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पहले हीरो, अब हिरोइन...ट्रांसजेंडर को क्यों नहीं मिलता ट्रांसजेंडर का ही रोल?

ताली के ट्रेलर के बाद से ही इसकी कास्टिंग को लेकर एलजीबीटीक्यू कम्यूनिटी का यही सवाल है कि अगर किसी ट्रांसजेंडर का किरदार करना है, तो असल ट्रांस एक्टर्स को क्यों कास्ट नहीं किया जाता है?

आशुतोष राणा-सुष्मिता सेन आशुतोष राणा-सुष्मिता सेन
नेहा वर्मा
  • मुंबई,
  • 14 अगस्त 2023,
  • अपडेटेड 11:17 AM IST

हाल ही में सुष्मिता सेन स्टारर फिल्म ताली का ट्रेलर लॉन्च हुआ है. फिल्म में सुष्मिता ट्रांसजेंडर का किरदार निभा रही हैं. सोशल वर्कर श्रीगौरी सावंत की बायोपिक कर रहीं सुष्मिता को बेशक दर्शकों का बहुत प्यार मिल रहा है. इससे पहले गंगूबाई के लिए विजय राज, चंडीगढ़ करे आशिकी के लिए वाणी कपूर, सेक्रेट गेम्स के लिए कुब्रा सेठ, तमन्ना के लिए परेश रावल, सड़क के लिए सदाशिव, शबनम मौसी के लिए आशुतोष राणा जैसे एक्टर्स के साहस की जमकर सराहना हुई थी, जब उन्होंने लीक से हटकर इस तरह के अनकन्वेंशनल किरदारों को चुना था. बेशक उनका काम ऑन पॉइंट रहा हो, लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर क्यों एक्टर्स या एक्ट्रेसेज को ही ट्रांसजेंडर का किरदार निभाना पड़ता है. क्या इंडस्ट्री में ट्रांसजेंडर एक्टर्स की कमी है. 

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हमारी कम्यूनिटी को केवल भीड़ का हिस्सा बना दिया है
ट्रांसजेंडर एक्ट्रेस नव्या कहती हैं, मेरी यह लड़ाई पिछले पांच से छ सालों से है. जब गंगूबाई रिलीज हुई थी, तो मैं ही थी, जिसने ये सवाल उठाया था कि फिल्म में ट्रांसजेंडर के किरदार के लिए विजय राज को क्यों लिया है. रजिया बाई के किरदार के लिए आप किसी ट्रांसजेंडर को भी मौका दे ही सकते थे. फिर चंडीगढ़ करे आशिकी में भी यही बात रही, किरदार वाणी कपूर को दे दिया था. यहां बात जब रिप्रेजेंटेशन की होती है, तो आपने हमारी कम्यूनिटी को केवल क्राउड का हिस्सा बनने के लिए चुना है. ताली के किरदार के लिए मैंने नरगिस के लिए ऑडिशन दिया था. ये सुष्मिता की बेस्ट फ्रेंड का किरदार है. मैं सिलेक्ट भी हो गई थी. हालांकि बाद में मुझे पता चला है कि किसी फीमेल को उस किरदार के लिए कास्ट कर लिया है. मैंने खुद को ठगा हुआ महसूस किया था. चलो मान लिया फिल्म को बिजनेस के नजरिये से देखते हैं. ये समझती हूं कि दर्शकों को खींचने के लिए स्टार वैल्यू की जरूरत है. लेकिन बाकी सपोर्टिंग कास्ट को क्यों तवज्जों नहीं दिया जाता है. 

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हम ट्रांस एक्टर्स कहां जाएंगे
ट्रांसजेंडर एक्टर्स के ऑडिशन की रिएलिटी पर नव्या कहती हैं, हम तो ऑडिशन एक आर्टिस्ट के तौर पर देने जाते हैं. लेकिन वहां जाकर हमें कम्यूनिटी के खांचे में डाल दिया जाता है. हमें न ही महिलाओं का किरदार दिया जाता है और न ही मर्दों के किरदार का भी काम मिलता है. तो फिर मुझे इसका जवाब कौन देगा कि ट्रांसजेंडर का जब किरदार होता है, तो क्यों महिला और पुरुष आकर उसके लिए ऑडिशन देते हैं. जब गंगूबाई के दौरान मैंने अपनी बात रखी थी, तो मुझे बहुत ट्रोल किया गया था. लोग कहने लगे थे कि तुम एक्टिंग के बारे में क्या जानती हो? तुम क्यों बोल रही हो? मैं यह कहना चाहती हूं, जब आप इन एक्टर्स को चुनते हैं, तो उनको वर्कशॉप करवाते होंगे, उन्हें ट्रेनिंग देनी होती होगा. लेकिन हम तो वही लोग हैं, तो हमें ही क्यों नहीं मौका मिल पाता है. ऑडिशन का लेवल भी बहुत स्लो है. महीने में एक दो ऑडिशन के लिए ही कॉल आता है. उसमें भी अगर आप लड़के और लड़कियों को ले लोगे, तो हम जैसे एक्टर्स कहां जाएंगे. 

ये तो डबल स्टैंडर्ड रवैया है न 
नव्या आगे कहती हैं, अब लोग कहते हैं कि तुम सिग्नल पर भीख क्यों मांगते हो. लोगों के घरों, ट्रेनों पर जाकर पैसे मांगते हो. भाई जब आप हमें जॉब के मौके नहीं देंगे, तो हम करेंगे. सहानुभूति के नाम पर तुम हमपर फिल्म बना लोगे, टीआरपी और अवॉर्ड बटोर लोगे. जब हमें ही मौका नहीं दोगे, तो फिर तुम कैसे कह सकते हो कि हम अभी तक बदले ही नहीं हैं. तुमने हमें बदलने के लिए दिया ही क्या है. तुमने हमें कुछ नहीं दिया है. सहानुभूति के लिए फिल्में बना लेंगे और जब प्रमोशन करना होगा, तो हमें बुलाएंगे ताकि वहां लोग तालियां बजाए और इमोशनल हो जाए. दो तीन लोग आंसू बहाए, और मीडिया कैप्चर कर लेगी. ये तो डबल स्टैंडर्ड रवैया है न. 

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ताली बजाना..दाढ़ी बनाना.. मतलब ट्रांसजेंडर 
मुझे इसके प्रोजेक्शन से ही प्रॉब्लम है. जब भी मैं कास्टिंग के लिए जाती हूं, तो मुझे मोस्टली रिजेक्ट कर दिया जाता है. मैं बहुत ही फेमिनिन हूं. वहां उनको डिमांड मस्कुलिन की होती है. अगर सिलेक्ट कर भी लें, तो दस तरह के कंडीशन लगा देते हैं. हम आपके चेहरे पर हल्की दाढ़ी बनाएंगे...आपको ताली पीटनी होगी....आपको लाउड होना होगा... मुझे याद है एक शो किया था सावधान इंडिया में शो किया था. मेरे लुक के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं हुआ लेकिन बाद में देखा, तो मेरी आवाज को डब कर मर्द वाला आवाज बना दिया था. एक और शो के लिए कहा गया कि तुम्हें ताली बजाकर शादी में शामिल होना होगा. एंटरटेनमेंट वर्ल्ड वालों ने हमारा कैरिकेचर तय कर दिया है. फिल्म में सुष्मिता का फेस मस्कुलिन दिखा दिया गया है. गौरी के चेहरे में कभी दाढ़ी नहीं आते हैं. वो बहुत ही फेमिनिन रही हैं, लेकिन फिल्म में देखें, तो जबरदस्ती उसे मस्कुलिन दिखा रहे हैं. जब भी ट्रांसजेंडर को दिखाने की बात होती है, तो उन्हें जानबूझकर मस्कुलिन और भयावह तरीके से दिखाया जाता है.

वर्ना डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनकर रह जाएगी 
फिल्म ताली में एलजीबीटी कम्यूनिटी को रिप्रेजेंट कर रहे हैं. ऐसे में इस बात पर कितना फोकस किया गया कि किसी भावना आहत न हो. इसके जवाब में ताली के मेकर्स अर्जुन-कार्तिक कहते हैं, इस चीज को लेकर हम ज्यादा अलर्ट भी थे. हम पूरी तरह से सतर्क थे कि किसी की भावना को ठेस न पहुंचे. जब गौरी से मुलाकात हुई थी, तो उस वक्त हम कई ट्रांसजेंडर से मिले थे. हमने पूरी फिल्म में रेग्यूलर जुनियर आर्टिस्ट्स को कास्ट करने के बजाए, पूरी फिल्म में ट्रांसजेंडर्स को ही कास्ट किया है. पूरी फिल्म में 2200 ट्रांसजेंडर ने एक्टिंग की है. हमारी कोशिश उन्हें जॉब देने के साथ यह भी है कि इसे नॉर्मलाइज किया जाए. हमें उन्हें एंटरटेनमेंट वर्ल्ड के लिए मौका भी देना चाहिए. फिल्म में हम किसी एक्टर एक्ट्रेस को लेने के बजाए क्यों किसी ट्रांसजेंडर एक्टर को मौका नहीं देते. जवाब में अर्जुन-कार्तिक कहते हैं, कास्टिंग को तीन भागों में बांटा जाता है. प्राइमरी, सेकेंडरी और जूनियर आर्टिस्ट को हायर किया जाता है. सेकेंडरी कास्टिंग में 8 से 10 ट्रांसजेंडर हैं, जिनके डायलॉग्स हैं. वहीं जूनियर आर्टिस्ट्स में सौ प्रतिशत ट्रांसजेंडर्स रखे हैं. हां, रही बात मेन लीड की, तो इसके पीछे कमर्शल एंगल समझने की जरूरत है. अगर हम यहां किसी ट्रांसजेंडर को सुष्मिता की जगह कास्ट करते, तो यह एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनकर रह जाती. महज 10 हजार तक दर्शक की बटोर पाती है. सुष्मिता एक इंटरनैशनल चेहरा है, मिस यूनिवर्स जो ट्रांसजेंडर बन रही है. तो यह कमर्श‍ियल मायने पर हमारे लिए फायदेमंद हो सकती हैं. 

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मेरी फिल्म के लिए 35 से 40 ट्रांस लोगों ने किया था अप्लाई 
फिल्म डायरेक्टर ओनीर जो खुद एलजीबीटी कम्यूनिटी के रिप्रेजेंटेटिव रहे हैं. ओनीर ने अपने फिल्मों के जरिए कई बार उनकी हक की बात कह चुके हैं. ओनीर बताते हैं, मुझे नहीं समझ आता कि जब भी इस तरह का कोई मुद्दा आता है, तो आप हम लोगों से क्यों सवाल पूछते हो, आप उन बड़े डायरेक्टर्स से क्यों बात नहीं करते, जिन्होंने यह काम किया है. ये ऐसे लोग हैं, जो शायद कभी इस मुद्दे पर खुलकर बात करें. हम ही हैं, जो कहते रहते हैं कि ऐसा होना चाहिए, वैसा होना चाहिए. मेरी बात करें, तो मैं अभी एक फिल्म बनाने जा रहा हूं, जिसमें मैं ट्रांसजेंडर को कास्ट भी कर रहा हूं. ओनीर आगे कहते हैं, मुझे यह जोक लगता है कि लोग जब यह कहते हैं कि बॉलीवुड में ट्रांसजेंडर एक्टर खोजना मुश्किल है. मेरी फिल्म के लिए 35 से 40 ट्रांसजेंडर एक्टर ने अप्लाई किया है. मैंने उनमें से एक को चुना और उसके साथ वर्कशॉप कर रहा हूं.  ये ट्रांसजेंडर एक्टर वाकई में टैलेंटेड हैं, अपनी एक्टिंग से आपको हैरान कर देंगे. यहां सवाल जेंडर का है न कि सेक्सुअलिटी की बात हो रही है. मैं विजयराज की एक्टिंग का मुरीद हूं, उनके लिए रिस्पेक्ट है लेकिन यह हमारी कड़वी सच्चाई है कि आजतक जितने भी ट्रांसजेंडर के रोल्स हुए हैं, उसे मेल एक्टर ने ही प्ले किया है. यह लड़ाई लंबे समय से चल रही है. एक वक्त था जब थिएटर में महिलाओं का किरदार भी पुरूष निभाया करते थे, वहां महिलाओं ने समाज से लड़कर अपनी जगह बनाई थी. अब वही लड़ाई ट्रांसजेंडर एक्टर की भी चल रही है. आप क्रिएटिव लिब्रर्टी का हवाला देकर ये फ्रीडम नहीं ले सकते कि ट्रांसजेंडर का किरदार कोई मेल एक्टर निभाए.

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मैं खुद ट्रांसजेंडर एक्टर की तलाश में हूं
बॉलीवुड फिल्मों की कास्टिंग में मुकेश छाबड़ा एक बड़ा नाम हैं. मुकेश इसपर अपना पक्ष रखते हुए कहते हैं, इंडस्ट्री में ट्रांसजेंडर एक्टर्स हैं लेकिन आपको रोल की डिटेलिंग के लिए एक परफेक्ट एक्टर की जरूरत होती है, जो फिल्मों का भार अपने कंधे पर ले सके. हालांकि छोटे-छोटे रोल्स में ऐसे एक्टर्स को मौका मिल रहा है, जिससे लोगों के अंदर उनको लेकर विश्वास जग रहा है. अगर हमारे पास प्रोफेशनल ट्रांसजेंडर एक्टर हैं, तो हम जरूर इसकी कास्टिंग करेंगे. मेरे नजर में फिलहाल ऐसा कोई दमदार एक्टर नहीं मिल पाया है. मैं खुद ऐसे ट्रांसजेंडर एक्टर्स की तलाश में हूं, जिससे परफेक्ट कास्टिंग हो सके. फिलहाल हम तो ऐसे रोल्स के लिए किसी संजीदा एक्टर्स की ही तलाश करते हैं, जो किरदार को पुलऑफ कर सके. बॉलीवुड हिस्ट्री में ऐसे ग्रेट एक्टर्स रहे हैं, जिन्होंने ट्रांसजेंडर का किरदार निभाकर इतिहास रच दिया है. मैं आपकी बात से सहमत हूं कि हमारी इंडस्ट्री को ऐसे रियल ट्रांसजेंडर एक्टर्स को मौका देना चाहिए लेकिन मेरी तलाश अब भी जारी है.मुकेश आगे कहते हैं, मेकर्स हमसे यही डिमांड करते हैं कि उन्हें परफेक्ट कास्टिंग चाहिए. हमारे पास ऑप्शन ही नहीं है. मैंने तो अपना स्पेस ओपन रखा है. इनक्वायरी बढ़ी भी है. पहले जहां एक-दो ट्रांसजेंडर ऑडिशन देते थे, लेकिन अब नंबर्स बढ़े हैं. हम इस बदलाव को भी स्वीकार कर रहे हैं. मुझे ईमेल, इंस्टाग्राम पर मेसेज आ रहे हैं. मैं खुश होऊंगा कि मैं रियल कास्टिंग कर सकूं. हालांकि मैंने तमाशा, चंडीगढ़ करे आशिकी में रियल कास्टिंग की है. धीरे-धीरे शुरुआत हुई है लेकिन एक बड़े बदलाव की उम्मीद है. हर कोई चांस डिजर्व करता है. मैं इसकी कोशिश में हूं. बहुत जल्द ही यह बदलाव आपको देखने को मिलेगा. ये मेरा वादा है.

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इस माइंडसेट को तोड़ने में वक्त लगेगा
गौरी सावंत ट्रांसजेंडर कम्यूनिटी की स्ट्रॉन्ग रिप्रेजेंटेटिव रही हैं. गौरी कई शॉर्ट फिल्म व ऐड्स में भी नजर आ चुकी हैं. अपनी राय रखते हुए गौरी कहती हैं, बिलकुल ट्रांसजेंडर एक्टर्स को मौका मिलना चाहिए. फिल्मों में पिछले कुछ सालों में इसमें बदलाव भी आए हैं. मैंने तमन्ना और सड़क फिल्म जब देखी थी, तो उन एक्टर्स के काम को देखकर मुझे काफी हैरानी हुई थी. इन दोनों ने किरदार के साथ जस्टिस किया था. लोगों के दिमाग में अब यह बैठ चुका है कि ट्रांसजेंडर मतलब 6 फुट लंबा चौड़ा, डार्क, बड़ा सा मुंह और डरावना इंसान होता है. इस कॉन्सेप्ट को बदलने की जरूरत है. आप देखें, कई ब्यूटी कॉन्सेप्ट होते हैं, कई ट्रांसजेंडर तो औरतों से भी खूबसूरत लगते हैं. तो ऐसे लोगों को मौका मिलना चाहिए. इस माइंडसेट को तोड़ने में वक्त लगेगा. हो सकता है कि हमें उन एक्टर्स की तरह परफेक्ट एक्टिंग नहीं आती होगी लेकिन मैं मानती हूं कि उस रोल को जीना आना चाहिए. मैं चाहती हूं कि फनी तरीके से ट्रांसजेंडर को न दिखाएं. आप हमारी गरिमा का ध्यान रखें.

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