
यूपी विधानसभा चुनाव में तीन चरणों के दौरान विकास का मुद्दा हावी रहा, लेकिन चौथा चरण आते-आते सांप्रदायिकता की बयार बहने लगी. बीजेपी 'भगवा रंग' में दिखने लगी. फतेहपुर में आयोजित रैली में पीएम नरेंद्र मोदी के भाषण ने इस रंग को और गहरा कर दिया. मोदी के 'श्मशान' संबंधी बयान ने राजनीति में उबाल ला दिया. यही नहीं कभी 'आतंक की नर्सरी' कहे जाने वाले आजमगढ़ में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कांग्रेस, सपा और बसपा को 'कसाब' कहकर रही सही कसर पूरा कर दी.
यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस चुनाव में राम मंदिर जैसे पारंपरिक मुद्दे को ठंडे बस्ते में डालने वाली बीजेपी अचानक चौथे चरण में प्रवेश करते ही ऐसे मुद्दे पर क्यों चली गई? आखिर क्यों पीएम मोदी तक को 'कब्रिस्तान' और 'श्मशान' के साथ ही 'ईद' और 'दीवाली' के बहाने अपने पुराने तेवर में लौटना पड़ा? इसका जवाब पूर्वांचल की उस राजनीति में छिपा है, जिसके नेता 'हिन्दू हृदय सम्राट' कहे जाने वाले योगी आदित्यनाथ और 'मुस्लिमों के मसीहा' कहे जाने वाले मुख्तार अंसारी हैं.
यहां है योगी और अंसारी का दबदबा
शेष तीन चरणों में पूर्वांचल के कुल 25 जिलों में से 141 विधानसभा सीटों पर चुनाव होने वाले हैं. इनमें करीब 8 जिलों, गोरखपुर, देवरिया, कुशीनगर, महराजगंज, सिद्धार्थनगर, बस्ती, संतकबीर नगर, खलीलाबाद में योगी का प्रभाव है, तो करीब 6 जिलों आजमगढ़, मऊ, बलिया, गाजीपुर, जौनपुर और वाराणसी तक मुख्तार अंसारी का प्रभाव माना जाता है. इनमें अधिकांश सीटों पर हिन्दू बनाम मुस्लिम की राजनीति की जाती है. एक तरफ योगी का दबदबा है, तो दूसरी ओर अंसारी बंधुओं का.
बागी तेवरों के बाद भी बने अहम
इसी वजह से योगी आदित्यनाथ के कई बार बगावती तेवरों के बावजूद बीजेपी उनसे किनारा नहीं कर पाई, तो अंसारी बंधु सपा या बसपा के लिए महत्वपूर्ण बने रहे. जब सपा ने इनसे किनारा किया, तो बसपा ने हाथों-हाथ ले लिया. इस कड़ी में हम बाहुबली नेता अतीक अहमद को भुला नहीं सकते. इलाहाबाद, प्रतापगढ़ और कौशांबी में अपना रसूख रखने वाले अतीक अपनी छवि और उससे जुड़े वोट बैंक की वजह से राजनीतिक दलों के प्यारे रहे हैं, जिनके सामने राजा भैया की छवि भी मजबूत रही है.
सूबे की सत्ता की चाभी है पूर्वांचल
यूपी की राजनीति में पूर्वांचल का सबसे महत्वपूर्ण स्थान हैं. यहां से कई दिग्गज नेता निकले हैं. यहां वाराणसी से पीएम नरेंद्र मोदी, गाजीपुर से केंद्रीय मंत्री मनोज सिंहा और देवरिया से कलराज मिश्र की साख दांव पर लगी हुई है. राज्य की 403 सीटों में से 170 सीटें पूर्वांचल में आती हैं. राजनीतिक पंडितों की मानें तो जिस पूर्वांचल में जिस राजनीतिक दल की लहर होती है, सूबे की सत्ता पर वही काबिज होता है. ऐसे में हर दल ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. सत्ता के लिए सांप्रदायिकता की हवा भी सुख दे रही है.
पूर्वांचल के बाहुबली नेता
बयान जिन पर हुआ बवाल
श्मशान भी बनना चाहिए
'गांव में कब्रिस्तान बनता है, तो श्मशान भी बनना चाहिए. रमजान में बिजली मिलती है, तो दीवाली में भी मिलनी चाहिए. होली में बिजली मिलती है, तो ईद पर भी मिलनी चाहिए. कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए. किसी के साथ अन्याय नहीं होना चाहिए. धर्म और जाति के आधार पर बिल्कुल नहीं.' - नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
'कसाब' से मुक्ति दिलाएं
'यूपी को 'कसाब' से मुक्ति दिलाने की ज़रूरत है.मेरे कसाब कहने का कोई और अर्थ न लगाएं. कसाब से मेरा मतलब है 'क' यानी कांग्रेस, 'स' यानी समाजवादी पार्टी और 'ब' यानी बहुजन समाज पार्टी.'- अमित शाह, राष्ट्रीय अध्यक्ष, बीजेपी
सत्ता में नहीं आने देंगे
'यूपी की सरकार ने बहुसंख्यक समाज को जो पीड़ा दी है. समाज के सम्मान को रौंदने का जो पाप किया है. इन पीड़ा देने वाले कुत्तों को कभी हम सत्ता में नहीं आने देंगे.'- योगी आदित्यनाथ
शेष हैं तीन चरणों के चुनाव
फेज 5 27 फरवरी 52 सीट (11 जिले)
फेज 6 4 मार्च 49 सीट (07 जिले)
फेज 7 8 मार्च 40 सीट (07 जिले)