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उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव की सियासी तपिश जैसे-जैसे बढ़ रही है, वैसे-वैसे बीजेपी नेताओं की बेचैनी भी बढ़ती जा रही है. पुष्कर धामी सरकार में कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य और उनके विधायक बेटे के बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो जाने के बाद अब मंत्री हरक सिंह रावत ने चुनाव लड़ने से मना कर दिया है. इसके अलावा बीजेपी विधायक उमेश शर्मा काऊ का रुख भी बदला-बदला नजर आ रहा. ऐसे में सवाल उठता है कि बीजेपी नेताओं के बढ़ती सियासी बेचैनी की वजह क्या है?
हरक सिंह रावत ने चुनावी मैदान छोड़ा
कांग्रेस छोड़कर पांच साल पहले बीजेपी में आए पूर्व मंत्री यशपाल आर्य की घर वापसी के बाद अब सबकी निगाहें कैबिनेट मंत्री डा हरक सिंह रावत पर टिकी हैं. हरक सिंह रावत भी मार्च 2016 में बीजेपी में शामिल हुए थे, जिनके साथ आठ और भी विधायक थे. सूबे में चुनाव की सियासी सरगर्मी के बीच हरक सिंह ने मंगलवार एक फिर से एलान किया कि विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छा नहीं है. उन्होंने कहा कि बीजेपी के सभी नेताओं को अपनी इच्छा से अवगत करा दिया है.
उमेश शर्मा ने नाराजगी सार्वजनिक कर दी
वहीं, बीजेपी विधायक उमेश शर्मा काऊ ने यह कह कर सियासत को और भी गरमा दिया है कि जुलाई में सरकार में नेतृत्व परिवर्तन के दौरान तीन विधायकों हरक सिंह रावत, सतपाल महाराज और यशपाल आर्य मंत्री नहीं बनना चाहते थे. उमेश शर्मा ने यह बात सार्वजनिक कर दी है, जिसे बीजेपी अभी तक इनकार करती रही है. उमेश शर्मा का यह बयान हरक सिंह रावत के चुनाव न लड़ने की इच्छा जाहिर करने के एक दिन बाद आया है.
बता दें कि मार्च 2016 में पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के नेतृत्व में नौ विधायकों ने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया था. इसके अलावा यशपाल आर्य और एक अन्य विधायक ने 2017 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए थे जबकि पूर्व केंद्रीय मंत्री सतपाल महाराज 2014 में कांग्रेस से बीजेपी में आए थे. इसके चलते हरीश रावत के अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार के खिलाफ उत्तराखंड में जबरदस्त माहौल बना और उन्हें चुनाव में हार के बाद सत्ता गवांनी पड़ी.
दलबदलुओं को बीजेपी ने दिया अहमियत
वहीं, बीजेपी ने कांग्रेस छोड़कर आने वाले सभी नेताओं को 2017 के विधानसभा चुनाव का टिकट दिया था. मार्च 2017 में त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व में जब उत्तराखंड में बीजेपी सरकार बनी तो 10 सदस्यीय मंत्रिमंडल में ठीक आधे यानी पांच मंत्री कांग्रेस से आने वाले नेताओं को बनाया गया. इनमें यशपाल आर्य, सतपाल महाराज, हरक सिंह रावत, सुबोध उनियाल व रेखा आर्य शामिल थीं.
सतपाल महाराज और हरक सिंह रावत वरिष्ठता के नाते खुद को मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में शुमार कर रहे थे, लेकिन इन्हें मौका नहीं मिला. बीजेपी ने अपने पुराने नेता त्रिवेंद्र सिंह रावत को सत्ता की कमान सौंप दी, लेकिन अब चुनाव से ठीक पहले उन्हें हटाकर तीरथ सिंह रावत को सीएम बनाया और फिर 3 महीने के बाद जुलाई में बीजेपी ने युवा चेहरे के तौर पर पुष्कर सिंह धामी को सरकार की कमान सौंपने का निर्णय लिया.
पुष्कर धामी के सीएम बनते ही बढ़ी नाराजगी
पुष्कर धामी के सीएम बनते ही कांग्रेस पृष्ठभूमि के तीन विधायकों की नाराजगी की खबरें सामने आ रही थी. तब भी यह चर्चा चली थी कि कुछ विधायक शपथ लेने को तैयार नहीं थे, हालांकि, केंद्रीय नेतृत्व के हस्तक्षेप के बाद सभी ने एक साथ मंत्री पद की शपथ ली. लेकिन, अब चुनाव से ठीक पहले सूबे के सियासी नब्ज को समझते हुए यशपाल शर्मा ने अपने बेटे के साथ घर वापसी कर गए हैं तो हरक सिंह चुनाव लड़ने से मना कर दिया है.
उमेश शर्मा को बीजेपी जाने से रोकने में सफल रही
दिलचस्प बात यह है कि यशपाल आर्य और उनके बेटे संजीव आर्य के साथ रविवार को रायपुर सीट से बीजेपी विधायक उमेश शर्मा काऊ भी कांग्रेस में शामिल होने के लिए दिल्ली आए थे. सोमवार को तीन ही नेता हरीश रावत के साथ कांग्रेस नेता राहुल गांधी के आवास पर पहुंच गए थे, लेकिन इसी दौरान बीजेपी के मीडिया प्रभारी आनन फानन में इसकी भनक लगी. बलुनी ने उमेश शर्मा से संपर्क किया और उन्हें कांग्रेस में जाने से रोक लिया. उमेश शर्मा काफी समय से नाराज चल रहे हैं और माना जा रहा है कि उन्हें मंत्री बनाने के आश्वासन के साथ रोका गया है.
उत्तराखंड में जिस तरह से राजनीतिक समीकरण बदल रहे हैं, उससे बीजेपी के लिए सत्ता में वापसी की चुनौती बढ़ती जा रही है. सत्ताविरोधी लहर दो सीएम बदलने के बाद भी खत्म नहीं हो रही है. किसान आंदोलन कुमाऊ के सियासी समीकरण को बिगाड़ कर रख दिया है, जो सीएम पुष्कर धामी के गढ़ में आता है. कांग्रेस का दलित सीएम के दांव का भी बीजेपी काट नहीं तलाश पा रही है. ऐसे में नेताओं के पार्टी को अलविदा कहने और चुनावी मैदान छोड़ने से बीजेपी के लिए चिंता बढ़ती जा रही है.