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उत्तराखंड में नए जिलों का गठन बना चुनावी मुद्दा, बीजेपी-कांग्रेस में शह-मात का खेल जारी

Uttarakhand election issue: कांग्रेस ने पांच साल बाद फिर सत्ता में आने की स्थिति में नौ नए जिले बनाने की घोषणा की है. वहीं, पहली बार चुनाव मैदान में उतर रही आम आदमी पार्टी ने भी इस मुददे को लपका है.

हरीश रावत और पुष्कर धामी हरीश रावत और पुष्कर धामी
aajtak.in
  • नई दिल्ली ,
  • 20 दिसंबर 2021,
  • अपडेटेड 3:01 PM IST
  • कांग्रेस ने उत्तराखंड में 9 नए जिले बनाने का वादा किया
  • आयोग की रिपोर्ट पर बीजेपी नए जिले बनाएगी
  • आम आदमी पार्टी ने भी 6 नए जिले बनाने का वादा किया

उत्तराखंड विधानसभा चुनाव का औपचारिक ऐलान भले ही न हुआ हो, लेकिन सियासी दलों ने अपनी-अपनी ताकत झोंक रखी है. 2017 चुनाव की तरह बीजेपी 2022 में प्रदर्शन दोहराने के लिए मशक्कत में जुटी है तो कांग्रेस पांच साल बाद सत्ता में वापसी की कोशिश के लिए बेताब है. इस बार के चुनावी संग्राम में सबसे बड़ा मुद्दा नए जिलों के गठन का है, जिसे लेकर कांग्रेस, बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच शह-मात का खेल जारी है. 

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बता दें कि उत्तराखंड का गठन हुए दो दशक से ज्यादा हो गए हैं. नवंबर 2000 में उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड बना तो 13 जिले शामिल किए गए. पिछले दो दशक में नए जिलों के गठन की मांग उठी है, लेकिन अभी तक एक भी जिला बढ़ नहीं सके हैं. हालांकि, इस दौर में निशंक सरकार से लेकर हरीश रावत सरकार तक ने नए जिलों के गठन को लेकर कदम बढ़ाया, लेकिन अमलीजामा नहीं पहना सके. वहीं, चुनाव में फिर से बीजेपी और कांग्रेस नए जिलों के गठन को लेकर वादा कर रहे हैं. 

निशंक ने बढ़ाया था कदम

उत्तराखंड में नए जिले बनाने की मांग को सबसे पहले 15 अगस्त, 2011 को स्वतंत्रता दिवस पर तत्कालीन बीजेपी सरकार के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने पूरा करने के लिए कदम बढ़ाया था. निशंक ने उत्तराखंड में कोटद्वार, यमुनोत्री, डीडीहाट और रानीखेत को नए जिले बनाने की घोषणा की थी, लेकिन कुछ ही दिन बाद उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ गया. इसके चलते नए जिलों के गठन का सपना साकार नहीं हो सका और 2012 में बीजेपी के सत्ता से बेदखल हो जाने के बाद यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया.

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2017 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले तत्कालीन सीएम हरीश रावत ने साल 2016 में उत्तराखंड में नए जिले बनाने का दांव चला. रावत ने एक साथ नौ नए जिले बनाने का ऐलान किया, लेकिन इस दिशा में कोई कदम नहीं बढ़ा सके. इसकी वजह यह रही कि साल 2017 के चुनाव में कांग्रेस ने बुरी तरह मात खाई और सत्ता से बेदखल हो जाने के बाद तो नए जिलों के गठन का मामला किसी की प्राथमिकता में नहीं रहा. 

साल 2017 में उत्तराखंड की सत्ता में आई बीजेपी ने साढ़े चार साल नए जिलों के गठन को लेकर कोई स्पष्ट स्टैंड नहीं लिया था, लेकिन अब चुनाव से ठीक पहले पार्टी ने कहा है कि नए जिलों के गठन के लिए बनाए गए आयोग की रिपोर्ट के आधार पर ही कोई फैसला लिया जाएगा. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक नए जिलों के गठन पर एक सुर में यह बात कह रहे हैं. 

वहीं, कांग्रेस ने पांच साल बाद फिर सत्ता में आने की स्थिति में नौ नए जिले बनाने की घोषणा की है. वहीं, पहली बार चुनाव मैदान में उतर रही आम आदमी पार्टी ने भी इस मुददे को लपका है. आम आदमी पार्टी ने बीच का रास्ता अख्तियार किया है और सूबे में छह नए जिले बनाने का वादा किया है.कांग्रेस नौ तो आम आदमी पार्टी छह नए जिलों के गठन का वादा लेकर कर चुनाव में उतर रही हैं. ऐसे में अब यह देखना है कि 2022 के चुनाव में नए जिलों के मामले में लोग किस दल पर भरोसा करते हैं. 

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