
उत्तर प्रदेश चुनावों के नतीजे आने शुरू हो गए हैं, रुझानों में बीजेपी को प्रचंड बहुमत मिलता दिखाई दे रहा है. अभी तक के रुझानों में चुनाव लड़ रहे बाहुबली नेता पिछड़ते दिख रहे हैं. चुनावों से पहले अंसारी बंधुओं ने बसपा का दामन थामा तो वहीं राजा भैय्या इस बार भी अपने क्षेत्र कुंडा से निर्दलीय ही चुनाव लड़े.
जानें बाहुबलियों की सीट का क्या है हाल -
विनय शकंर तिवारी - चिल्लूपार, पीछे बीएसपी- राजेश त्रिपाठी बीजेपी आगे
रघुराज सिंह उर्फ राजा भैय्या - आगे
अतीक अहमद - बसपा, मुरादाबाद पीछे - रीतेश कुमार गुप्ता बीजेपी आगे
मुख्तार अंसारी - बसपा, मऊ पीछे - बीजेपी समर्थक - महेंद्र राजभर आगे
सिबगतुल्ला अंसारी, मुख्तार अंसारी के भाई - मोहम्मदाबाद सीट - पीछे चल रहे हैं, बीजेपी की अलका राय आगे
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राजा भैया
सपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने महज 24 साल की उम्र में अपना राजनीतिक सफर शुरू किया था. राजा भैया ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर अपना चुनाव जीता था. अगला चुनाव में उनके खिलाफ प्रचार करने तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह कुंडा पहुंचे. कल्याण सिंह ने वहां कहा था कि 'गुंडा विहीन कुंडा करौं, ध्वज उठाय दोउ हाथ.' लेकिन बीजेपी उम्मीदवार राजा भैया से चुनाव हार गया था.
अतीक अहमद
अतीक का जन्म 10 अगस्त 1962 को हुआ था. मूलत वह उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती जनपद के रहने वाले हैं. पढ़ाई लिखाई में उनकी कोई खास रूचि नहीं थी. इसलिये उन्होंने हाई स्कूल में फेल हो जाने के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी. कई माफियाओं की तरह ही अतीक अहमद ने भी जुर्म की दुनिया से सियासत की दुनिया का रुख किया था. पूर्वांचल और इलाहाबाद में सरकारी ठेकेदारी, खनन और उगाही के कई मामलों में उनका नाम आया. बाद में उन्होंने सियासत का रुख किया. वर्ष 1989 में पहली बार इलाहाबाद (पश्चिमी) विधानसभा सीट से विधायक बने अतीक अहमद ने 1991 और 1993 का चुनाव निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लड़ा और विधायक भी बने. 1996 में इसी सीट पर अतीक को समाजवादी पार्टी ने टिकट दिया और वह फिर से विधायक चुने गए.
मुख्तार अंसारी
मुख्तार अंसारी फिलहाल जेल में बंद हैं, पिछले विधानसभा चुनाव में वह पेरौल पर बाहर आए थे. तब उन्होंने प्रचार के माध्यम से अपने पक्ष में हवा भी बनाई और जीतकर विधानसभा पहुंचे. इस बार उच्च न्यायालय ने पेरौल की उनकी याचिका खारिज कर उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया है, वहीं दूसरी ओर विरोधी दलों ने भी इस बार उनकी तगड़ी घेरेबंदी कर रखी है. दरअसल, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इस सीट से अपना उम्मीदवार नहीं उतारा है. भाजपा का भारतीय समाज पार्टी (भासपा) के साथ गठबंधन होने के बाद यह सीट उनके खाते में चली गई, भासपा के अध्यक्ष ओप्रकाश राजभर ने यहां से अपने समधी महेंद्र राजभर को टिकट दिया है.