
समाजवादी पार्टी और साइकिल पर अपने-अपने दावे लेकर जब पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव खेमे चुनाव आयोग पहुंचे तो ये तय माना जा रहा था कि सपा का नाम और चुनाव चिन्ह फ्रीज हो जाएगा और चुनाव आयोग दोनों खेमों को अलग नाम और चिन्ह के साथ चुनाव लड़ने के लिए कहेगा. यही वजह है कि सोमवार की शाम जब आयोग की ओर से अखिलेश यादव को ही समाजवादी पार्टी का असली कर्ताधर्ता करार दिया गया तो सब हैरान रह गए लेकिन आयोग के 40 से ज्यादा पन्नों वाले फैसले पर नजर डालें तो साफ है कि अखिलेश को साइकिल की सवारी यूं ही नहीं मिली है. ये हैं वो 5 वजहें जिनके चलते आयोग के अखाड़े में मुलायम को उनके ही बेटे ने पटखनी दे दी.
अधिवेशन को अवैध साबित नहीं कर पाए मुलायम
मुलायम खेमे की दलील थी कि समाजवादी पार्टी के संविधान के मुताबिक उसका अध्यक्ष ही पार्टी का अधिवेशन बुला सकता है इसलिए महासचिव रामगोपाल द्वारा बुलाया गया अधिवेशन अवैध है. ऐसे में उस अधिवेशन में लिए गए फैसले भी अवैध हैं लेकिन अखिलेश खेमे की दलील थी कि मुलायम ने खुद ही कभी सपा के संविधान का पालन नहीं किया. रामगोपाल यादव और खुद अखिलेश यादव को जिस तरह पार्टी से निकाला गया और फिर वापस लिया गया वो कतई संविधान के मुताबिक नहीं था. संविधान के तहत नियमित अंतराल पर पार्टी का अधिवेशन बुलाने की जो व्यवस्था थी उसका भी पालन नहीं किया जा रहा था.
5731 में से 4716 पदाधिकारी अखिलेश समर्थक
अखिलेश खेमे की ओर से रामगोपाल यादव ने अपने दावों के समर्थन में 228 में से 205 विधायकों, 68 में से 56 विधानपरिषद सदस्यों, 24 में से 15 लोकसभा-राज्यसभा सांसदों, राष्ट्रीय कार्यकारिणी के 46 में से 28 सदस्यों और राष्ट्रीय अधिवेशन में शामिल 4400 सदस्यों के हलफनामे सौंपे, मुलायम सिंह यादव के खेमे की ओर से ऐसा कोई समर्थक या उसका कोई हलफनामा पेश नहीं हुआ. कुल मिलाकर पार्टी के 5731 में से 4716 समर्थक अखिलेश खेमे के साथ थे।
अधिवेशन को अवैध साबित नहीं कर पाए मुलायम
मुलायम खेमे की ओर से दलीलें पेश करने के लिए 11 वकीलों की टीम आयोग में उतरी जबकि अखिलेश खेमे ने देश के जाने माने वकील कपिल सिब्बल को अपने केस की पैरवी के लिए उतारा. मुलायम खेमा सिर्फ रामगोपाल के बुलाए अधिवेशन को ही खारिज करता रहा लेकिन उसके पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं था कि जब पार्टी के तकरीबन सारे जनप्रतिनिधि और पदाधिकारी अखिलेश को अध्यक्ष मान चुके हैं तो मुलायम को पार्टी की कमान और साइकिल का निशान क्यों मिले?
पार्टी में बगावत से करते रहे इनकार
मुलायम सिंह यादव की ओर से तर्क दिया गया कि पार्टी में कोई बगावत या टूट नहीं हुई है क्योंकि रामगोपाल यादव के अधिवेशन में भी मुलायम सिंह यादव को मार्गदर्शक बनाया गया था. उन्हें पार्टी से निकाला नहीं गया था इसलिए यहां ये कहना कि पार्टी में यादव के खिलाफ कोई बगावत है, ठीक नहीं होगा. खुद अखिलेश यादव ने भी मुलायम की जगह राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने का कोई नामांकन पत्र नहीं भरा. लेकिन रामगोपाल खेमे ने जिस तरह अखिलेश के समर्थन में 90 फीसदी सदस्यों के हलफनामे पेश कर दिया उससे मुलायम खेमे का कलह न होने का तर्क कमजोर पड़ गया.
सांसदों-विधायकों का नहीं मिला साथ
चुनाव आयोग में मुलायम खेमा जहां ये मानने को ही तैयार नहीं था कि पार्टी में कोई मतभेद या बगावत हैं, वहीं रामगोपाल यादव की ओर से कपिल सिब्बल का साफ-साफ तर्क था कि पार्टी दो खेमे में बंट चुकी है और लोकतंत्र में जिस खेमे के पास सबसे अधिक निर्वाचित प्रतिनिधि हैं, वही चुनाव चिन्ह और पार्टी पर हक रखता है. आयोग के फैसले के बाद भी सिब्बल ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि चुनाव आयोग ने कई नजरियों से जांच पड़ताल के बाद ये फैसला सुनाया है. अखिलेश की ओर से जहां सभी दस्तावेज रखे गए वहीं मुलायम खेमे ने चुनाव आयोग के निर्देशों को अनदेखा किया जिससे साफ है कि उनके पास अपने तर्क के समर्थन में कोई दस्तावेज नहीं थे.