
पहाड़ी राज्य उत्तराखंड की राजनीति कई उतार-चढ़ाव से भरी हुई है. हर चुनाव यहां पर कई नाटकीय मोड़ लेकर आया है. हर सरकार ने समय-समय पर कार्यकाल खत्म होने से पहले ही अपना सीएम बदला है. लेकिन उत्तराखंड की राजनीति का एक किस्सा ऐसा भी है, जहां पर सीएम बनने के बाद भी एक नेता के खूब पसीने छूट गए थे. खतरा मंडराने लगा था कि कहीं सीएम की कुर्सी हाथ से गंवानी ना पड़ जाए. हम बात कर रहे हैं कि बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व सीएम भुवन चंद्र खंडूरी की. 2007 के उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में जब भाजपा ने अपनी सरकार बनाई थी, तब बीसी खंडूरी को मुख्यमंत्री बनाया गया था.
सीएम बनने के बाद 'सुरक्षित सीट' की तलाश
उस समय बीसी खूंडूरी गढ़वाल लोकसभा क्षेत्र से सांसद हुआ करते थे. इस वजह से उन्होंने 2007 का विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा था. अब चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन प्रचार जोरदार रहा. बीजेपी अपनी सरकार बनाने में सफल हो गई. बीजेपी उस चुनाव में अपने दम पर बहुमत तो हासिल नहीं कर पाई, लेकिन उत्तराखंड क्रांति दल और दूसरे निर्दलियों की मदद से सरकार बनाने में कामयाब रही. अब सरकार बनते ही बीजेपी ने अनुभव को तरजीह देते हुए बीसी खंडूरी को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला कर लिया. हाईकमान के इस फैसले ने खंडूरी समर्थकों को उत्साह से भर दिया था. लेकिन एक सवाल भी था, सीएम साहब राज्य की विधानसभा का सदस्य कैसे बनेंगे? अगर 6 महीने के अंदर चुनाव लड़ विधानसभा नहीं पहुंचा गया तो उनकी सीएम कुर्सी जा सकती थी. ऐसे में तब सरकार बनाने के बाद बीसी खंडूरी और उनके सलाहकारों का अगला बड़ा मिशन शुरू हो गया.
सीएम के लिए एक ऐसी सीट की तलाश करनी थी जहां से वे आसानी से चुनाव जीत जाते. अब खंडूरी के समर्थक और सलाहकारों ने उन्हें कई सुझाव दिए थे, लेकिन खुद सीएम का दिल सिर्फ एक सीट के प्रति लगा हुआ था. उनकी इच्छा थी कि वे पौड़ी सीट से चुनकर आएं...लेकिन दुविधा ये थी कि वहां से उस समय एक निर्दलीय यशपाल बेनाम विधायक बने हुए थे. उस चुनाव में उनका जीतना भी खूब सुर्खियों में रहा था. एक तरफ उन्होंने बीजेपी के बड़े नेता तीरथ सिंह रावत को हरा दिया था तो वहीं एनडी तिवारी की सरकार में शिक्षा मंत्री रहे नरेंद्र सिंह भंडारी को तीसरे स्थान पर धकेल दिया था.
वो निर्दलीय विधायक जो सीएम के सामने भी नहीं झुका
यहां पर ये जानना भी जरूरी है कि यशपाल बेनाम तब अपना पहला ही चुनाव लड़े थे, यानी की वे पहली बार विधानक बनकर पहुंचे थे. इससे पहले तक वे पौड़ी नगर पालिका के अध्यक्ष हुआ करते थे. लेकिन 2007 में उन्होंने बतौर निर्दलीय अपनी किस्मत आजमाई और कई दिग्गजों को धूल चटा गए. बीजेपी के तीरथ सिंह रावत ने उन्हें बहुत कड़ी टक्कर तो दी लेकिन अंत में चुनावी नतीजे घोषित हुए तो महज 11 वोट से यशपाल बेनाम ने वो सीट अपने नाम कर ली. अब पहली जीत तो किसी के लिए भी खास रहती है, उसमें भी अगर ऐसे दिग्गजों को हराकर वो मिली हो तो उसके मायने कई गुना बढ़ जाते हैं. फिर यशपाल बेनाम तो वैसे भी सक्रिय राजनीति में अपना एक अलग मुकाम बनाना भी चाहते थे, ऐसे में पौड़ी सीट से उन्होंने अपनी उम्मीदवारी मजबूती से पकड़े रखी.
लेकिन दूसरी तरफ सीएम खूंडरी को उसी सीट से चुनाव लड़ राज्य की विधानसभा में पहुंचना था. ऐसे में तैयारी की गई कि यशपाल बेनाम को पौड़ी सीट खाली करने के लिए बोला जाएगा. वो सीट छोड़ेंगे तभी वहां से खंडूरी चुनाव जीत विधानसभा पहुंचेंगे. अब खंडूरी के कई समर्थक गए, बीजेपी कार्यकर्ता गए, दिग्गज नेताओं ने भी चक्कर काटे, लेकिन सभी के हाथ निराशा ही आई. यशपाल बेनाम ने अपनी सीट छोड़ने से ही मना कर दिया. जी हां, यशपाल निर्दलीय जरूर थे, लेकिन अपनी सीट छोड़ने को राजी नहीं, फिर चाहे राज्य का मुख्यमंत्री ही क्यों ना अपील कर दे. उनका फैसला एकदम स्पष्ट था, वे किसी के लिए भी अपनी सीट नहीं छोड़ने वाले थे.
अब किसी भी राज्य के किसी भी मुख्यमंत्री के लिए ये अपमानजनक किस्सा माना जाएगा. एक तरफ किसी भी सीएम के लिए सीट छोड़ने के लिए कई विधायक आगे आ जाते हैं. कई बार इस बात पर लड़ाई हो जाती है कि कौन सा विधायक सीएम के लिए अपनी सीट कुर्बान करेगा. लेकिन उत्तराखंड की राजनीति में अलग ही सियासत चल रही थी. सीएम खंडूरी को विधानसभा पहुंचना था, समय कम था लेकिन यशपाल बेनाम मानने से इनकार करते रहे.
बीजेपी का मास्टर स्ट्रोक
ऐसे में सीएम की सुरक्षित सीट ढूंढने का मिशन थोड़ा बदला गया. खंडूरी का मोह पौड़ी सीट से कम करवाया गया, वहीं दूसरी तरफ बीजेपी ने एक बड़े दांव की तैयारी की. वो दांव था कांग्रेस विधायक को अपने पाले में करने की जुगत. फैसला लिया गया कि किसी भी तरह से धुमाकोट सीट से कांग्रेस विधायक TPS रावत को अपने पाले में किया जाएगा. सोच ये थी कि उनसे इस्तीफा दिलवाकर सीएम खंडूरी को वहां से चुनाव लड़वा दिया जाएगा. अब निर्देश स्पष्ट थे, लिहाजा कार्यकर्ता और हर दिग्गज नेता TPS रावत को मनाने में लग गए. बड़े-बड़े ऑफर दिए गए, कई वादे हुए और नतीजा ये निकला कि कांग्रेस को बड़ा झटका देते हुए TPS रावत ने अपनी जीती हुई सीट से इस्तीफा दे दिया.
अब बीसी खंडूरी का रास्ता साफ हो चुका था. उन्होंने धुमाकोट सीट से चुनाव लड़ा और एक बड़ी और आसान जीत हासिल कर ली. उस चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के सुरेंद्र सिंह नेगी को 14 हजार वोटों से हरा दिया. लेकिन उनके समर्थकों के दिल में ये टीस रह गई कि एक निर्दलीय विधायक ने सीएम के लिए अपनी सीट खाली करने से मना कर दिया. यशपाल बेनाम के समर्थक बताते हैं कि उस समय बीजेपी कार्यकर्ताओं ने कई मौकों पर उन्हें डराया-धमकाया था, ऐसा भी देखने को मिला था कि जब-जब पौड़ी में सरकारी कार्यक्रम हुआ तो विधायक यशपाल को न्योता नहीं दिया गया. कई बार उन पर इशारों पर तंज कसा गया. ऐसे में लंबे समय तक एक 'साइलेंट जंग' चलती रही.
अब कहां है वो निर्दलीय विधायक?
लेकिन वो 2007 की कहानी है. 15 साल बाद उत्तराखंड की राजनीति पूरी बदल चुकी है. जिन यशपाल बेनाम ने सीएम खंडूरी के लिए अपनी सीट खाली नहीं की थी, आज वे बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. वहीं बीसी खंडूरी भी अब खुद राजनीति में ज्यादा सक्रिय नहीं हैं लेकिन उनके बच्चे उनकी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. एक तरफ उनकी बेटी ऋतु खंडूरी यमकेश्वर सीट से बीजेपी विधायक थीं तो वहीं उनके बेटे मनीष खंडूरी पौड़ी लोकसभा सीट से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़े थे. लेकिन आगामी चुनाव से पहले खंडूरी की बेटी का पत्ता साफ कर दिया है. उनकी जगह रेणु बिष्ट को मौका दिया गया है. मतलब उत्तराखंड की राजनीति में अभी और बड़े और नाटकीय मोड़ आने वाले हैं.
नोट: खबर बनाने में कुछ इनपुट मनु पंवर के यूट्यूब चैनल से लिया गया है