
पांच राज्यों में सिर्फ पंजाब ही ऐसा था जहां से बीजेपी के लिए बुरी खबर आई. लेकिन करीब से देखें तो इस हार के बादल में भी बीजेपी के लिए एक सुनहरी लीक छिपी है.
खोने को कुछ नहीं था
पंजाब से बीजेपी को यूं भी कुछ ज्यादा उम्मीदें नहीं थी. एक दशक के राज के बाद प्रदेश में मजबूत सत्ता-विरोधी लहर थी. लिहाजा चुनाव से पहले ही शिरोमणि अकाली दल-बीजेपी गठबंधन की हार को तय माना जा रहा था. साल 2012 में बीजेपी को 7.15 फीसदी वोट मिले थे. इस बार पार्टी को 5.4 फीसदी मत मिले. यानी ये नहीं कहा जा सकता कि राज्य में बीजेपी का सूपड़ा साफ हुआ.
K-फैक्टर की हवा निकली
बीजेपी के रणनीतिकार कांग्रेस से निपटना भलीभांति जानते हैं. लेकिन अगर पंजाब में आम आदमी की झाड़ू चलती तो पार्टी को ज्यादा दिक्कत होती. दिल्ली जैसे राज्य में केंद्र के अधिकारों की छाया में रहकर भी अरविंद केजरीवाल ने कई बार बीजेपी की नाक में दम किया है. अगर उन्हें एक अदद प्रदेश की सत्ता मिलती तो वो मोदी के खिलाफ और ज्यादा आक्रामक होते. ऐसी सूरत में राज्यसभा में भी आम आदमी पार्टी की ताकत बढ़ती. ये बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ाने वाले हालात होते.
गुजरात में राह आसान
मोदी का गृह राज्य उन चुनिंदा राज्यों में से एक है जहां आम आदमी पार्टी एक अरसे से पैठ बनाने की कोशिश कर रही है. बीजेपी के नेता जानते हैं कि यहां कांग्रेस के लिए वापसी बेहद कठिन है. लेकिन पाटीदारों के समर्थन से केजरीवाल गुजरात में चुनौती बनकर उभर सकते थे. मगर इन नतीजों के बाद इस बात की पूरी संभावना है कि गुजरात की जनता भी एक बार फिर मोदी मंत्र का जाप करे.
कमजोर हुई केजरीवाल की चुनौती
मौजूदा हालात में नरेंद्र मोदी की सियासत के मॉडल के इर्द-गिर्द कोई टिकता नजर नहीं आता. लेकिन केजरीवाल ने सत्ता में एक विकल्प के वायदे के साथ कदम रखा था. दिल्ली जैसे केंद्र-शासित प्रदेश में सरकार के अधिकार सीमित हैं. केजरीवाल की शिकायत रही है कि यहां उन्हें अपनी नीतियां लागू करने का मौका नहीं दिया गया. लेकिन पंजाब देश के अहम राज्यों में से एक है. यहां अगर जीत मिलती तो केजरीवाल 2019 में मोदी के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में गिने जाते. लेकिन अब इसकी संभावना कम है.