
छठ की शुरुआत हो चुकी है. बॉलीवुड में भी कई सेलेब्स ऐसे हैं जो छठ पर्व को धूमधाम से सेलिब्रेट करते हैं. इन्हीं में से एक हैं पंकज त्रिपाठी. छठ पर्व को बॉलीवुड एक्टर कैसे सेलिब्रेट करेंगे, इसकी जानकारी उन्होंने आज तक डॉट इन से बातचीत में दी है. पंकज त्रिपाठी ने बताया कि वे मुंबई में छठ मनाएंगे.
पटना नहीं जुहू में छठ मनाएंगे पंकज
वे कहते हैं- जब तक मां छठ करती थी, तो मैं गांव चला जाता था. हर साल के अंतराल में मैं छठ के मौके पर ही घर जाया करता था. उम्र ज्यादा होने की वजह से मां ने छठ करना छोड़ दिया है, भाभी करती हैं, तो इस दौरान मेरा दो ही बार पटना जाना हो पाया है. अब तो मुंबई में कहीं आस-पास होता है, तो मैं चला जाता हूं. हां, इस साल जुहू चौपाटी में जाकर छठ सेलिब्रेट करने का प्लान है. पहले तो जब जाता था, तो लोग उतना पहचानते नहीं थे, इस साल कुछ नया तरीका अपनाना होगा.
क्या है छठ पर्व के मायने?
छठ त्यौहार के मायने पर पंकज कहते हैं, हमारे पूरे बिहार में इस पर्व का मान बहुत है. हम बिहारियों के लिए यह सबसे बड़ा पर्व हुआ करता है. बचपन में तो इसे लेकर बहुत उत्साह होता था. पूरे परिवार के लिए नए कपड़े आते थे. इसमें पवित्रता का बहुत ध्यान रखा जाता था. चंदन, अदरक हल्दी, नई फसल, आदि का उपयोग होता था. बेसिकली यह सूर्य की उपासना का पर्व है, जहां उगते और डूबते सूरज को अर्घ देकर उन्हें प्रणाम करते हैं. देखें, पृथ्वी को चलने के लिए सूर्य और पानी की आवश्यकता होती है, ये पर्व सूरज और नेचर के प्रति कृतज्ञता जाहिर करता है. यह वहीं संभव हैं, जहां नदी, तालाब, पोखर, झील आसपास हो. इस त्यौहार के बाद ही हमारे गांव में नाटक की शुरूआत होती थी.
पंकज आगे कहते हैं, यह पर्व एक दूसरे को जोड़ता है. मुझे याद है हमारे गांव में मिल-बांटकर इस त्यौहार को सेलिब्रेट करते थे. अब अगर मेरे घर में केले का पेड़ है, तो पूरे गांव वालों के बीच केला बांटते थे, वैसे ही किसी के घर में अदरक, कच्ची हल्दी उगती है, तो वो पूरे गांव में बांटेगा. ऐसे ही पूजा के सामान का आदान-प्रदान कर त्यौहार मनाते हैं. हम जिस जगह से आते हैं, वहां कई लोग अपने करियर रोजगार के लिए बाहर रहते हैं, बस अगर पूजा के वक्त परिवार साथ न हो, तो वो अधूरी सी लगती है. आप देखें, इस दौरान बिहार जाने वाली ट्रेन व बसों में आपको जगह नहीं मिलती है.
छठ पर क्या मिस करते हैं पंकज?
इस पर्व के दौरान अपनी भूमिका पर पंकज कहते हैं, पहले भी मुझे साफ-सफाई का काम दिया जाता था. इसके अलावा पूजा की सामग्री की व्यवस्था करना भी मेरी ही जिम्मेदारी होती थी. हां, इस बीच मैं बार-बार दर्जी के पास जाया करता था कि मेरा नया कपड़ा सिल तो जाएगा न. हमारे बचपन में रेडीमेड कपड़ों का चलन उतना था नहीं. कंबल, जैकेट, स्वेटर पहली बार छठ में ही निकलता है. मैं घर पर कार्यकरता की भूमिका में था. हमारा छठ का घाट है, जिसे मैं अपने दोस्तों की मंडली संग मिलकर केले के पत्ते, लाइटों से सजाया करता था. मुंबई में अब यह सब देखने को नहीं मिलता है, मैं अपना यह काम मिस करता हूं.