
फिल्म 'आदिपुरुष' से जुड़ा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. दर्शकों का आरोप है कि इस फिल्म के डायलॉग आपत्तिजनक हैं. साथ ही किरदारों को गलत तरीके से दिखाया गया है. फिल्म के राइटर मनोज मुंतशिर विवादों के घेरे में बने हुए हैं. आज तक के साथ बातचीत में मनोज ने अपनी बात रखी थी. अब रामानंद सागर की 'रामायण' में राम का रोल निभाने वाले एक्टर अरुण गोविल ने इस बारे में बात की.
अरुण गोविल ने 1987 में आए टीवी शो 'रामायण' में मर्यादा पुरुषोत्तम राम की भूमिका निभाकर देशभर में पहचान बनाई थी. आज भी उन्हें राम के नाम से ही जाना जाता है. उनके कई फैंस हैं, जो उन्हें भगवान राम के स्वरूप में देखते हैं. ऐसे में आज तक से बातचीत के दौरान अरुण गोविल से पूछा गया कि फिल्म 'आदिपुरुष' को लेकर जो भारत के साथ-साथ नेपाल में विरोध हो रहा है उसे एक्टर किस तरह देखते हैं?
आदिपुरुष के विवाद पर बोले अरुण गोविल
अरुण गोविल ने कहा, 'पिछले कई दिनों से आदिपुरुष को लेकर बहुत कुछ कहा गया है, बहुत कुछ सुना गया है. हालांकि मुझे ऐसा लगता है कि थोड़ा ये मामला ज्यादा खिंच गया है. आदिपुरुष को अगर आप सिर्फ एक फिल्म के तौर पर देखें, अगर आप इसको ये ना कहें कि ये रामायण पर आधारित है. अगर हम ये ना कहें कि भगवान राम पर ये फिल्म बनी है, फिल्म के तौर पर अगर ये कोई और किरदार होते तो मुझे लगता है कि ये फिल्म ठीक थी. इसमें कोई दिक्कत नहीं थी. अच्छी बनी है ये फिल्म. लेकिन सवाल ये नहीं है.
'सवाल ये है कि 'रामायण' को इस लाइट में दिखाना. वो चरित्र जिन्हें हम भगवान मानते हैं, भगवान की तरह पूजते हैं जो हमारे दिल में बसे हैं. जो हमारे सांस्कृतिक धरोहर हैं, जो हमारी मौलिकता हैं, जो हमारी आस्था हैं. उनके साथ जो क्रिएटिव लिब्रिटी ली गई है वो सभी को, ज्यादातर लोगों को अच्छी नहीं लगी. मुझे ये पसंद नहीं आया. मैं कन्सेर्वटिव हूं इस मामले में मुझे ये कहने में कोई परहेज नहीं है. मेरे मन में भगवान का जो स्वरूप है, उसी में मैं अपने सामने उन्हें देखना चाहता हूं. तो जो आधुनिकता के नाम पर और पौराणिकता... भगवान ना तो पौराणिक हैं नया आधुनिक हैं. भगवान आदि हैं अनंत हैं. आज अगर हम माता-पिता की पूजा करते हैं, अगर कोई उनकी शक्ल को अलग पेंट करके प्रेजेंट करे तो क्या हमें अच्छा लगेगा. नहीं अच्छा लगेगा.'
आदिपुरुष का संवाद है संवेदनहीनता?
अरुण गोविल से पूछा गया कि जिस तरह के संवाद इस फिल्म में दिखाए गए हैं. जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया गया है. उसका जबरदस्त विरोध हो रहा है. जब अरुण ने राम की भूमिका निभाई थी तो दर्शकों के मन में सम्मान आता था, जो दशकों बाद आज भी कायम है. लेकिन 'आदिपुरुष' के जो संवाद हैं उन्हें देखकर संवेदनहीनता तो नहीं लगती?
जवाब में अरुण गोविल ने कहा, 'हां, मैंने फिल्म देखी तो नहीं है, लेकिन मैं सुना कि फिल्म में चार-पांच-छह लाइन ऐसी हैं, जो इस तरह से लिखी गई हैं. मैं अपनी तरफ से कहता हूं कि मैं बहुत मर्यादा में रहता हूं. मैं इस तरह की भाषा का इस्तेमाल नहीं करता. दूसरा ये है कि किरदार जो होते है, अगर नॉर्मल ये फिल्म हो, जिसमें नॉर्मल किरदार हों तो इस तरह के संवादों से कोई प्रॉब्लम नहीं है. इससे भी खराब संवाद आजकल फिल्मों में आते हैं. गालियां भी देते हैं फिल्मों में तो. लेकिन ये जो किरदार हैं... जिनकी हम पूजा करते हैं उनके मुंह से ऐसी बात कहवाना अच्छा नहीं लगता.'
हनुमान जी से बुलवाई गईं ओछी बातें
इंटरव्यू के दौरान अरुण गोविल से पूछा गया कि हनुमान जी से ऐसी ओछी भाषा का इस्तेमाल करवाना क्या ये नहीं दिखाया कि ये सिर्फ संवेदनहीनता ही नहीं, बल्कि ये हमारे इष्टों का अपमान है एक तरह से जिनकी हम पूजा करते हैं? अरुण गोविल ने जवाब में कहा, 'मुझे लगता है कि ये मेकर्स ने जानबूझकर तो नहीं किया होगा, जिसे हम अपमान की संज्ञा दे रहे हैं. उन्होंने क्रिएटिव लिब्रिटी जरूर ली है. मैं ये कह सकता हूं कि उन किरदारों से इस तरह के संवाद बुलवाना संवेदनशील नहीं है. पर जानबूझकर उन्होंने अपमान नहीं किया होगा. पता नहीं क्या सोचकर उन्होंने ये संवाद लिखे होंगे. हालांकि मैंने मनोज मुंतशिर जी का ट्वीट पढ़ा, जिसमें उन्होंने कहा कि हम ये संवाद वापस ले रहे हैं. बहुत अच्छा उन्होंने ये फैसला लिया है. लेकिन जो नुकसान होना होता है, वो हो चुका है. पर फिर भी उनके मन में ये बात आई, उन्होंने सबों भावनाओं का सम्मान किया है. कोई नहीं करता परमात्मा का अपमान, परमात्मा का अपमान करके कहां जाएंगे. लेकिन संवेदनशीलता की कमी जरूर रही है लाइनों में.'
नेपाल में बैन हो गईं हिंदी फिल्में
अरुण गोविल से पूछा गया कि 'आदिपुरुष' के मेकर्स का कहना है कि वो 'रामायण' की कहानी से प्रेरित थे. ये कलात्मक स्वतंत्रता है. क्या आपको लगता है कि उनका ये कहना सही है. उदाहरण हम देते हैं कि सीता जी के संदर्भ में एक जगह कहा गया कि वो भारत की बेटी हैं. इसके बाद नेपाल में ये फिल्म ही बैन कर दी गई. सारी हिंदी फिल्में बैन कर दी, क्योंकि वो कहते हैं कि सीता जी नेपाल की बेटी हैं. जनकपुर नेपाल में है. पीएम मोदी जा भी चुके हैं वहां पर, सीता जी की बाकायदा बारात आती है अयोध्या, राम जी लेकर आते हैं.
अरुण गोविल ने कहा, 'इसे लेकर अलग-अलग मत है. इनको बनाते वक्त मेकर्स को लोगों की भावनाओं का ध्यान रखना चाहिए. कई लोग जुड़े हैं ऐसे जिनकी आस्था है ये. आप क्रिएटिव लिबर्टी के नाम पर किसी हद तक भी ना जाएं, नई नई चीजें अपनाना अच्छी बात है. लेकिन फ्रेम वर्क को इवॉल कीजिए, आप उसमें स्पेशल इफेक्ट्स दिखाइए अच्छे से अच्छे, कोई दिक्कत नहीं होती है. लेकिन जो स्वरूप है... हम निराकार की पूजा नहीं करते हैं हम स्वरूप की पूजा करते हैं. और वो स्वरूप जो हमारे मन में बसा है जब वो हमें कहीं अलग दिखाई देता है तो हमें तकलीफ होती है. वहीं इस फिल्म के साथ हुआ है.'
बातचीत के अरुण गोविल से ये भी पूछा गया कि आपके लिए ये किरदार निभाना आदर की बात थी, लेकिन क्या इस फिल्म के मेकर्स के लिए ये सिर्फ पैसे कमाने का जरिया बनकर रह गया है? उन्होंने जवाब में कहा, 'देखिए इंसान पर निर्भर करता है कि कोई फिल्म बना रहा है तो वो किस लिए बना रहा है. कुछ लोग क्रिएटिविटी के लिए फिल्म बनाते हैं. कुछ लोग पैसों हमाने के लिए बनाते हैं. मैं मानता हूं कि पैसे कमाने के लिए तो सभी लोग फिल्म बनाते हैं, बहुत कम लोग क्रिएटिविटी के लिए फिल्म बनाते हैं.'