
बॉलीवुड आइकॉन अमिताभ बच्चन को आज जो 'महानायक' का दर्जा दिया जाता है, उसके पीछे एक बहुत बड़ी वजह है दो सदियों के बीच उनका ट्रांजीशन. बच्चन साहब ने डेब्यू 1969 में किया था. यानी पिछली सदी में उन्होंने 30 साल से ज्यादा काम किया. इस तरफ, अब नई सदी के भी 25 साल गुजर चुके हैं और अमिताभ बच्चन अभी भी स्क्रीन पर उतने ही दमदार बने हुए हैं.
हालांकि, दो सदियों के बीच 'महानायक' का ये ट्रांजिशन इतना आसान नहीं था. ढलते 90s का दौर अमिताभ के लिए एक बहुत मुश्किल समय था. एक तरफ वो अपनी कंपनी के घाटे में जाने से परेशान थे, तो दूसरी तरफ स्क्रीन पर वो अपनी पहचान को लेकर एक बड़े स्ट्रगल में फंसे हुए थे. और उनके आइडेंटिटी-क्राइसिस वाले इस दौर में जो सबसे ढुलमुल फिल्में निकलीं, उनमें 'लाल बादशाह' को टॉप पर रखा जा सकता है.
'ढुलमुल' इसलिए क्योंकि 'लाल बादशाह' एक तरफ तो अमिताभ के साथ जवान हुए लोगों के लिए नाक-भौं सिकोड़ने वाली फिल्म थी. क्योंकि अपने हमउम्र अमिताभ को, अपने बच्चों की उम्र वाली एक्ट्रेसेज के साथ रोमांस करते देखना उस दौर में एक पचाने वाली बात नहीं थी.
दूसरी तरफ जिन्हें ये फिल्म पसंद आई, उन्हें आज भी इसके डायलॉग याद हैं. जहां ये अमिताभ की बड़ी फ्लॉप फिल्मों में से एक थी, वहीं उनके लिए उस दौर की सबसे बड़ी फीस भी लेकर आई थी. बदलती सदी के साथ अमिताभ बच्चन जहां बड़े पर्दे पर पहचान बचाए रखने के लिए फिर से स्ट्रगल कर रहे थे, वहीं उनके साथी कलाकार बड़े पर्दे से दूर होते जा रहे थे. और ऐसे दौर में 'लाल बादशाह' बहुत सारे 'लास्ट' मोमेंट्स लेकर आई थी.
अपनी ऑनस्क्रीन मां के साथ अमिताभ की आखिरी फिल्म
1975 में आई 'दीवार' में अमिताभ बच्चन की मां का रोल करने वालीं निरूपा रॉय को कोई सच्चा बॉलीवुड लवर नहीं भूल सकता. इस फिल्म से ऑनस्क्रीन मां-बेटे की ये जोड़ी ऐसी चली कि फिर करीब 10 से ज्यादा फिल्मों में निरूपा ने अमिताभ की मां का किरदार निभाया. इसमें 'अमर अकबर एंथनी', 'मर्द' और 'मुकद्दर का सिकंदर' जैसी आइकॉनिक फिल्में शामिल हैं. 1999 वो आखिरी साल था जब निरूपा ने अमिताभ की ऑनस्क्रीन मां का किरदार निभाया और फिल्म थी 'लाल बादशाह'.
अमरीश पुरी और अमिताभ बच्चन का आखिरी बार आमना-सामना
अगर अमिताभ बच्चन अपने दौर के सबसे बड़े हीरो थे, तो अमरीश पुरी अपने दौर के सबसे बड़े विलेन. दोनों के आमने-सामने होने का मतलब ही था कि पर्दे पर आग लगेगी! 1980 में आई 'दोस्ताना' वो पहली फिल्म थी जिसमें विलेन बने अमरीश पुरी का सामना, एक्शन हीरो अमिताभ से हुआ था. इसके बाद हीरो विलेन की ये जोड़ी करीब 10 फिल्मों में नजर आई. और 'लाल बादशाह' वो आखिरी फिल्म थी जिसमें इन दोनों का आमना-सामना हुआ.
हालांकि, इसके बाद अमिताभ और अमरीश ने 'मोहब्बतें', 'देव' और 'लक्ष्य' में भी साथ काम किया. लेकिन इन फिल्मों में वो हीरो-विलेन के तौर पर आमने-सामने नहीं थे. रिपोर्ट्स बताती हैं कि 'लाल बादशाह' के शूट की एक लोकेशन पर अमिताभ और अमरीश को याद आया कि उन्होंने लगभग 25 साल पहले उसी जगह, सुनील दत्त की 'रेशमा और शेरा' के लिए भी साथ में शूट किया था.
बतौर लीडिंग हीरो अमिताभ की आखिरी फिल्मों में से एक
90s के अंत में अमिताभ का क्राइसिस ये था कि वो रोमांस-एक्शन करने वाले ट्रेडिशनल हीरो वाले किरदार निभाते रहें या अब अपनी उम्र के हिसाब से किरदार चुनने शुरू करें? क्योंकि बतौर हीरो वो अब ऐसी एक्ट्रेसेज के साथ नजर आ रहे थे जो उनसे दो दशक से भी ज्यादा बाद पैदा हुई थीं. 'लाल बादशाह' में ही अमिताभ शिल्पा शेट्टी और मनीषा कोइराला के साथ नजर आए थे, जो उनसे 30 साल से ज्यादा छोटी थीं. ये देखना ऑडियंस में बैठे बहुत से लोगों के लिए अजीब था. ऊपर से 57 साल के अमिताभ को अब लोग फिल्मी हीरो के ट्रेडिशनल रोल से रिलेट नहीं कर पा रहे थे.
1998 में 'बड़े मियां छोटे मियां' और 'मेजर साहब' में अमिताभ बच्चन ऐसे किरदारों में थे, जिनमें वो अपने साथी हीरो के सीनियर वाले रोल में थे. 1999 में आई 'कोहराम' में भी उनका रोल ऐसा ही कुछ था. लेकिन नाना पाटेकर के साथ उनकी फिल्म से पहले, 5 मार्च को 'लाल बादशाह' रिलीज हुई, जो असल में एक साल से अटकी हुई थी. और इस फिल्म में अमिताभ जिस अंदाज में दिखे, वो एक तरह से स्क्रीन पर युवा दिखने की जबरन कोशिश जैसा था.
ऐसी ही एक कोशिश वो 'आज का अर्जुन' में भी कर चुके थे और उससे भी उन्हें चाहने वाले बहुत खुश नहीं थे. इन दोनों ही फिल्मों के डायरेक्टर के. सी. बोकाड़िया थे, जिन्होंने एक इंटरव्यू में कहा, 'मेरी दोनों फिल्मों ने जमकर कमाई की. चूंकि बच्चन साहब ने 'लाल बादशाह' में बिहारी किरदार निभाया था तो बिहार में फिल्म सुपरहिट रही. हम कुछ और ऐसी फिल्में बनाने का सोच रहे थे.'
हालांकि अमिताभ, जनता की राय से सहमत थे. उन्होंने बाद के एक इंटरव्यू में खुद कहा, 'मैंने एक गहरी सांस ली और एक अर्जेंट सेल्फ-सर्च किया. मैंने कोई नई फिल्म नहीं साइन की. मैं अपने घर से यश चोपड़ा जी (जानेमाने फिल्ममेकर) के बंगले तक चलकर गया और मैंने पूरी ईमानदारी से उनसे कहा- मुझे काम की जरूरत है. और इस तरह मुझे 'मोहब्बतें' मिली.'
'लाल बादशाह' उन इलाकों में बहुत अच्छी चली थी जहां भोजपुरी बोलने वाले यूपी-बिहार के दर्शक थे क्योंकि अमिताभ का अवधी-भोजपुरी मिक्स अंदाज उन्हें पसंद आ रहा था. लेकिन बाकी जगह लोग अमिताभ की उम्र को नजरअंदाज नहीं कर पा रहे थे. एक तरफ कई इलाकों में फिल्म फ्लॉप हो रही थी, तो दूसरी तरफ अमिताभ को फिल्म के लिए उस दौर की सबसे महंगी फीस मिली थी. जिसे कुछ रिपोर्ट्स 2 करोड़ बताती हैं और कुछ 4 करोड़. लेकिन 2 करोड़ फीस भी उस दौर में किसी एक्टर की नहीं थी और इस फीस ने अमिताभ को उस दौर में बहुत मदद की थी जब वो एक बुरे फाइनेंशियल दौर से गुजर रहे थे.
वो खुद अपनी ऑनस्क्रीन इमेज बदलने का इरादा कर चुके थे और इसकी शुरुआत टीवी पर 'कौन बनेगा करोड़पति' और फिल्मों में 'मोहब्बतें' से होने वाली थी. और इस बड़े बदलाव की आंच जलाने वाली फिल्म कही जा सकती है 'लाल बादशाह' जिसकी उम्र अब 26 साल हो चुकी है.