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मुलायम के गढ़ में क्या उनकी गैरमौजूदगी दिला पाएगी सपा को जीत?

समाजवादी पार्टी एक बार फिर 2012 के अपने धुआंधार परफॉर्मेंस का रिपीट टेलीकास्ट करने की फिराक में है, तो बीजेपी मुलायम के किले में सेंध लगाने की कोशिश में जुटी है. वहीं मायावती ने भी आजमगढ़ में रैली करके यह साफ कर दिया कि वह दोनों पार्टियों के गेम में तीसरे नंबर की पार्टी बनने को तैयार नहीं.

अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव
मौसमी सिंह
  • आजमगढ़,
  • 04 मार्च 2017,
  • अपडेटेड 2:18 PM IST

2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बीच पूर्वांचल के आजमगढ़ में मुलायम सिंह अपना किला बचाने में सफल रहे थे. मगर तब से अब तक बहुत पानी सर के ऊपर बह चुका है.

समाजवादी पार्टी एक बार फिर 2012 के अपने धुआंधार परफॉर्मेंस का रिपीट टेलीकास्ट करने की फिराक में है, तो बीजेपी मुलायम के किले में सेंध लगाने की कोशिश में जुटी है. वहीं मायावती ने भी आजमगढ़ में रैली करके यह साफ कर दिया कि वह दोनों पार्टियों के गेम में तीसरे नंबर की पार्टी बनने को तैयार नहीं. लेकिन सबसे बड़ी चुनौती समाजवादी पार्टी के सामने है.

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2012 में आजमगढ़ की 10 विधानसभा सीटों में से 9 सीटें समाजवादी पार्टी ने जीती थीं. आजमगढ़ से लगभग 3 बड़े मंत्री और चार राज्यमंत्री आते हैं. ऐसे में उसके लिए अपने नतीजों को बेहतर करना मुश्किल है. आखिर क्यों?

मुलायम ने नहीं किया प्रचार
2014 में जब मुलायम सिंह यादव ने आजमगढ़ का संसदीय चुनाव लड़ने का ऐलान किया तो उसके पीछे सियासी फायदे था. इस इलाके में यादवों की आबादी 30 फीसदी से भी ज्यादा है. वहीं मुसलमान भी प्रदेश के इस बेल्ट में अच्छी खासी तादाद में हैं. जिसके चलते मुलायम के एम-वाई कॉमबीनेशन को यादव लैंड में हराना आसान नहीं है. बाप-बेटे के झगड़े के ट्विस्ट के बाद आजमगढ़ में मुलायम सिंह ने एक बार भी प्रचार नहीं किया है, जबकि अखिलेश यादव ने आजमगढ़ में बैक टू बैक जनसभाएं की हैं. वहीं डिंपल यादव भी यहां तीन बार आकर प्रचार कर चुकी हैं.

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क्या चिटक सकता है MY फैक्टर
दूसरी चुनौती समाजवादी पार्टी के सामने मुख्तार अंसारी हैं. आजमगढ़ मऊ से सटा हुआ ज़िला है और अंसारी बंधुओं का प्रभाव कुछ हद तक आजमगढ़ में भी है. ऐसे में अखिलेश यादव का मुख्तार अंसारी से किनारा क्या वाकई में सपा को डेंट करेगा? दूसरी और बटला हाउस एनकाउंटर के बाद बनी उलेमा काउंसिल में बसपा को अपना समर्थन दिया है. उलेमा काउंसिल के नेता और बसपा के नसीमुद्दीन सिद्दीकी मंच साझा कर चुके हैं.ऐसे में मुसलमान वोटरों के चिपकने की भी आशंका है.

सोशल इंजिनियरिंग का फॉर्मूला
ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने बीजेपी के साथ गठबंधन किया है. उत्तर प्रदेश मे लगभग 2.5% राजभर है. मगर गोरखपुर-आजमगढ़ और बनारस की 70 सीटों पर उनका ख़ासा प्रभाव है. आजमगढ़ के मेहनगर से भारतीय समाज पार्टी (भासपा) की टिकट मिला है. कुल मिलाकर बीजेपी ने 8 सीटें भासपा को दी हैं. बीजेपी को उम्मीद है कि एमबीसी के सोशल इंजिनियरिंग के फॉर्मूले के सहारे वो पिछड़ी जातियों में सेंध लगा सकती है.

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