Advertisement

UP election: राजभर-संजय निषाद का चलेगा जादू? पूर्वांचल की पिच पर जातीय बिसात, कौन किसे दे पाएगा मात?

यूपी विधानसभा चुनाव के आखिरी दो चरण बहुत महत्वपूर्ण हैं, जिसमें पूर्वांचल के इलाके की 111 सीटें आती हैं. पूर्वांचल में असली परीक्षा सपा, बसपा, कांग्रेस और बीजेपी जैसे मुख्य दलों के साथ-साथ उन जातीय आधारित छोटे दलों की भी है, जिनका सियासी आधार पूर्वांचल में है.

योगी आदित्यनाथ, मायावती, अखिलेश यादव, प्रियंका गांधी योगी आदित्यनाथ, मायावती, अखिलेश यादव, प्रियंका गांधी
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 02 मार्च 2022,
  • अपडेटेड 10:57 AM IST
  • पूर्वांचल की 111 सीटों पर दो फेज में सियासी जंग
  • पूर्वांचल में छोटे दलों का असल इम्तिहान होना है
  • 2017 में बीजेपी ने पूर्वांचल में क्लीन स्वीप किया था

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव की सियासी लड़ाई अब आखिरी पड़ाव पर पहुंच चुकी है, जो पूर्वांचल की रणभूमि पर लड़ी जा रही है. पांच चरण में सूबे की 403 सीटों में से 292 सीटों पर मतदान हो चुका है और अब अगले दो चरणों में 111 सीटों पर चुनाव होने हैं. ये सभी सीटें पूर्वांचल के इलाके की हैं, जहां पर चुनावी जंग जातीय समीकरण के बिसात पर लड़ी जा रही है. सियासी दलों ने सामाजिक समीकरण को देखते हुए जातीय आधार वाले दलों के साथ गठबंधन कर रखा है और कैंडिडेट भी उसी लिहाज से उतारे गए हैं. ऐसे में देखना है कि कौन किसे पूर्वांचल की चुनावी जंग में मात देता है? 

Advertisement

यूपी के छठे चरण में 10 जिलों की 57 सीटों पर तीन मार्च को वोटिंग होनी है. इसमें अंबेडकरनगर, बलरामपुर, सिद्धार्थनगर, बस्ती, संत कबीरनगर, महाराजगंज, गोरखपुर और कुशीनगर, देवरिया और बलिया की सीटें हैं. अंबेडकरनगर और बलिया को छोड़कर इस चरण के बाकी जिले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गढ़ रहे हैं. वहीं, सातवें व अंतिम चरण में आजमगढ़  मऊ, जौनपुर, गाजीपुर, चंदौली, वाराणसी, भदोही, मिर्जापुर और सोनभद्र जिले की कुल 54 सीटें हैं. आजमगढ़, मऊ और जौनपुर जिले सपा के गढ़ माने जाते हैं जबकि बाकी जिले में बीजेपी और उसके सहयोगी अपना दल (एस) का प्रभाव माना जाता है. 

उत्तर प्रदेश के अभी तक के पांच चरण के चुनाव में भले ही अलग-अलग मुद्दे हावी रहे हों, पर पूर्वांचल में जाति के इर्द-गिर्द ही चुनाव लड़ा जा रहा है. माना जाता है कि पूर्वांचल में दलित-ओबीसी वोट बैंक जिस भी पार्टी के खाते में गया, सत्ता उसी की हुई. 2017 के विधानसभा और 2014 व 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी इन्हीं दोनों समुदाय को साधकर इतिहास रचने में कामयाब रही है. ऐसे में बीजेपी और सपा दोनों ही पार्टियां ओबीसी वोटों का साधने के लिए तमाम जतन इस बार किए हैं. 

Advertisement

वहीं, पूर्वांचल में ओबीसी जातीय आधार वाले ये दल भले ही अपने दम पर कोई करिश्मा न दिखा सकें, लेकिन बड़ी पार्टियों से साथ हाथ मिलाकर किसी भी दल का सियासी खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं. ऐसे में सपा और बीजेपी इन जातियों के बीच आधार रखने वाले दलों के साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरी है. वहीं, कांग्रेस और बसपा गठबंधन के बिना अकेले चुनाव लड़ रही है. बसपा अपने दलित कोर वोटबैंक के साथ दूसरी जातियों के समीकरण के जरिए सियासी जंग फतह करने का सपना संजो रही है.

बीजेपी ने यूपी में कुर्मी वोटों पर पकड़ रखने वाली अनुप्रिया पटेल की अपना दल (एस) और निषाद समुदाय के नेता संजय निषाद की निषाद पार्टी के साथ गठबंधन कर रखा है तो सपा ने राजभर समुदाय के बीच आधार रखने वाले ओमप्रकाश राजभर की सुभासपा, नोनिया समाज के संजय चौहान जनवादी पार्टी और कुर्मी समाज से आने वाली कृष्णा पटेल की अपना दल से हाथ मिला रखा है. 

पूर्वांचल में जातीय समीकरण

यूपी के छठे और सातवें चरण के चुनावी इलाके के सियासी समीकरण को देखें तो ओबीसी और दलित समाज के मतदाता निर्णायक भूमिका में है. पूर्वांचल में सबसे अधिक संख्या में दलित हैं और फिर यादव, मुस्लिम, ब्राह्मण, कुर्मी/सैंथवार, क्षत्रिय, बनिया/वैश्य/कायस्थ, निषाद/बिंद, मौर्य/कुशवाहा, भूमिहार, नोनिया, पाल का नंबर आता है. लोध और अन्य ओबीसी की भी जातियां है. 

Advertisement

पूर्वांचल में जाति आधार पर टिकट वितरण

पूर्वांचल के दोनों चरणों के चुनाव में चारों प्रमुख पार्टियों के टिकट वितरण को देखें तो साफ तौर पर जातीय छाप दिखाई पड़ रही है. बीजेपी गठबंधन, सपा गठबंधन, बसपा, और कांग्रेस टिकट वितरण से पता चलता है कि सबसे ज्यादा दलित प्रत्याशी उतारे गए हैं. छठें और सातवें चरण की टोटल 111 सीटों पर चारों दलों से एससी/एसटी समुदाय के 99  उम्मीदवार मैदान में है. वहीं, ब्राह्मण 78, ठाकुर 59, मुस्लिम 44, कुर्मी/सैंथवार 41, यादव 34, निषाद/बिंद 20, राजभर 13, मौर्य/कुशजवाहा 13, बनिया/कायस्थ 11, भूमिहार 9, नोनिया 6 और अन्य ओबीसी के 17 प्रत्याशी मैदान में है. 

पूर्वांचल में किस जाति के कितने कैंडिडेट

पूर्वांचल में सियासी दलों ने ब्राह्मण और ठाकुर पर ज्यादा तवज्जो दी है जबकि सपा गठबंधन को छोड़कर बाकी दलों ने यादव समाज को अहमियत नहीं दी है. सपा गठबंधन, बसपा और कांग्रेस ने टिकट वितरण में मुस्लिम मतदाताओं को ध्यान में रखा है. सभी पार्टियों ने पिछड़ी जाति के उम्मीदवार पर दांव लगाने के बजाय जातीय आधार वाले दलों के साथ हाथ मिलाकर उनके समाज को साधने की कवायद की है. मुस्लिम और यादवों की लामबंदी और जातीय समीकरणों की वजह से कई सीटें आमने-सामने और त्रिकोणीय समीकरण में कांटे की लड़ाई में उलझी हुई हैं. सपा और भाजपा से टिकट नहीं मिलने से बागी हुए कई चेहरे दूसरे दलों से जाकर मुख्य प्रतिद्वंद्वी दलों बसपा और कांग्रेस से उतरने से प्रत्याशियों की नींद हराम कर रखी है. 

Advertisement

छठे और सातवें चरण तक के चुनावों में पूरी राजनीतिक बिसात ही जातीय समीकरणों के आधार पर बिछाई गई है. यहां पर धार्मिक ध्रुवीकरण से ज्यादा जातीयता की बिसात पर बिछाई गई चौसर में ही सब खेल होगा. पूर्वांचल के चुनावों में भाजपा के साथ सहयोगी दल के तौर पर मैदान में लड़ रही निषाद पार्टी और अपना दल की भी असली परीक्षा है. कभी भाजपा की हितैषी रही ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा इस बार समाजवादी पार्टी के साथ चुनावी मैदान में है. इन्हीं दोनों चरण में सुभासपा की भी परीक्षा है तो संजय चौहान की जनवादी पार्टी और कृष्णा पटेल की अपना दल की सियासी ताकत की जोर आजमाइश भी होनी है. 

दरअसल, जातीय आधार वाले छोटे दलों की ताकत पूर्वांचल में 2017 के चुनावों में खूब उभरकर सामने आई थी. 2017 में विधानसभा चुनाव नतीजे को देखें तो सातवें चरण की जिन 54 सीटों पर चुनाव होने हैं उनमें मौजूदा समय में अपना दल (एस) के पास चार, सुभासपा के पास तीन और निषाद पार्टी के पास एक सीट है. वहीं, छठे चरण में 57 विधानसभा सीटों पर होने वाले मतदान में लड़ाई बिल्कुल दूसरी है. 2017 के विधानसभा चुनावों में इन 57 सीटों में से भाजपा के पास 46 सीटें आईं थीं जबकि सपा दो, बसपा के पास पांच सीटें और कांग्रेस को एक सीट मिली थी. इसके अलावा सुभासपा, अपना दल (एस), कांग्रेस और अन्य को भी एक-एक सीट पर जीत मिली थी. 

Advertisement

हालांकि, इस बार पूर्वांचल के सियासी हालात थोड़े बदले हुए हैं. छोटे दलों में सुभासपा इस बार सपा के साथ मिलकर चुनावी मैदान में है. अगले दो चरण के चुनाव में सत्ता की दशा और दिशा तय होनी है. पश्चिम यूपी और अवध में धार्मिक एजेंडे से शुरू हुआ चुनाव पूर्वांचल पहुंचते ही राजनीतिक टोन जातीयता के आधार पर ज्यादा परिवर्तित हो गई है. ऐसे में सभी दल खुद को दलित और ओबीसी का हितैशी बताने में जुटे हैं. ऐसे में देखना है कि जातीय के पिच पर कौन सियासी बाजी मारता है. 

(यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन से पीएचडी कर रहे अरविंद कुमार के इनपुट के साथ) 

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement