
यूपी चुनाव के आखिरी दो चरणों में अब पूर्वांचल पर पूरा फोकस है. दो चरणों में 89 सीटों पर चुनाव होना है और सभी दलों ने इस इलाके में प्रचार अभियान में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. हालांकि, इन सीटों के अबतक के नतीजे बताते हैं कि बीएसपी की यहां अच्छी पकड़ है और मायावती के इस किले को भेद पाने के लिए तमाम दलों ने अपनी रणनीति बनाई है. लेकिन क्या ये आसान है. जानिए 4 कारण जिनसे मायावती के किले को भेद पाना किसी भी दल के लिए मुश्किल जान पड़ता है.
1. सोशल इंजीनियरिंग की नई परिभाषा
2007 में मायावती ने पूर्वांचल की 170 में से 97 सीटें जीत ली थीं तो बीएसपी को पूर्ण बहुमत हासिल हुआ था. हालांकि, 2014 के आम चुनाव में मोदी लहर के आगे बीएसपी साफ हो गई थी लेकिन 2017 में इसी जादू को दोहराकर बसपा लखनऊ पर कब्जे की तैयारी में है. 2007 में बीएसपी को ये सफलता दलित-ब्राह्मण समाज को साथ लाने की सोशल इंजीनियरिंग की रणनीति के चलते मिली थी. इस बार बीएसपी ने नए सोशल इंजीनियरिंग के जरिये इस इलाके को जीतने की रणनीति बनाई है. इस बार ब्राह्मण वोट के साथ-साथ पिछड़े, अति पिछड़े, मुस्लिम और अगड़ी जाति के वोटों को एकजुट करने पर फोकस है. अलग-अलग जाति में पकड़ रखने वाले नेताओं की पूर्वांचल में 100 से ज्यादा भाईचारा सभाएं कराई गईं और सीधे तौर पर वोटरों से जुड़ने की कोशिश बसपा ने की.
2. सांप्रदायिक कार्ड की काट
बीएसपी यूपी में चुनाव के पहले से आरोप लगाती रही है कि सपा और बीजेपी सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने वाले बयान देकर ध्रुवीकरण की कोशिश करेंगे. पूर्वांचल में आते-आते बीजेपी और सपा के बीच रमजान-श्मशान, ईद-दिवाली की बहस छिड़ भी गई. बीसएपी ने इसको ध्यान में रखते हुए सांप्रदायिक ध्रुवीकरण रोकने की तैयारी पहले से कर रखी थी. मऊ, गाजीपुर, बस्ती, बलिया और बनारस के लिए मुसलमान वोटरों को एकजुट करने के लिए अंसारी परिवार को जिम्मेदारी दी गई. वहीं ब्राह्मण मंत्री रहे विजय मिश्रा इसी इलाके के हैं. उन्हें ब्राह्मण वोटों को संभालने का जिम्मा दिया गया. वहीं बलिया के आसपास भूमिहार और यादवों को जुटाने के लिए अंबिका चौधरी को जिम्मा दिया गया.
3. हर चरण के लिए अलग रणनीति
इस इलाके से 170 सीटें आती हैं. पूर्वांचल का किला फतह करने के लिए बीएसपी ने तीन महीने पहले ही ताकत झोंक दी थी. सतीश चंद्र मिश्र, रामअचल राजभर, सुखदेव राजभर, रामकुमार कुरील सहित कई नेताओं को आगे कर अलग-अलग इलाकों को कवर किया गया. पार्टी के इन वरिष्ठ नेताओं ने स्थानीय स्तर के कार्यकर्ताओं को साथ लेकर लोगों से संपर्क किया और व्यक्तिगत संपर्क के जरिए वोट जुटाने की रणनीति पर पार्टी ने लगातार काम किया है.
4. सपा के पुराने धुरंधरों पर भरोसा
पूर्वांचल का किला फिर से फतह करने के लिए बीएसपी ने जमीनी पकड़ रखने वाले सपा के पुराने नेताओं को जोड़ा. पहले अंबिका चौधरी को पार्टी में लिया गया. फिर नारद राय को साथ लिया. ब्राह्मण मंत्री विजय मिश्रा को पार्टी में शामिल किया गया. ये सभी पूर्वांचल के ही हैं. इनपर भरोसा कर मायावती ने पूर्वांचल जीतने की रणनीति बनाई है. इन नेताओं के जरिए बीएसपी ने सपा और कांग्रेस गठबंधन से नाराज सपा के पुराने कार्यकर्ताओं को भी जोड़ने पर काम किया.