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सपा के 'मुगल-ए-आजम' को क्यों है अब भी सुलह की उम्मीद!

आजम खान इन दिनों सपा के दोनों धड़ों के बीच सुलह की बुझती हुई उम्मीदों में जान फूंकने की कोशिश कर रहे हैं और उन्हें अभी दोनों ही धड़ों का भरोसेमंद कहा जा रहा है।

सपा नेता आजम खान सपा नेता आजम खान
विजय रावत
  • नई दिल्ली,
  • 06 जनवरी 2017,
  • अपडेटेड 2:23 PM IST

समाजवादी पार्टी में जारी अंतर्कलह के बीच पार्टी के साथ-साथ परिवार भी दो खेमे में बंट गया है. जहां एक धड़ा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ रहकर चढ़ते सूरज को सलाम कर रहा है तो वहीं दूसरा धड़ा ऐसे नेताओं का है जिन्हें अब भी मुलायम सिंह के दमखम पर भरोसा है और वे नेताजी के साथ अपनी वफादारी छोड़ने को तैयार नहीं. इन दो धड़ों के बीच एक शख्सियत ऐसी भी है जो इन दिनों दोनों धड़ों के बीच सुलह की बुझती हुई उम्मीदों में जान फूंकने की कोशिश कर रहा है और जिसे अभी दोनों ही धड़ों का भरोसेमंद कहा जा रहा है. ये शख्स है अक्सर अपने विवादास्पद बयानों के चलते सुर्खियों में रहने वाले रामपुर के सांसद आजम खान.

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सपा और सरकार में सबसे कद्दावर 'बाहरी' हैं आजम
सपा में आजम खान के कद का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें पार्टी और सरकार में सैफई के बाहर का सबसे शक्तिशाली नेता कहा जाता है. वे समाजवादी पार्टी के सबसे बड़े मुस्लिम चेहरे हैं इसलिए भी उनकी महत्ता पार्टी के लिए बढ़ जाती है क्योंकि वे पार्टी के मुस्लिम-यादव गठजोड़ का एक बड़ा हिस्सा साधे हुए हैं. रामपुर उनका गढ़ माना जाता है जहां से अगर 1996 के चुनाव छोड़ दें तो वो 1980 से लगातार विधायक चुने जाते रहे हैं. 2012 के पिछले चुनाव की ही बात करें तो उन्होंने विरोधी कांग्रेसी उम्मीदवार डॉक्टर तनवीर अहमद खान पर 60 हजार से ज्यादा वोटों से जीत हासिल की थी. 1996 में जब वे एक बार विधानसभा चुनाव नहीं जीत सके तो उन्हें राज्यसभा के लिए चुना गया. अखिलेश यादव की कैबिनेट में उनके पास संसदीय कार्य, नगर विकास और वक्फ जैसे अहम विभाग हैं.

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मुलायम के सबसे भरोसेमंद लेकिन अमर सिंह से अदावत
69 साल के आजम खान को सबसे बड़े मुलायम परस्त नेताओं में माना जाता है. वे पार्टी के संस्थापकों में शामिल रहे हैं. हालांकि अमर सिंह के साथ उनका हमेशा से 36 का आंकड़ा रहा है. 2009 में जब रामपुर से अमर सिंह की करीबी जयाप्रदा को सपा ने उम्मीदवार बनाया और कल्याण सिंह की सपा में एंट्री हुई तो आजम खान मुलायम से नाराज हो गए. दोनों के बीच तकरार का परिणिति ये हुई कि आजम खान को पार्टी से बाहर कर दिया गया. हालांकि तब भी आजम ने मुलायम के खिलाफ कोई आपत्तिजनक बयान नहीं दिया. बताया जाता है कि तब भी आजम ने अपने दफ्तर से मुलायम की तस्वीर नहीं उतारी थी. पार्टी में वापसी के बाद आजम ने नवंबर 2014 में सबको अपनी ताकत का अहसास कराया जब उन्होंने रामपुर में मुलायम सिंह का शाही बर्थडे मनाया. उस दौरान यूपी की पूरी सरकार रामपुर में मौजूद थी.

सपा के घमासान में मध्यस्थ बने हुए हैं आजम
आजम खान फिलहाल समाजवादी पार्टी के मुलायम और अखिलेश खेमे के बीच एकमात्र शक्तिशाली कड़ी हैं. वे दोनों खेमे में सुलह का फॉर्मूला लेकर भी घूम रहे हैं. दरअसल इस घमासान के लिए जिस तरह अमर सिंह को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है वो अमर के साथ अपना पुराना हिसाब-किताब चुकता करने का आजम के लिए एक बड़ा मौका लेकर आया है. लेकिन आजम ये भी जानते हैं कि अगर सपा दो फाड़ होती है तो इससे उनका निजी नुकसान भी हो सकता है. दरअसल इन चुनावों के जरिए आजम अपने बेटे अब्दुल्ला आजम को सियासत में उतारने की तैयारी करे बैठे थे. उन्होंने उसके लिए रामपुर की स्वार टांडा सीट भी चुन रखी है लेकिन अगर सपा दो फाड़ होकर लड़ती है तो एक तो बेटे की जीत की संभावना पर असर पड़ेगा, दूसरा उन्हें और उनके बेटे को भी अखिलेश और मुलायम में से किसी एक को चुनना होगा. वैसे भी अखिलेश गुट के हावी होने और उसके अमर सिंह को सपा के बाहर कर देने पर अड़े रहने से आजम का मकसद तो बिना कुछ किए ही पूरा हो रहा है. आजम जानते हैं कि चुनाव के वक्त वे अभी दोनों ही धड़ों की मजबूरी हैं इसलिए उनकी बात को दूसरे नेताओं के मुकाबले ज्यादा तरजीह दी जाएगी. इसीलिए वे अंतिम वक्त तक सुलह की उम्मीद नहीं छोड़ना चाहते.

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