
सपा नेता और पूर्व सांसद अतीक अहमद एक बार फिर चर्चा में हैं. अतीक अहमद ने इस बार सीधे सीएम अखिलेश यादव को चुनौती दे डाली है. पिछले दिनों मारपीट के मामले में आरोपी बनाए गए अतीक अहमद ने कहा है कि मीडिया के दबाव में अगर उनका टिकट कटा, तो वो अपना टिकट खुद बना लेंगे. अपराध की दुनिया से सियासत में कदम रखने वाले अतीक अपनी ही पार्टी के सीएम को इस तरह चुनौती देते हैं और सरकार उनका कुछ बिगाड़ नहीं पाती है. आखिर कौन सी ऐसी मजबूरी है जो अतीक जैसे बाहुबली को बर्दाश्त करना पड़ता है.
अतीक अहमद के खिलाफ उत्तर प्रदेश के लखनऊ, कौशाम्बी, चित्रकूट, इलाहाबाद ही नहीं बल्कि बिहार राज्य में भी हत्या, अपहरण, जबरन वसूली आदि के मामले दर्ज हैं. 1989 में पहली बार विधायक बने अतीक अहमद ने 1991 और 1993 का विधानसभा चुनाव भी निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर लड़ा और जीत हासिल की. 1996 में समाजवादी पार्टी ने अतीक को अपना उम्मीदवार बनाया और वो जीते. 1999 में अतीक ने 'अपना दल' का दामन थाम लिया. उन्हें इस पार्टी के टिकट पर पहले चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा. लेकिन अगली बार जीत भी नसीब हुई. 2003 में अतीक अहमद ने फिर से समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया.
2004 के लोकसभा चुनाव में अतीक अहमद सपा के टिकट पर संसद पहुंचे. 2005 में बसपा विधायक राजू पाल की हत्या में नाम आने के बाद भी अतीक सांसद बने रहे. हालांकि चौतरफा बदनामी होने पर समाजवादी पार्टी ने 2007 में अतीक को पार्टी से बाहर निकाल दिया. गिरफ्तारी के डर से फरार चल रहे अतीक अहमद ने दिल्ली में सरेंडर कर दिया. 2012 में यूपी में समाजवादी पार्टी की सरकार आई तो अतीक अहमद साइकिल पर सवार हो गए. जमानत पर बाहर चल रहे अतीक को सपा ने हालांकि पार्टी में कोई पद नहीं दिया लेकिन वो अब कानपुर कैंट विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं.
सपा ने इस सीट से अतीक अहमद को अपना प्रत्याशी घोषित किया है. कानपुर कैंट विधानसभा क्षेत्र में मुस्लिम वोटरों की तादाद करीब पौने दो लाख है. इस सीट पर पिछले छह बार से बीजेपी का उम्मीदवार चुनाव जीतता आ रहा है. समाजवादी पार्टी इसी वोट बैंक को अपने खाते में लाने के लिए अतीक अहमद पर दाव लगाना चाहती है. पार्टी का मानना है कि अतीक अहमद जैसे मजबूत उम्मीदवार ही बीजेपी के प्रत्याशी को कड़ी टक्कर दे सकता है. क्योंकि दूसरी पार्टियां भी इस सीट पर मुस्लिम प्रत्याशी उतारती रहती हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव के लिए अब तक चार पार्टियां अपने मुस्लिम उम्मीदवार उतार चुकी हैं.
समाजवादी पार्टी अतीक अहमद की ही तरह बाहुबली मुख्तार अंसारी को लेकर 'सियासी प्रेम' दिखा रही है. बीते जून में अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल का विलय समाजवादी पार्टी में किया गया. सीएम अखिलेश यादव सहित पार्टी के कई बड़े नेताओं ने इस विलय का विरोध किया. ऐलान हुआ कि कौमी एकता दल का सपा में विलय नहीं होगा. लेकिन सपा के प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव मुख्तार के साथ खड़े रहे. पार्टी की चिंता है कि उसे मुख्तार को साथ नहीं लेने पर पूर्वांचल में अल्पसंख्यक वोटों का नुकसान झेलना पड़ सकता है. शिवपाल ने आगरा जेल में बंद मुख्तार के बड़े बेटे अब्बास अंसारी को समाजवादी युवजन सभा का प्रदेश सचिव बना दिया है.