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UP: ऐसा गांव जहां आज तक नहीं गया कोई प्रत्याशी, फिर भी नदी पार कर Vote डालते हैं ग्रामीण, जानिए वजह

उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर की दादरी विधानसभा सीट के अंतर्गत एक गांव में आज भी कोई मूलभूत सुविधा नहीं है. लोगों को शहर नाव से आना जाना पड़ता है. इस गांव में आज तक कोई प्रत्याशी वोट मांगने नहीं पहुंचा, इसके बावजूद ग्रामीण वोट जरूर डालते हैं.

नदी पार कर वोट डालते हैं ग्रामीण.  (Photo: Aajtak) नदी पार कर वोट डालते हैं ग्रामीण. (Photo: Aajtak)
मनीष चौरसिया
  • नोएडा,
  • 02 फरवरी 2022,
  • अपडेटेड 10:24 PM IST
  • गौतमबुद्ध नगर की दादरी सीट में आता है गांव
  • दलेलपुर गांव सन 1840 में बना था

शहरों में नाव (Boat) ऐतिहासिक हो चुकी है, लेकिन गौतमबुद्ध नगर के दलेलपुर गांव (Dalelpur village of Gautam Buddha Nagar) से हर रोज लोग नाव से ही आवाजाही (Boat ride) करते हैं. यहां के लोगों का कहना है कि गांव में आज तक कोई प्रत्याशी किसी भी चुनाव में वोट मांगने नहीं पहुंचा, लेकिन हम लोग वोट जरूर डालते हैं. इसके लिए नदी पार करके जाना पड़ता है. गांव में किसी भी तरीके की कोई सुविधा नहीं है. लोगों का कहना है कि वोटर लिस्ट (Voter List) में उनका नाम बना रहे, उनकी पहचान बनी रहे, इसलिए वोट डालने जाते हैं.

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सड़क से 70 किमी का सफर नाव से रह जाता है 15 किमी का

गौतमबुद्ध नगर की दादरी विधानसभा सीट (Dadri assembly seat Gautam Budh Nagar) में दलेलपुर गांव आता है. इस गांव की आबादी 400 से ज्यादा है. यह गांव सन 1840 में बना था. किसी जगह पर पहुंचने के लिए अगर गांव वाले नाव का सहारा लेते हैं तो उन्हें 15 किलोमीटर की दूरी तय करनी होती है, लेकिन अगर ये लोग सड़क का रास्ता अपनाएं तो वही दूरी 70 किलोमीटर की हो जाती है. यह गांव दिल्ली हरियाणा के बॉर्डर पर है, लेकिन गौतमबुद्ध नगर की सीमा में आता है. किसी भी सरकारी काम के लिए गांव के लोगों को यमुना पार नोएडा में जाना पड़ता है. नाव और सड़क के रास्ते में एक बड़ा अंतर है.

नाव और सड़क से जाने में आता है इतना अंतर

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सूरजपुर कोर्ट सड़क के रास्ते 72 किलोमीटर पड़ता है, वहीं नदी से यह सफर 22 किलोमीटर है. कमिश्नर ऑफिस सड़क के रास्ते 70 किलोमीटर है, ये नदी से महज 20 किलोमीटर पड़ता है. इसके अलावा Cmo कार्यालय सड़क से 42 किलोमीटर तो नदी से 22 किलोमीटर पड़ता है. 

वहीं सब रजिस्ट्रार ग्रेटर नोएडा कार्यालय रोड से 55 किलोमीटर है, ये नदी के रास्ते 40 किलोमीटर पड़ता है. सरकारी अस्पताल निठारी सड़क से 40 किलोमीटर है, वहीं नाव से 20 किलोमीटर रह जाता है. इसके अलावा पोलिंग बूथ गुलावली सड़क के रास्ते 60 किलोमीटर है, ये नाव से 12 किलोमीटर पड़ता है.

किसी भी चुनाव में नहीं पहुंचा कोई प्रत्याशी

यहां के लोगों को बर्थ सर्टीफिकेट और डेथ सर्टीफिकेट बनवाने के लिए नोएडा जाना पड़ता है. अब सोचिए कि जिस गांव का यह हाल है, वहां चुनाव को लेकर भला क्या माहौल होगा. आप जानकर हैरान होंगे कि इस गांव में आज तक कोई भी प्रत्याशी किसी भी चुनाव में प्रचार करने नहीं पहुंचा.

गांव के नीरज बोले: लिस्ट से नाम न कट जाए, इसलिए डालते हैं वोट

गांव के रहने वाले नीरज त्यागी बताते हैं कि उनके गांव में चुनाव को लेकर कोई हलचल दिखाई नहीं पड़ती. आजादी से लेकर आज तक कोई भी प्रत्याशी, चाहे वह किसी भी पार्टी का हो, हमारे गांव में वोट मांगने नहीं आया. वोट डालने के लिए हमें बहुत जद्दोजहद करनी पड़ती है, लेकिन हम इस डर से डालते हैं कि कहीं वोटर लिस्ट से नाम न कट जाए और हमारे पास कोई पहचान ही न बचे.

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'प्रधान कई बार लिख चुके पत्र, नहीं सुनते अधिकारी'

गांव के प्रधान कैलाश सिंह चपराना बताते हैं कि कई बार अधिकारियों को लेटर लिखकर हम मांग कर चुके हैं कि पोलिंग बूथ हमारे गांव में ही बना दिया जाए, लेकिन अधिकारी नहीं सुनते. महिलाओं और बुजुर्गों को पोलिंग बूथ तक पहुंचाना सबसे मुश्किल काम होता है. इसके अलावा बिजली पानी इलाज और श्मशान घाट की भी कोई व्यवस्था गांव में नहीं है.

पहली बार डालेंगे वोट, लेकिन कोई उत्सुकता नहीं

18 साल के हर्ष त्यागी पहली बार वोट डालेंगे. हर्ष ने कहा कि मुझे इस बात के लिए बिल्कुल भी उत्सुकता महसूस नहीं होती. हर्ष ने कहा कि उसने अपने परिवार वालों को गांव में मूलभूत समस्याओं के लिए बहुत संघर्ष करते देखा है. ऐसे में वोट डालने से क्या फायदा. सरकार की कोई भी सुविधा हम तक नहीं पहुंचती, लेकिन फिर भी घर वालों का दबाव है, इसलिए वोट डालने जाएंगे.

इतनी दिक्कतों के बावजूद लोग डालते हैं Vote

गांव में इतनी दिक्कतें हैं, इसके बावजूद लोग वोट डालने जाते हैं. ऐसे में उनके वोट डालने का आधार क्या होता है, वह किसी कैंडिडेट को कैसे चुनते हैं, इस पर गांव वाले कहते हैं कि वह तो केंद्र की सरकार और हवा का रुख देखकर वोट कर देते हैं.

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