
पश्चिमी यूपी में चुनावी सियासत की चौपड़ बिछ चुकी है. सारे मोहरे अब तक अपनी जगह पर जम नही पाये हैं. अधूरी बिसात पर ही बीजेपी की सीडी और सपा की साइकिल चर्चा में है. किसानों के सरोकारों पर जाति और धर्म का मुलम्मा भारी पड़ रहा है. चुनाव का ऊँट भी पैडल मारता हुआ ही भागता दिखता है.
किसानों की सुनो!
बुढाना में गन्ना किसानों को शिकायत है कि उनकी समस्या पर किसी ने ध्यान नहीं दिया. स्थानीय किसानों के मुताबिक चुनाव भी खेत की तरह हैं. पांच साल में फसल कटने का मौसम आता है. जब हल चलता है तो बगुलों की तरह नेता भी जनता के पीछे भागते हैं. लेकिन फसल बोने के बाद कोई झांकने तक नहीं आता. खेती भगवान भरोसे ही हो जाती है. बस फसल काटने आते हैं नेता. इस रवैये से आजिज किसानों को सरकारों से उम्मीद तो नहीं लेकिन वोट तो देना ही है. सो देंगे.
दुकानदारों का दर्द!
किसानों की तरह दुकानदार भी नोटबंदी के दर्द से जूझ रहे हैं. उन्हें चुनाव में नेताओं के आश्वासनों पर कम ही भरोसा है. लोग मानते हैं कि सियासी गठबंधनों का किसी मजहब से कोई लेना-देना नहीं.
संप्रदाय की सियासत
नेताओ को चुनावी टीआरपी में किसानों से ज्यादा कानून-व्यवस्था और सुरक्षा की समस्या नजर आती है. कोई भगवा ताकत का दम भर रहा है तो कोई कैराना और शामली में हुए दंगों का. बीजेपी विधायक संगत सोम कहते हैं कि मुजफ्फरनगर दंगों और उसके बाद हुए पलायन को भूलना आसान नहीं है.
कांग्रेसी नेता पंकज मलिक की राय में नोटबंदी और सांप्रदायिक ताकतों से सुरक्षा ही चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा है.