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आहना कुमरा की हालिया दो रिलीज फिल्में लॉकडाउन इंडिया और सलाम वेंकी की चर्चा है. एक फिल्म में आहना जहां पायलट के किरदार में हैं, तो वहीं सलाम वेंकी में जर्नलिस्ट बनी हैं. लिपस्टिक अंडर माय बुर्का फिल्म से लाइमलाइट में आईं आहना मानती हैं कि इतने सालों बाद भी फिल्मों में उनका स्ट्रगल जारी है. आखिर इसके पीछे का कारण क्या है, वो हमसे शेयर करती हैं.
इस इंडस्ट्री में आपका कोई दोस्त नहीं होता
इंडस्ट्री में अपनी जमीन तलाशने की बात पर आहना कहती हैं, एक आउटसाइडर होने के नाते मेरा स्ट्रगल हमेशा चलता रहेगा. जमीन तलाशने की जद्दोजहद बनी ही रहेगी, इसका कारण यही है कि हम जैसे लोगों का इस इंडस्ट्री में कोई ताऊ, चाचा, आंटी, भतीजा नहीं है, जो हमारे लिए किसी से बात करे. जैसा कि यहां हम देखते हैं कि फलां के लिए कॉल्स या पैरवी फॉरन डायरेक्टर-प्रोड्यूसर के पास पहुंच जाती है. मैं तो अभी भी खुद को आउटसाइडर ही मानती हूं.
हालांकि इसका एक पहलू यह भी है कि अगर आप एक बार किसी अच्छे लोगों के साथ जुड़ जाते हैं, तो फिर आपके लिए राहें आसान हो जाती है. ये मेरी खुशकिस्मती समझूंगी कि मेरे स्ट्रगल में अच्छे लोग जुड़े हैं. हम आउटसाइडर्स तो इंडस्ट्री के दरवाजे के बाहर खड़े होते हैं, और अपनी बारी का इंतजार करते हैं. उस एक मौके के लिए आपकी करियर का दस से पंद्रह साल कैसे गुजर जाता है, इसकी आपको खबर भी नहीं होती है. हमारे लिए तो डायरेक्टर, प्रोड्यूसर तक पहुंचने या उनसे मीटिंग करना ही बहुत मुश्किल हो जाता है.
अभी भी उनके साथ मीटिंग होने की जद्दोजहद चल ही रही है. ये बात अलग है कि लोग आपको जानते हैं क्योंकि आपने इतना काम किया होता है. लेकिन क्या हम उन बड़े डायरेक्टर्स के साथ बैठकर हाहाहीही कर पाते हैं, नहीं.. ये नहीं होता है. इंडस्ट्री में आपको कोई दोस्त नहीं होता है, ये सभी को-एक्टर्स या कलीग होते हैं.
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डायरेक्टर की दोस्त एक्ट्रेस ले जाती हैं फिल्म
क्या कभी रिप्लेस की गई हैं. इसके जवाब में आहना कहती हैं, हां.. ये तो बहुत होता है. अजीब बात यह है कि जब फिल्म अनाउंस हो जाती है, तब आपको पता चलता है कि अच्छा आप तो रिप्लेस हो गए हैं. आपके बजाए किसी और को कास्ट कर लिया गया है. पहले बुरा लगता था लेकिन अब तो आदत सी हो गई है. अब देखें, पिछले कुछ सालों में बहुत सी स्पोर्ट्स फिल्में बनी हैं और मैं बहुत अच्छी एथलीट हूं और मानती हूं कि इस फिल्म में लिए परफेक्ट कास्टिंग हूं लेकिन मुझे कभी कंसीडर नहीं किया गया. डायरेक्टर केवल उनको कास्ट करते हैं, जिनके साथ उनकी दोस्ती है. मुझे अभी लगता है कि ऑडिशन प्रोसेस इतना आसान नहीं है. मुझे कभी किसी ऑडिशन के लिए कॉल आता ही नहीं है. यहां वो क्लैरिटी है ही नहीं, वर्ना वेस्ट कंट्री में तो पोर्टल वगैरह में फिल्म की अनाउंसमेंट के साथ ऑडिशन के बारे में भी डिटेल दे दी जाती है. यहां, तो न्यूजपेपर के जरिए पता चलती है कि फिल्म बनकर रिलीज होने को तैयार है.
सुशांत सिंह राजपूत की डेथ पर बहुत रोई थी
अपने लॉकडाउन में गुजारे पल को याद करते हुए आहना कहती हैं, वो वक्त बहुत ही भयावह था. मुझे कई बार एंजायटी भी होती थी. इसके साथ ही बॉलीवुड को लेकर भी एक अजीब किस्म की निगेटिविटी फैली हुई थी. मुझे याद है जब इरफान और सुशांत की डेथ हुई थी, तो मैं फूट-फूटकर रोई थी. मैं इरफान से फिर भी मिली थी, लेकिन सुशांत को मैं पर्सनली जानती तक नहीं थी. फिर भी एक इमोशन था, जिसे सबने महसूस किया था. इतनी अजीबो-गरीब चीजें हो रही थी आप खुद को बहुत फंसा हुआ पाते थे. जब आप अकेले होते हैं, तो आपको पता नहीं होता कि इन सब चीजों पर कैसे कंट्रोल किया जा सकता है. अब तो बॉलीवुड थोड़ा-थोड़ा उभर रहा है.