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UP Elections 2022: यूपी चुनाव के तीसरे चरण में 'यादवलैंड' ने किस आधार पर डाले वोट?

यूपी चुनाव के तीसरे चरण में वोटिंग संपन्न हो गई है. यादवलैंड में हुए इस चुनाव को काफी अहम माना गया है. कुल 59 सीटों पर वोट पड़े हैं. यहां किसानों का मुद्दा हावी रहा, बेरोजगारी पर भी बहस हुई और आवारा पशुओं की समस्या ने भी किसानों को परेशान किया.

यादवलैंड में वोटिंग समीकरण की इनसाइड स्टोरी ( सांकेतिक फोटो) यादवलैंड में वोटिंग समीकरण की इनसाइड स्टोरी ( सांकेतिक फोटो)
ऐश्वर्या पालीवाल
  • नई दिल्ली,
  • 21 फरवरी 2022,
  • अपडेटेड 8:39 AM IST
  • यादवलैंड में हिजाब नहीं बना बड़ा मुद्दा
  • किसानों को आवारा पशुओं की समस्या

उत्तर प्रदेश चुनाव के तीसरे चरण की वोटिंग भी संपन्न हो गई. यादवलैंड माने जाने वाले इस चरण में 2017 के वक्त बीजेपी की आंधी ने सपा को चारों खाने चित कर दिया था. लेकिन अब खुद अखिलेश यादव ने करहल से चुनाव लड़ा है. उनकी सीट पर 65.10%. मतदान भी हो गया है. अखिलेश को पूरा विश्वास है कि वे रिकॉर्ड मतों से यहां से चुनाव जीतने जा रहे हैं. लेकिन सवाल ये है कि आखिर किन मुद्दों के आधार पर तीसरे चरण में वोटिंग हुई?

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राजनीतिक पंडित बताते हैं कि इस बार चुनावी मौसम में ध्रुवीकरण हुआ है, बड़े स्तर पर हुआ है लेकिन अब यूपी की जनता इतनी समझदार हो चुकी है कि वो सिर्फ कुछ मुद्दों के आधार पर अपना वोट तय नहीं करती है. कहने को तीसरे चरण के प्रचार के दौरान हिजाब का मुद्दा उठाया गया था, लेकिन यहां के लोग इसे कोई मुद्दा ही नहीं मानते हैं.

जब आजतक ने इस मुद्दे को लेकर कुछ मुस्लिम महिलाओं से बात की तो उन्होंने दो टूक कह दिया इस चुनाव में ये उनके लिए कोई मुद्दा नहीं है. उनका मुद्दा तो महंगाई और बेरोजगारी है. यहां तक कह दिया गया कि अगर किसी पार्टी को ऐसा लगता है कि इस आधार पर उन्हें वोट मिल जाएंगे, तो उन्हें बड़ा झटका लगने वाला है. महिलाओं के मुताबिक उन्हें सुरक्षा चाहिए, रोजगार चाहिए, अच्छी शिक्षा चाहिए. कुछ युवा लड़कियों ने बड़ा संदेश देते हुए कहा है कि वे सभी धार्मिक हैं, लेकिन उनका वोट कभी भी राम या रहीम के आधार पर तय नहीं होता है.

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अब महिलाओं से आगे जब किसानों से बात की गई तो पता चला कि तीसरे चरण की वोटिंग के दौरान आवारा पशुओं का मद्दा भी काफी निर्णायक रहा. कई किसानों से जब बात हुई तो पता चला कि उन्हें सरकार से पैसा तो मिलता है, लेकिन इससे उनका बोझ कम नहीं हुआ है. उन्हें रात-रात भर जगना पड़ता है और आवारा पशुओं से अपनी फसल की रक्षा करनी पड़ती है.

किसानों की मानें तो 2017 में बीजेपी सरकार ने राज्य में अवैध बूचड़खानों को बंद कर दिया था. लेकिन उस फैसले का नकारात्मक असर उन्हें अब भुगतना पड़ रहा है. अब क्योंकि बूचड़खाने बंद कर दिए गए हैं, इस वजह से कई आवारा सांड फसलों को बर्बाद कर रहे हैं.

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