
प्रभास की फिल्म 'आदिपुरुष' रिलीज क्या हुई सोशल मीडिया पर तहलका ही मच गया. हर तरफ बस इस फिल्म के ही चर्चे हो रहे हैं. लंबे समय से प्रभास और कृति सेनन स्टारर इस फिल्म का इंतजार फैंस को था और अब जब ये रिलीज हो गई है, तो देखने वालों का भेजा ही फ्राई ही हो गया. मेकर्स के मुताबिक, इस फिल्म को रामायण की महागाथा के आधार पर बनाया गया है. फिल्म कहानी है राघव और जानकी के प्रेम है तो वहीं रावण की मायावी शक्तियां और अहंकार भी है. फिल्म के VFX में करोड़ों रुपये का खर्च किया गया है. बड़े-बड़े एक्टर्स को इसमें लिया गया है. लेकिन एक चीज जो किसी भी दर्शक के गले से नहीं उतर पा रही है, वो है इसके डायलॉग.
'आदिपुरुष' कहानी त्रेता युग की है. जिसे फिल्म के मेकर्स ने अपने ऊट पटांग डायलॉग्स से कलयुग बना दिया है. यही उनकी भारी गलती है. फिल्म में किरदारों को बातें सुनकर आपको लगेगा ही नहीं कि आप रामायण की कहानी देख रहे हैं. भगवान राम मर्यादा पुरुषोत्तम थे. रावण ज्ञानी था. उनके और उनके साथ के किरदारों के मुंह से अजब-गजब बातें सुनना अजीब लगना लाजिमी है. उस युग में कोई भी 'जो हमारी बहनों को हाथ लगाएगा उसकी लंका लगा देंगे' जैसी बातें उस समय में तो नहीं करता था. शायद फिल्म का स्क्रीनप्ले और डायलॉग लिखने वाले मनोज मुंतशिर ये बात भूल गए थे. या फिर उन्होंने रिसर्च ही नहीं की. क्योंकि रामायण को 'फंकी', 'मॉडर्न' और 'रिलेटेबल' बनाने के चक्कर में मेकर्स ने भारी ब्लन्डर कर डाला है.
इन डायलॉग को सुनकर घूमेगा माथा
इस फिल्म के कुछ खतरनाक डायलॉग्स पढ़ ही लीजिए. ये ऐसे डायलॉग्स हैं जिन्हें फिल्म में सुनते ही आपके कान खड़े हो जाते है कि हाय! दइया ये क्या बुलवा रहे हो हनुमान से? या इंद्रजीत से..
फिल्म के एक सीन में इंद्रजीत, बजरंग की पूंछ में आग लगाने के बाद कहते हैं- 'जली ना? अब और जलेगी. बेचारा जिसकी जलती है वही जानता है.' इसके जवाब में बजरंग कहते हैं, 'कपड़ा तेरे बाप का. तेल तेरे बाप का. आग भी तेरे बाप की. और जलेगी भी तेरे बाप की.'
रावण का एक राक्षस सैनिक बजरंग को अशोक वाटिका में जानकी से बात करते देख लेता है. वो बजरंग से कहता है, 'ए! तेरी बुआ का बगीचा है क्या जो हवा खाने चला आया. मरेगा बेटे आज तू अपनी जान से हाथ धोएगा.'
रावण को अंगद ललकारते हुए एक सीन में कहते हैं, 'रघुपति राघव राजा राम बोल और अपनी जान बचा ले. वरना आज खड़ा है कल लेटा हुआ मिलेगा.'
शेष (लक्ष्मण) पर वार करने के बाद इंद्रजीत कहता है, 'मेरे एक सपोले ने तुम्हारे इस शेष नाग को लंबा कर दिया. अभी तो पूरा पिटारा भरा पड़ा है.'
इसके बाद इंद्रजीत, भगवान राम से कहता है, 'पहली फुरसत में निकल.'
विभीषण एक सीन में रावण से कहता है, 'भैया आप अपने काल के लिए कालीन बिछा रहे हैं.'
एक और सीन में रावण, राघव के लिए कहता है, 'अयोध्या में तो वो रहता नहीं. रहता वो जंगल में है. और जंगल का राजा तो शेर होता है. तो वो राजा कहां का रे.'
किस युग के हैं ये डायलॉग?
ये किस हिसाब के डायलॉग हैं भाई? क्योंकि ये रामायण के हिसाब के डायलॉग तो नहीं हैं. बजरंग, रावण और इंद्रजीत जैसे किरदारों को ऐसे डायलॉग बोलते सुनना बेहद अजीब है. आपका कहना है कि आप वाल्मीकि रामायण का स्क्रीन रूपांतरण बना रहे हैं. आप अपनी फिल्म में मॉडर्न टच डाल रहे हैं बहुत अच्छी बात है. आप अपनी फिल्म के अस्वीकरण में कह रहे हैं कि रामायण को अपने हिसाब से अलग-अलग लोगों ने लिखा है. हम अपने अलग नजरिए से इसे दिखा रहे हैं. बहुत अच्छी बात है. लेकिन आप आंख बंद करके ऐसे डायलॉग कैसे लिख सकते हैं?
एक फिल्म को बनाने में कई लोग लगते हैं. एक-एक सीन, फ्रेम, एक्स्प्रेशन अलग-अलग लोगों की नजरों के सामने से गुजरता है. हर चीज को देखा परखा जाता है, तो फिर डायलॉग क्यों नहीं? इन डायलॉग का 'आदिपुरुष' जैसी फिल्म में होने का तुक ही क्या है? कौन-से युग की कहानी और फीलिंग्स को इन डायलॉग्स के जरिए कनवे करने की कोशिश की जा रही है. लेकिन इन डायलॉग्स ने इस फिल्म को हास्यास्पद जरूर बना दिया है. इस सबके बाद कहना ही पड़ेगा कि भ्राताश्री ने अपने डायलॉग्स से 'आदिपुरुष' की वाट लगा दी.