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यूपी चुनाव का आगाज कम वोटिंग के साथ, 2017 की तुलना में 3 फीसदी कम पड़े वोट

यूपी चुनाव के पहले चरण की वोटिंग पूरी हो गई है. यूपी के पहले चरण में 60.17% मतदान हुआ है. 2017 की तुलना में ये आंकड़ा कम रह गया है. गाजियाबाद में तो सबसे कम वोटिंग दर्ज की गई है.

यूपी चुनाव का आगाज कम वोटिंग के साथ यूपी चुनाव का आगाज कम वोटिंग के साथ
ऐश्वर्या पालीवाल
  • नई दिल्ली,
  • 10 फरवरी 2022,
  • अपडेटेड 7:28 AM IST
  • गाजियाबाद में पड़े हैं सबसे कम वोट
  • कैराना ने मारी बाजी, भारी मतदान हुआ
  • नोएडा सीट पर भी सुस्त रह गई वोटिंग रफ्तार

यूपी चुनाव के पहले चरण की वोटिंग संपन्न हो गई है. चुनाव आयोग ने पूरी कोशिश की है कि इस बार हर चरण में भारी मतदान करवाया जाएगा. कोरोना को देखते हुए कई इंतजाम भी किए गए थे. लेकिन अब जब आंकड़े सामने आ गए हैं, एक बार फिर सुस्त वोटिंग ने निराश किया है. यूपी के पहले चरण में 60.17% मतदान हुआ है. अब ये आंकड़ा 2017 की तुलना में कम रह गया है. पिछले विधानसभा चुनाव में पहले चरण की वोटिंग के दौरान 63.5% वोट पड़े थे.

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पहले चरण में जिन 58 सीटों पर वोटिंग हुई उसमें आगरा की 9, मेरठ की 7, अलीगढ़ की 7, हापुड़ की 3, बुलंदशहर की 7, मुजफ्फरनगर की 6, गाजियाबाद की 5, मथुरा की 5,शामली की 3, गौतमबुद्धनगर की 3 और बागपत की 3 सीटें थीं.

गाजियाबाद में सबसे कम वोटिंग

अब इस साल कम वोटिंग या कह लीजिए इस सुस्स रफ्तार के लिए कई जिले जिम्मेदार हैं. गाजियाबाद को तो टॉप पर रखा जाएगा जहां पर सबसे कम वोटिंग देखने को मिली है. इस साल गाजियाबाद में 54.77% मतदान हुआ है. ये 2017 की तुलना में कुछ कम है. 2017 के चुनाव में गाजियाबाद में 54.99 प्रतिशत वोट पड़े थे.

गाजियाबाद के दूसरे क्षेत्रों की बात करें तो मुरादनगर में 57.30 फीसदी वोट पड़े हैं, साहिबाबाद में 45 फीसदी मतदान, गाजियाबाद सीट पर 50.40% वोट और मोदीनगर में 63.53 फीसदी मतदान रहा है. अब गाजियाबाद से आगे बढ़ें तो नोए़डा में भी वोटिंग परसेंटेज कम रह गया है. गौतमबुद्धनगर की नोएडा सीट पर इस साल 50.10 फीसदी वोटिंग हुई है. दादरी में 59.78% वोट पड़ें है और जेवर में 60.30 फीसदी मतदान देखने को मिला है.

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जाट क्षेत्र में कैसा रहा हाल?

अब अगर मुजफ्फरनगर की बात करें तो वहां पर फिर भी वोटिंग की रफ्तार कुछ ठीक रही है. वहां की 6 सीटों पर 60 फीसदी से अधिक मतदान देखने को मिला है. 2017 के चुनाव में यहां पर बीजेपी का जबरदस्त प्रदर्शन रहा था. लेकिन इस बार जाट फैक्टर और किसानों के गुस्से ने राह को कुछ चुनौतीपूर्ण बना दिया है.

अब यूपी की सियासत में सत्ता का रास्ता पश्चिमी दरवाजे से जल्दी पहुंचता है. इसीलिए सारी पार्टियों ने अपना पूरा जोर लगा दिया था. जाट, किसान, दंगा और सुरक्षा व्यवस्था इस पूरे इलाके का मुद्दा बना हुआ था. दंगा और सुरक्षा व्यवस्था के मुद्दे पर ही 2017 में बीजेपी को 2012 के मुकाबले 43 सीटों का फायदा हुआ था. बीएसपी और समाजवादी पार्टी को भारी नुकसान झेलना पड़ा था.

क्यों मायने रखता है पश्चिमी यूपी?

दरअसल 2017 विधानसभा चुनावों में मोदी लहर का असर दिखा था. इलाके की 58 सीटों में से 53 सीटें बीजेपी के खाते में गई थीं. बीजेपी ने कुल 46 प्रतिशत वोट हासिल किए थे. इसी तरह से समाजवादी पार्टी और बीएसपी को 2-2 सीटें मिली थीं. जाट राजनीति पर केंद्रित राष्ट्रीय लोकदल को केवल 1 सीट मिली थी. जहां तक कांग्रेस की बात है तो उसका खाता भी नहीं खुला था.

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लेकिन अगर 2017 से पांच साल और पीछे जाया जाए तो स्थिति बीजेपी के भी पक्ष में नहीं थी और सपा भी कुछ खास मजबूत नहीं दिखी. लेकिन उस वक्त हुए चुनावों में सभी पार्टियों में सीटों का बंटवारा हुआ था. जिसमें बीएसपी को सबसे ज्यादा सीटें मिली थीं. 2012 विधानसभा चुनावों में 58 सीटों में से बीजेपी को 10, समाजवादी पार्टी को 14, बीएसपी को 20, आरएलडी को 9, कांग्रेस को 4 और निर्दलीय उम्मीदवारों को 11 सीटें मिली थीं.

2012 से बीजेपी के लिए कितनी बदली तस्वीर?

यानी 2012 में केवल 10 सीटें जीतने वाली बीजेपी को 2017 चुनावों में 43 सीटों का फायदा हुआ था. और बीएसपी और समाजवादी पार्टी को भारी नुकसान हुआ था. वर्ष 2014 में मोदी लहर पर सवार बीजेपी, केंद्र में काबिज हुई, जिसके बाद मुजफ्फरनगर दंगा और कैराना पलायन के मुद्दे ने बीजेपी को पश्चिमी यूपी में पैठ बनाने का बड़ा मौका दिया था. जिसका उसे फायदा भी मिला.

अब अभी के लिए पश्चिमी यूपी में जाट, किसान, दंगा और सुरक्षा व्यवस्था एक ऐसा मुद्दा है. जिसपर इस बार का चुनाव टिका हुआ है. मतदाताओं ने अपना फैसला जुबान से नहीं, अपनी वोटिंग इंक के निशान वाली उंगली से दिया है. जिसका नतीजा अब 10 मार्च को सामने आएगा. 

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