
वाराणसी... बाबा विश्वनाथ की नगरी, जहां से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सांसद हैं और 2017 के विधानसभा चुनाव में काशी के सभी 8 सीटों (अपना दल-एस और सुभासपा) पर कमल खिला था, लेकिन इस बार टक्कर कड़ी है. खासतौर पर वाराणसी दक्षिण सीट पर, जहां से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के प्रत्याशी और मंत्री नीलकंठ तिवारी मैदान में हैं.
वाराणसी दक्षिण सीट 1989 से बीजेपी का गढ़ है. 1989 से इस सीट से लगातार 7 चुनाव में बीजेपी के श्यामदेव राय चौधरी जीते थे, लेकिन 2017 में उनका टिकट काटकर नीलकंठ तिवारी को बीजेपी ने मैदान में उतारा था. नीलकंठ तिवारी ने बीजेपी के गढ़ को बचाए रखा और करीब 17 हजार वोटों से जीत दर्ज की थी.
हालांकि 2022 का चुनाव बीजेपी के कठिन नजर आ रहा है. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह सपा प्रत्याशी किशन दीक्षित हैं. किशन दीक्षित की पहचान युवा और जुझारू नेता के रूप में हैं, जिनका परिवार काशी के प्राचीन मंदिर मृत्युंजय महादेव से भी जुड़ा हुआ है. किशन दीक्षित के मैदान में आने से सपा को मुस्लिम और पिछड़े के अलावा ब्राह्मण वोट मिल सकता है.
सपा ने महंत किशन दीक्षित को बनाया प्रत्याशी
समाजवादी पार्टी (सपा) ने इस सीट पर हरीशचंद्र महाविद्यालय के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष और महामृत्युंजय मंदिर के महंत किशन दीक्षित को प्रत्याशी बनाया है. इसके अलावा कांग्रेस ने मुदिता कपूर, बसपा ने दिनेश कसौधन, आप ने अजीत सिंह, एआईएमआईएम में परवेज कादिर खां, आजाद समाज पार्टी ने वीरेंद्र कुमार गुप्ता समेत कई प्रत्याशी मैदान में हैं.
कौन हैं किशन दीक्षित
किशन दीक्षित की एक पहचान महामृत्युंजय मंदिर के महंत के तौर पर तो है ही, लेकिन दूसरी पहचान हर मुद्दे पर संघर्ष करने वाले नेता के रूप में हैं. किशन ने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के 200 मीटर में टूटते घरों और गंगा से बायो टॉयलेट हटवाने के लिए संघर्ष किया था. साथ ही धरोहर बचाओ आंदोलन के तहत गली-मोहल्लों-मंदिरों के लिए संघर्ष किया.
इसके अलावा महंत किशन दीक्षित की पकड़ हर तबके पर काफी मजबूत है. इसकी सबसे बड़ी वजह महामृत्युंजय मंदिर है. इस मंदिर से हजारों की संख्या में लोग जुड़े हैं, जिनसे किशन दीक्षित निजी तौर पर जुड़े हुए हैं. वाराणसी दक्षिणी सीट में ही काशी विश्वनाथ कॉरिडोर आता है, जिसके निर्माण के दौरान कई घरों-मंदिरों को हटाया गया था, जिसको लेकर आंदोलन की अगुवाई किशन दीक्षित ने ही की थी.
किन मुद्दों पर चुनाव लड़ रहे हैं किशन?
किशन दीक्षित इस बार उन्हीं मुद्दों को लेकर चुनाव लड़ रहे हैं, जिन्हें बीजेपी अपना 'विकास का मॉडल' बता रही है. किशन दीक्षित का कहना है कि विश्वनाथ मंदिर के मूल पंचायतन स्वरूप की पुनर्स्थापना और विश्वनाथ मंदिर के दैनिक दर्शनार्थियों के लिए निशुल्क पास की व्यवस्था कराना मेरी पहली प्राथमिकता है.
किशन दीक्षित ने कहा कि गंगा घाटों से बंद रास्तों से आवागमन का फिर से संचालन, गलियों के लिए बाइक एंबुलेंस का संचालन, बंद हुए संस्कृत विद्यालयों को फिर से शुरू कराना, पार्किंग का रेट कम कराना और व्यापारियों के लिए मासिक पास बनवाना, दक्षिणी में विकास के नाम पर उजाड़े गए दुकानदारों की पुनर्स्थापना भी मेरी प्राथमिकता है.
फिर से सपा और बीजेपी में सीधी टक्कर?
वाराणसी दक्षिण सीट पर बीजेपी और सपा के बीच कड़ा मुकाबला नजर आ रहा है, लेकिन कांग्रेस और बसपा के प्रत्याशी भी बीजेपी को नुकसान पहुंचाते दिख रहे हैं. यह सीट ब्राह्मण, वैश्य और मुस्लिम बाहुल्य है. ब्राह्मण वोटरों पर सपा और बीजेपी की नजर है, जबकि वैश्य वोटरों में बसपा और कांग्रेस के साथ ही बीजेपी की मजबूत पकड़ है.
सीधी टक्कर में जीते थे नीलकंठ तिवारी
2017 के चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर हुई थी. सपा और कांग्रेस गठबंधन की वजह से यह सीट कांग्रेस के खाते में गई थी और राजेश मिश्र चुनाव लड़े थे. बीजेपी के नीलकंठ तिवारी को 92560 और कांग्रेस के राजेश मिश्र के 75334 वोट मिले थे. बाकी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी.
क्या है सीट का समीकरण
वाराणसी दक्षिणी सीट मुस्लिम, ब्राह्मण और वैश्य बाहुल्य सीट है. यहां 80 हजार मुस्लिम, 60 हजार ब्राह्मण, 40 हजार वैश्य, 11 हजार यादव, 12 हजार मांझी, 20 हजार गुजराती, 15 हजार मौर्य, 2 हजार राजभर, 15 हजार पंडा, 4 हजार पंडा, 2 हजार भूमिहार, 8 हजार कायस्थ, 10 हजार स्वर्णकार, 3 हजार सोनकर और 15 हजार अन्य वोटर हैं.