संभाला. दारा सिंह का लंबा समय केंद्रीय राजनीति में गुजरा है, लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी का दामन थामा और पहली बार प्रदेश में योगी सरकार में मंत्री बने.
1996 में पहली बार बसपा से पहुंचे थे राज्यसभा
बसपा में रहते हुए दारा सिंह चौहान का सियासी कद राज्यसभा और लोकसभा सदस्य के रूप में रहा. दारा सिंह का राजनीति के क्षेत्र में मऊ जिला ही प्रमुख केंद्र रहा. पहली बार साल 1996 में बसपा से वह राज्यसभा के लिए चुने गए. यह कार्यकाल तीन वर्ष चार माह का था. इसके बाद 2000 में दोबारा से राज्यसभा पहुंचे. फिर उन्होंने बसपा छोड़कर सपा का दामन थाम लिया. समाजवादी पार्टी के टिकट पर दारा सिंह चौहान ने 2004 में घोसी लोकसभा से चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए. इसके बाद फिर बसपा में वापसी कर गए. बसपा से वह 2009 में घोसी लोकसभा क्षेत्र से फिर चुनाव लड़े और चुनाव जीतकर संसद पहुंचे. इसके बाद दोबारा 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने फिर से उन्हें घोसी सीट से टिकट दिया, लेकिन मोदी लहर में जीत नहीं सके.
2017 में मधुबन सीट से बीजेपी ने दिया था टिकट
2014 का लोकसभा चुनाव (2014 Lok Sabha Elections) हारने के एक साल बाद दारा सिंह चौहान ने बीजेपी की सदस्यता ग्रहण कर ली थी. भाजपा में इन्हें पिछड़ा मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया. 2017 के विधानसभा चुनाव में मधुबन सीट (Madhuban seat in assembly elections( से बीजेपी ने दारा सिंह चौहान को टिकट भी दिया, जबकि वो इस सीट से टिकट की दौड़ में शामिल भी नहीं थे. मधुबन से चुनाव जीतने के बाद नोनिया वोटों की सियासती ताकत को देखते हुए दारा सिंह चौहान को योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया. पांच साल के बाद अब उन्होंने बीजेपी को अलविदा कह दिया है और सपा की साइकिल पर सवार होने का मन बना लिया है.