
उधम सिंह नगर जिला, उत्तराखंड का वो तराई क्षेत्र जहां पर किसानों का प्रभाव है, बंगाली वोटरों का वर्चस्व है और खुद सीएम पुष्कर सिंह धामी की कुर्सी है. इस जिले से विधानसभा की 9 सीटें निकलती हैं- जसपुर, काशीपुर, बाजपुर,गदरपुर, रुद्रपुर, किच्छा, सितारगंज, नानकमत्ता और खटीमा. वैसे तो इस क्षेत्र की हर सीट मायने रखती है लेकिन इस बार खटीमा कुछ ज्यादा ही हाई प्रोफाइल बन गई है. वजह सिंपल है- खुद पुष्कर सिंह धामी इस सीट से खड़े होने जा रहे हैं. वे इसी सीट से निवर्तमान विधायक हैं. अब जैसा उत्तराखंड की राजनीति का इतिहास रहा है, उनके सामने डबल चुनौती है. पहली चुनौती अपनी सीट जीतने की और दूसरी फिर से बीजेपी की सरकार बनाने की.
किसानों का प्रभाव, धामी की सीट
अब पुष्कर सिंह धामी दावा कर रहे हैं कि वे खटीमा सीट को आसानी से निकाल लेंगे. वे एक ऐसे मुख्यमंत्री साबित होंगे जो सीएम बनने के बाद भी अपनी सीट को बचा ले जाएंगे. उनका ऐसा सोचने के पीछे कई कारण हैं. सबसे बड़ा तो ये रहा कि अब तीनों कृषि कानून वापस हो चुके हैं. ये बात कम ही लोग जानते हैं कि किसान आंदोलन का केंद्र जरूर पंजाब से रहा, लेकिन उधम सिंह नगर जिला भी इस आंदोलन का बड़ा एपीसेंटर था. यहां के किसान भी कृषि कानून का विरोध कर रहे थे, वे भी राकेश टिकैत में अपना हीरो देख रहे थे. जब वहां पर लोगों से बात की जा रही थी, तब यही कहा जा रहा था कि इस बार बीजेपी के लिए ये डगर मुश्किल रहने वाली है. किसानों वाला वर्ग नाराज हो चुका है. लेकिन अब उस नाराजगी का इलाज कर दिया गया है. कृषि कानून वापस हो गए हैं, आंदोलन खत्म हो चुका है और बीजेपी सबकुछ नॉर्मल दिखाने की कोशिश कर रही है.
इस क्षेत्र की खटीमा सीट पर पिछले दो चुनावों से लगातार पुष्कर सिंह धामी ही जीत दर्ज कर रहे हैं. 2012 में उन्होंने कांग्रेस के देवेंद्र चंद को 20,586 मतों के भारी अंतर से हरा दिया था. फिर 2017 के चुनाव में जब मोदी लहर ने पूरे पहाड़ी क्षेत्र में भगवा फैला दिया था, तब धामी ने भी दूसरी बार खटीमा सीट पर जीत दर्ज की थी. उन्होंने कांग्रेस के भुवन चंद्र कापड़ी को 2709 मतों से पराजित किया था. इससे पहले 2009 और 2002 में कांग्रेस ने इस सीट पर जीत हासिल की थी. लेकिन धामी की एंट्री के बाद से बीजेपी का ये मजबूत गढ़ माना जाने लगा है.
बंगाली वोटर हैं निर्णायक
अब उधम सिंह नगर जिले में किसान अगर निर्णायक साबित होते हैं, तो कुछ सीटों पर बंगाली वोटरों का भी जबरदस्त असर है. इस जिले की 9 में से चार सीटें ऐसी हैं जहां पर बंगाली वोटरों का दिल जीतना हर पार्टी का मकसद भी है और सत्ता में पहुंचने का रास्ता भी. उधम सिंह नगर की सितारगंज सीट पर सबसे ज्यादा बंगाली आबादी है. 2012 तक तो इस सीट को हमेशा एक बंगाली ने ही अपने नाम किया है. 2012 के चुनाव में इस सीट से बीजेपी के किरण मंडल जीते थे. लेकिन चुनाव के बाद उन्होंने पाला बदला और वे कांग्रेस में शामिल हो गए. फिर उस सीट से उन्होंने इस्तीफा दिया और तब कांग्रेस के विजय बहुगुणा ने वो सीट जीतकर मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. इसके बाद 2017 में सितारगंज से बीजेपी के सौरभ बहुगुणा विधायक हैं. वे विजय बहुगुणा के ही बेटे हैं.
वैसे सितारगंज के अलावा किच्छा, रुद्रपुर और गदरपुर भी ऐसी सीटें हैं जहां पर बंगाली फैक्टर सबसे ज्यादा हावी रहता है. यही वजह है कि इस बार बीजेपी इन सीटों पर अपनी माइक्रो मैनेजमेंट कर रही है. रणनीति ऐसी रखी गई है कि बंगाली वोटरों को लुभाने का काम एक बंगाली को ही सौंप दिया गया है. इस समय उन चार सीटों पर पार्टी को जिताने की जिम्मेदारी बंगाल से लोकसभा सांसद लॉकेट चटर्जी ने अपने कंधों पर ले रखी है. उन्हीं की भाषा में बात कर उनसे सीधा संपर्क साधा जा रहा है.
उधम सिंह नगर जिले की हर सीट का समीकरण
जसपुर- जातीय समीकरण के हिसाब से चौहान जाति के लोगों का ज्यादा दबदबा है. 2017 में कांग्रेस के आदेश चौहान ने इस सीट पर एकतरफा जीत हासिल की थी. तब बीजेपी उम्मीदवार डॉक्टर शैलेंद्र मोहन सिंघल को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा.
काशिपुर- इस सीट पर जातीय समीकरण के लिहाज से करीब 62.63 प्रतिशत हिंदू, 35.6 प्रतिशत मुस्लिम, 1.87 प्रतिशत सिख और 1 प्रतिशत अन्य समुदाय के लोग हैं. इस सीट पर शुरुआत से ही बीजेपी का कब्जा रहा है. लगातार चार चुनाव जीते गए हैं. वर्तमान में बीजेपी के समर्थन से हरभजन सिंह चीमा विधायक हैं. वे चार बार इस सीट को अपने नाम कर चुके हैं.
बाजपुर- जातीय समीकरण के लिहाज से यहां सिख आबादी सबसे ज्यादा है. इसके बाद बुक्सा जनजाति समुदाय के लोग हैं. यहां करीब 25 प्रतिशत एससी, 9 प्रतिशत बुक्सा, करीब 10 प्रतिशत सिख, 8 प्रतिशत ब्राह्मण, 2 प्रतिशत राजपूत, 22 प्रतिशत मुस्लिम है. 2017 में इस सीट से बीजेपी के यशपाल आर्य ने जीत हासिल की थी. वे कांग्रेस छोड़ उस समय भाजपा में आए थे.
गदरपुर- जातीय समीकरण के लिहाज से सबसे ज्यादा आबादी सिख ओर पंजाबी मतदाताओं की है. अनुमान के मुताबिक 129000 मतदाताओं में 35684 पंजाबी कंबोज और अन्य जातियां बंगाली 20000, पर्वतीय 11000 है. 2017 में इस सीट से बीजेपी के अरविंद पांडे जीत गए थे. उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी राजेंद्र पाल को शिकस्त दी थी.
किच्छा- 2012 में ये रुद्रपुर से अलग होकर इसे एक नई सीट का दर्जा दिया गया था. 2012 और फिर 2017 के चुनाव में इस सीट पर लगातार दो बार कमल खिला है. खास बात ये है कि पिछले चुनाव में कांग्रेस के सबसे बड़े प्रत्याशी हरीश रावत भी किच्छा से हार गए थे. उन्हें बीजेपी के राजेश शुक्ला ने करारी हार दी थी.
सितारगंज- बहुगुणा परिवार की विरासत माने वाली इस सीट पर बंगाली और मुस्लिम वोट निर्णायक भूमिका निभाते हैं. 2017 में विजय बहुगुणा के बेटे सौरव बहुगुणा ने बीजेपी के टिकट से इस सीट पर जीत दर्ज की थी. 2002 से 2009 तक इस सीट पर बसपा का भी प्रभाव रहा था. लेकिन 2012 के बाद से लड़ाई बीजेपी बनाम कांग्रेस की रह गई.
नानकमत्ता- थारू समाज की सबसे ज्यादा आबादी रखने वाली इस सीट पर 2017 में बीजेपी ने कमल खिलाया था. पिछले चुनाव में बीजेपी के प्रेम सिंह ने ये सीट जीती थी. 2012 में भी प्रेम सिंह ही इस सीट से विधायक रहे थे.
खटीमा- पिछले दो चुनावों से लगातार पुष्कर सिंह धामी ही जीत दर्ज कर रहे हैं. 2012 में उन्होंने कांग्रेस के देवेंद्र चंद को 20,586 मतों के भारी अंतर से हरा दिया था. 2017 में भी धामी ने दूसरी बार खटीमा सीट पर जीत दर्ज की थी.