
फिल्म 420 IPC हाल ही में रिलीज हुई है. इस फिल्म के डायरेक्टर मनीष गुप्ता ने की Aajtak.in से बातचीत की. मनीष गुप्ता इससे पहले सेक्शन 375 और अमिताभ बच्चन की ब्लॉकबस्टर फिल्म 'सरकार' को लिख चुके हैं. इन फिल्मों के लिए उन्हें सराहना और कई अवॉर्ड्स के नॉमिनेशन भी मिले हैं. अब मनीष गुप्ता ने आजतक को बताया है कि कैसे उन्हें फिल्म 420 IPC का आईडिया आया? साथ ही उन्होंने विनय पाठक, रणवीर शोरी और गुल पनाग को फिल्म में लेने का फैसला क्यों किया था? आइए जानते हैं.
सवाल: आपको 420 IPC फिल्म बनाने का आईडिया कहां से आया?
मनीष: मैं अपनी फिल्म सेक्शन 375 के लिए रिसर्च कर रहा था. इसको तीन साल लगे थे. मैं कोर्ट में मामलों की सुनवाई के लिए जाता था. मैं वकीलों से भी मिला. तब वहां कई इकोनॉमिक ऑफेन्स के केस मैंने देखे. मैंने देखा कि इकोनॉमिक ऑफेन्स का जो केस होता है वो बहुत दिलचस्प होता है. वहां से मुझे आईडिया आया. मुझे लगा कि यार इसपर एक फिल्म बनानी चाहिए. ऐसी फिल्म कोई बनी नहीं है.
सवाल: आपने रणवीर शोरी और विनय पाठक को इस फिल्म के लिए क्यों चुना?
मनीष: विनय पाठक का जो किरदार है, वो एक सीए है. वो रहस्मयी आदमी है. उसे देखकर आप समझ नहीं पाओगे कि ये शरीफ आदमी है या उचक्का है. लेकिन वो पढ़ा-लिखा और समझदार भी है. मुझे विनय पाठक के अलावा कोई इस रोल के लिए अच्छा नहीं लगा. वो मेरी पहली और आखिरी चॉइस थे. रणवीर शोरी और मैं कॉलेज में एक साथ थे. 28 साल बाद हम फिल्मफेयर अवॉर्ड्स नाईट पर मिले और मैंने उन्हें बताया कि मैं ऐसी फिल्म बना रहा हूं. उन्होंने स्क्रिप्ट पढ़ी और ये उन्हें पसंद भी आई. गुल को मैंने एक रीसेंट सीरीज में देखा था. मैंने उन्हें स्क्रिप्ट दी तो उन्हें इसकी डिटेलिंग पसंद आयी, इसलिए उन्होंने हां बोल दी. रही बात रोहन विनोद मेहरा की तो यह जो किरदार है, वो 28 साल का लॉयर है, जो अच्छी इंग्लिश बोलता है और समझदार है. रोहन को आप देखेंगे तो वो बहुत पॉलिशड जेंटलमैन जैसे हैं. इसलिए वो सही चॉइस थे इस फिल्म के लिए.
सवाल: विनय पाठक और रणवीर शोरी दोस्त हैं, तो सेट्स पर उनकी केमिस्ट्री कैसी थी?
मनीष: सेट पर वो दोनों खूब मस्ती करते थे. दोनों छोटे बच्चों की तरह मस्ती करते थे और माहौल को हल्का-फुल्का रखता है. लंच टाइम जब होता था विनय पाठक, रणवीर शोरी और गुल पनाग साथ में मिलकर किसी एक की वैनिटी वैन में खाना खाते थे. तीनों की बहुत अच्छी दोस्ती भी है.
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सवाल: सेक्शन 375 एक बढ़िया फिल्म थी, जिसे आपने बनाया. उसका आईडिया आपको कहां से आया था?
मनीष: इस फिल्म का आईडिया मुझे एक्टर शाइनी आहूजा के केस से आया था. शाइनी आहूजा को मैं अच्छे से जनता था. उनकी पत्नी को भी अच्छे से जनता था. मैं उनके साथ फिल्म बना रहा था. जब शाइनी का केस सामने आया तो मैं भागा-भागा ओशिवारा पुलिस थाने पहुंचे. उन्होंने मुझे कहा कि हमने पता लगाया है कि सेक्स हुआ है लेकिन अभी यह पता लगाया जा रहा है कि मर्जी से हुआ है या नहीं. मैंने उन्हें कहा कि जब आपको पता नहीं है कि मर्जी से है या नहीं, तो आपने शाइनी को अंदर जेल में कैसे डाल दिया. तब मुझे डीसीपी ने समझाया कि देखो ये जो कानून है सेक्शन 375/376 उसके तहत हमें ऐसा करना पड़ा. लड़की ने शिकायत की है तो ऐसा करना पड़ा हमें. इसमें हम कुछ नहीं कर सकते. तब मैंने सोचा कि ये कानून तो बहुत खतरनाक है. मैंने शाइनी की पत्नी अनुपम से बात की तो उन्होंने कहा कि वो बेकसूर हैं. मैंने उसकी नौकरानी माधुरी के बयान को पढ़ा था. वो बयान हिंदी में था. उसको इतने भयानक तरीके से लिखा गया था. जितना मैं शाइनी को जनता हूं वो घमंडी है. उसको अपने लुक्स और स्टारडम पर घमंड था, आज भी है. माधुरी ने ऐसा ही लिखा था. मुझे माधुरी के उस बयान में ऐसा ही लगा. अब मुझे नहीं पता कि सच क्या है. लेकिन मैं चक्कर में पड़ गया था. मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं शाइनी की पत्नी पर भरोसा करूं या माधुरी के बयान पर. ये बात मुझे बहुत दिलचस्पी लगी और इसी को सोचकर मैंने इस फिल्म को लिखा. मैंने 2016 में इस फिल्म को लिखना शुरू किया था.
सवाल: सरकार फिल्म आपने लिखी थी?
मनीष: डायरेक्टर राम गोपाल वर्मा का यह आईडिया था. उन्होंने मुझे कहा था कि मुझे बाला साहिब ठाकरे पर फिल्म बनानी है. वो एक ऐसे आदमी हैं जो कानून से ऊपर है और अपने आप में कानून है. फिर मैंने बाला साहिब ठाकरे के परिवार पर रिसर्च की और फिल्म लिखी.
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सवाल: राम गोपाल वर्मा से आपकी मुलाकात कैसे हुई? आपको कैसे उनके लिए फिल्म लिखना का मौका मिला?
मनीष: मैं दरअसल इंजीनियर हूं. मैंने इंजीनियरिंग छोड़कर विज्ञापन एजेंसी में नौकरी पकड़ी थी. मैं एड फिल्म लिखा था और मैंने छोटी-मोटी आर्ट फिल्म भी बनाई थी. फिर मैंने फिल्म 'कंपनी' देखी. राम गोपाल वर्मा की फिल्म 'कंपनी' देखकर मैं इतना प्रभावित हुआ कि मुझे लगा कि मुझे बस उन्हीं के साथ काम करना है. मैंने उन्हें अप्रोच किया, उनके ऑफिस गया. लेकिन राम गोपाल वर्मा ने मुझे डेढ़ साल तक इग्नोर किया. एक अफसर हैं दया नायक, तो मैंने उनका नाम लिया. उन्होंने दया नायक का नाम सुनकर उन्होंने मुझसे बात की और फिर उन्होंने मुझे ऑफर दिया. उस साल मैंने उनकी चार फिल्में लिखी थीं.