
2017 के यूपी विधानसभा चुनाव की तरह इस बार भी अमेठी में राजमहल की अंतर्कलह की शुरुआत हो गयी है. भाजपा ने अपनी सिटिंग विधायक गरिमा सिंह का टिकट काट कर उनके पति संजय सिंह को टिकट दे दिया है. इस वजह से फिर वहां पर पति-पत्नी और वो का सिलसिला शुरू हो गया है.
इस वजह से भाजपा प्रत्याशी डॉ. संजय सिंह की चुनाव में मुश्किलें बढ़ सकती हैं. उनकी पहली पत्नी व भाजपा विधायक गरिमा सिंह ने रिटर्निंग ऑफिसर संजीव कुमार मौर्य के सामने पहुंचकर अपने पति के नामांकन पर आपत्ति दर्ज कराई है. गरिमा सिंह का आरोप है कि वे संजय सिंह की लीगल पत्नी हैं.
अमेठी सीट पर किस बात की लड़ाई?
विधायक गरिमा सिंह ने बताया कि यह हमारी पारिवारिक समस्या है. मैने आज अपनें पत्नी होने का स्थान पाने के लिए, पत्नी अस्त्वित के लिए, पत्नी के गौरव के लिए, सम्मान के लिए मैने आज यह आपत्ति दर्ज कराई है. इस पर जो भी जवाब मिलेगा उसके बाद ही मैं आपको कुछ बता पाऊंगी. गरिमा सिंह ने बताया कि संभवतः अमीता मोदी को पत्नी का स्थान दिया गया है जो मुझे मंजूर नहीं है. मैं अपना स्थान और अपना गौरव प्राप्त करना चाहती हूं. मैं हूं पत्नी और रहूंगी. अब यहां से जो जवाब मिलेगा वो बताया जाएगा. उनसे संजय सिंह के चुनाव में प्रचार को लेकर सवाल हुआ तो गरिमा सिंह ने जवाब में कहा कि अभी इस विषय पर मैने विचार नहीं किया है देखा जाएगा. मैं पार्टी के साथ हूं, पार्टी की वर्कर हूं पार्टी जो आदेश करेगी उसका पालन किया जाएगा.
आपको बता दें कि भाजपा ने ठीक नामांकन के अंतिम दिन से एक दिन पहले अमेठी की भाजपा विधायिका गरिमा सिंह का टिकट काटकर उनके पति संजय सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया था और उन्होंने कल ही अपना नामांकन किया. अब उनकी पहली पत्नी ने उनके नामांकन पर अपनी आपत्ति दर्ज़ करा कर सियासी गलियारों में हलचल मचा दी.
परिवारिक लड़ाई कैसे शुरू हो गई?
बताते चलें कि 2017 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के गढ़ अमेठी की विधानसभा सीट पर न तो राहुल गांधी चर्चा में थे ना ही उनका अखिलेश यादव के साथ गठबंधन चर्चा में था. इस सीट पर बस आम लोगों के बीच एक राजा की दो रानियों की जंग चर्चा में थी. दरअसल, गठबंधन के बावजूद इस सीट से सपा से गायत्री प्रसाद प्रजापति ने पर्चा भरा था तो कांग्रेस से अमिता सिंह उतरी थीं. भाजपा को इस सीट को जीतने के लिए ट्विस्ट पैदा करना था. इसलिए उसने गरिमा सिंह को टिकट दिया. उसके बाद से उन्होंने जनता की भावनाओं को हथियार बनाया. हर जनसभा में वह अमेठी की जनता से रानी को राजा से न्याय दिलाने की मांग करती दिखी और अंततः उन्होंने सीट जीत ली.
गौरतलब है कि संजय सिंह और अमिता सिंह की शादी 1995 में हुई थी. उसके बाद 2017 में अचानक गरिमा सिंह लाइम लाईट में आईं और उन्होंने बताया कि संजय सिंह से उनका तलाक नहीं हुआ. उन्होंने राजमहल समेत विरासत पर अपना दावा ठोंक दिया और राजमहल के दो कमरों में रहने लगीं. जबकि बाकी महल पर संजय सिंह और अमिता सिंह का ही कब्जा है. बताया जाता है कि भूपति भवन में 100 से ज्यादा कमरें हैं. बहरहाल, गरिमा सिंह के बेटे अनंत विक्रम सिंह अपनी विधायक मां के प्रतिनिधि हैं और क्षेत्र में वही सक्रिय रहते हैं.
अमिता सिंह और उनके पति संजय सिंह जुलाई 2019 में कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हुए हैं. अमिता सिंह 2002 में बीजेपी के टिकट पर अमेठी से विधायक चुनी गई थीं. राजनाथ सरकार में मंत्री भी रहीं. 2004 का उपचुनाव और 2007 का चुनाव उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर जीता था. अमिता सिंह को 2012 में सपा के गायत्री प्रजापति ने हरा दिया था.
विधायक बनने के पहले वे सुल्तानपुर से भाजपा की जिला पंचायत अध्यक्ष भी रहीं. अमिता सिंह के पास राजनैतिक अनुभव भी है. साथ ही वह अब अमेठी के गली मुहल्लों में आसानी से दिख जाती हैं. जाहिर है उनके ऊपर भी दबाव है कि किसी न किसी तरह से भाजपा का टिकट उन्हें लेना है. इससे जहां उनका राजनैतिक रुतबा बढ़ेगा. साथ ही साथ पारिवारिक झगड़े में वह एक कदम आगे हो जाएंगी. और यही वजह रही कि सियासी दिग्गज रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री संजय सिंह के दांव पेंच के आगे गरिमा का टिकट कटा और इस बार भाजपा ने संजय सिंह को ही अपना उम्मीदवार बना दिया.
क्या है राजघराने वाली कहानी?
ये भी जानना जरूरी है कि अमेठी राजघराने से जुड़े लोग 10 बार विधायक और 5 बार संसद सदस्य रह चुके हैं. अमेठी राजपरिवार के राजा रणंजय सिंह 1952 के पहले चुनाव में निर्दलीय विधायक चुने गए थे. 1969 में जनसंघ और 1974 में कांग्रेस के टिकट पर जीते. 1962 से 1967 तक अमेठी से कांग्रेस के टिकट पर संसद का चुनाव भी जीते. वो कोई भी चुनाव नहीं हारे थे. उनकी राजनैतिक विरासत को उनके बेटे संजय सिंह ने संभाला. कांग्रेस के टिकट पर वो 1980 से 1989 तक अमेठी से विधायक चुने गए. कई विभागों के मंत्री भी रहे. वीपी सिंह ने जब जनता दल बनाई तो वे उनके साथ हो लिए. 1989 के चुनाव में संजय सिंह ने राजीव गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा लेकिन वो राजीव गांधी को हरा नहीं पाए. फिर वो बीजेपी में शामिल हो गए.
1998 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने उन्हें टिकट दिया इस बार संजय सिंह जीत गए. लेकिन अगले साल हुए लोकसभा चुनाव में सोनिया ने अमेठी से पर्चा भरा. इस बार संजय सिंह को गांधी परिवार से फिर हार का सामना करना पड़ा. संजय सिंह 2003 में एक बार फिर कांग्रेस में वापस लौटे. 2009 के चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर सुल्तानपुर से जीते. बाद में कांग्रेस ने उन्हें राज्यसभा भेज दिया लेकिन कार्यकाल खत्म होने से पहले ही जुलाई 2019 में एक बार फिर बीजेपी में शामिल हो गए.