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उत्तराखंड में खटीमा विधानसभा सीट पर कंग्रेस के भुवन कापड़ी ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को हराकर सियासी पंडितों को चौंका दिया. भुवन पिछले चुनाव में भी धामी से केवल 2700 मतों के अंतर से हारे थे. इस बार वे 6951 मतों से जीते हैं. मुख्यमंत्री का चेहरा होने के बावजूद भी धामी को कांग्रेस ने कड़ी टक्कर दी. कांग्रेस के वोट काटने के लिए AIMIM के प्रत्याशी ने काफी कोशिश की थी कि वो मुस्लिम वोटों पर सेंध लगाए लेकिन कुछ भी कामयाबी ना मिलने के कारण लगभघ सभी मुस्लिम वोट कांग्रेस को ही मिले. बता दें कि यहां 9000 मुस्लिम मतदाता हैं.
पर्वतीय वोटों में कांग्रेस के भुवन ने जमकर सेंध लगाई. यहां के 42 हजार पर्वतीय वोटों में कांग्रेस के प्रत्याशी की पकड़ बहुत अच्छी देखी गई. ऐसा भी माना जा रहा है कि भाजपा के साथ पार्टी के ही लोगों ने भीतरघात किया है. धामी को कुल दस राउंड में 40675 और कापड़ी को 47626 मत मिले हैं. यह भी माना जा रहा है कि भाजपा के कद्दावर नेताओं ने भी धामी के खिलाफ काम करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी.
कुल एक लाख तेरह हजार वोटों वाली वीवीआईपी खटीमा विधानसभा में आप के एसएस कलेर और BSP के रमेश राणा ने थारु जनजाति के 28 हजार वोटों पर नजर रखी लेकिन वो वोट भी कांग्रेस के भुवन को ही जिताते दिखे. कलेर को उम्मीद थी वो कम से कम पांच हजार ओर BSP के राणा भी पांच हजार वोट तो लेंगे ही लेकिन कलेर को कुल 749 तथा BSP के रमेश राणा को 920 ही मत मिल पाए.
इसके पीछे थारु जनजाति की जमीनों (भूमि) को भाजपा की सत्ता में आने के बाद कब्जा कर लिए जाने की अफवाह फैलने का कारण रहा. कुल मिलाकर धामी आज भी पूरे आत्मबल और जोश से लबरेज तो दिखे लेकिन हार के बाद उनका मनोबल कम हुआ ही है. कांग्रेस और भाजपा में जबरदस्त कांटे का मुकाबला रहा. हर राउंड में कांग्रेस औसतन एक हजार मत के अंतर से बढ़त बनाती चली गई. भाजपा के बड़े नेता भी नाम ना लेने की शर्त पर बोल रहे हैं कि धामी के हारने का कारण उनके अगल-बगल रहने वाले स्थानीय लोगों के कुछ ऐसे कारनामे थे, जो वो लोग सीएम के नाम पर व्यक्तिगत स्वार्थ साधने पर लगे रहे. इसका जनता में गलत संदेश गया.
बरेली के एक चिकित्सक डॉक्टर ललित बिष्ट जो पिछले चुनाव में धामी के विरोध में यहां से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़कर लगभग दस हजार मत लेकर तीसरे नम्बर पर रहे थे. वो यहीं के रहने वाले थे और चुनाव के ठीक पांच दिन पहले खटीमा आ गए थे और धामी के विरोध में खूब काम किया.
कुल मिलाकर इसे खटीमा का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि अगर धामी यहां से जीतते तो खटीमा के दिन निश्चित रूप से बदल जाते. धामी के मुख्यमंत्री रहते खटीमा में विकास के काफी काम हुए जो लगभग 20 सालों के बराबर है , जिसका अब कई मतदाताओं ने दुःख भी जताया. अब सबको लग रहा है धामी के जितने से खटीमा का नाम आज पूरे देश में काफी आगे हो जाता. हालांकि यहां के पड़ोसी जनपद चम्पावत के भाजपा विधायक कैलाश गाहतोड़ी ने कहा कि वो धामी के लिए अपनी सीट छोड़ देंगे, जिस कारण माना जा रहा है कि धामी एक बार फिर सीएम बन सकते हैं.
इनपुट- राजेश छाबड़ा