
भारत के महान कथक डांसर पंडित बिरजू महाराज का निधन हो गया है. बिरजू महाराज 83 साल के थे. उनका असली नाम लाल बृजमोहन नाथ मिश्र था. वह लखनऊ के कालका बिंदादीन घराने से थे. उन्होंने अपने घराने को देशभर में पहचान दिलाई थी. पंडित बिरजू महाराज किडनी की बीमारी से जूझ रहे थे. उन्होंने अपने परिवार और शिष्यों के बीच आखिरी सांस ली.
वायरल हुआ बिरजू महाराज का वीडियो
पंडित बिरजू महाराज के निधन के बाद मनोरंजन इंडस्ट्री से लेकर सोशल मीडिया तक पर शोक पसर गया है. फैंस उन्हें याद कर उनके बारे में ट्वीट कर रहे हैं. कुछ ऐसे में है जो उनके पुराने वीडियो शेयर कर रहे हैं. ऐसे में एक वीडियो यूट्यूब पर सामने आया है. ये वीडियो 2019 का है, जब बिरजू महाराज रियलिटी शो डांस प्लस में आए थे. इस शो के दौरान उन्होंने अपने एक्सप्रेशन से सभी का दिल जीत लिया था.
रेमो डीसूजा के इस शो पर पंडित बिरजू महाराज ने 'मोहे रंग दो लाल' गाने पर परफॉर्म किया था. फिल्म 'बाजीराव मस्तानी' के इस गाने पर बिरजू महाराज ने बिना कदम चलाए अपने चेहरे के एक्सप्रेशन से ही महफिल लूट ली थी. उनकी नजरों का खेल और हाथों की अठखेलियों को देखने के बाद शो के कंटेस्टेंट्स, जज और ऑडियंस बेहद इम्प्रेस हुए थे. सभी ने खड़े होकर उनके लिए तालियां बजाई थीं. देखें पंडित बिरजू महाराज का वीडियो:
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कैसे बृजमोहन से बने बिरजू महाराज?
मौत के बाद पंडित बिरजू महाराज अमर हो गए हैं. उनकी सांसें भले ही थम गई लेकिन उनके नृत्य की ततकार, घुंघरुओं की झनकार और महाराज जी की जय जयकार हमेशा गूंजती रहेगी. 18 दिनों बाद, 5 फरवरी को बिरजू महाराज अपना 84वां जन्मदिन मनाने वाले थे.
वैसे बृजमोहन नाथ मिश्र के बिरजू महाराज बनने की कहानी भी कथक की आमद और परण की तरह चक्रदार है. 4 फरवरी 1938 को लखनऊ के एक अस्पताल में ग्यारह लड़कियां पैदा हुईं. इसी बीच उसी अस्पताल में इकलौते लड़के का जन्म हुआ था. कुछ घंटों बाद ही कहा जाने लगा था कि चारों तरफ गोपियां बीच में कन्हैया का जन्म हुआ है. उनका नाम धरा गया बृजमोहन. बृजमोहन, पंडित जगन्नाथ मिश्र यानी अच्छन महाराज जी की पहली संतान थे. बृजमोहन लाड़-प्यार में लिपटकर बिरजू बने और फिर आदर सम्मान से सुगंधित हुए तो बिरजू महाराज कहलाए.
बचपन में ही उठा गया था पिता का साया
नौवां जन्मदिन मनाने के कुछ महीनों बाद ही पिता अच्छन महाराज का साया सर से उठ गया. इसके बाद दोनों चाचाओं पंडित बैजनाथ मिश्र यानी लच्छू महाराज और शंभू महाराज की देखरेख में आगे बढ़ी भाव, लास्य, श्रृंगार और सुर ताल लय की सरिता. तभी तो छोटी उम्र में बिरजू ने अपने कच्चे गले से पक्के गाने की शानदार प्रस्तुति मंच पर दी, तो सभागार में झूम उठे गुणीजन अवाक रह गए. तेरह साल की उम्र में तो बिरजू भैया ने दिल्ली के मंडी हाउस इलाके में स्थित संगीत भारती में कथक नृत्य की बारीकियां सिखाना शुरू कर दी थीं.
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कृष्ण-राधा भाव रहा पसंदीदा
रासलीला, फाग लीला और राधा कृष्ण के विरह मिलन के भाव सिखाया करते थे. हैरानी की बात है कि ये विषय तब भी उनकी पहली पसंद थे और अंत तक राधा कृष्ण लीला में नैन सैन बैन पर उनकी पकड़ का कोई सानी नहीं था. संगीत भारती के बाद फिर नृत्य सिखाने भारतीय कला केंद्र में आए. उनके आने के बाद ही भारतीय कला केंद्र 'कथक केंद्र' और बिरजू भैया 'बिरजू महाराज' के नाम से जाने जाने लगे.
लखनऊ घराने को दिलाई पहचान
महाराज जी ने अथक साधना और आनंद से सजाई कथक की निधि अपने अनगिनत शिष्यों को लुटाने में कभी कोताही नहीं बरती. शाश्वती भाश्वती हों या नीरज सक्सेना या फिर महाराज जी के दोनों पुत्र राममोहन महाराज दीपक महाराज और पुत्री ममता महाराज. अपने जीवन समुद्र को साधना से मथकर कथक का जो अमृत भरा उसे पूरे जीवन जी भर कर बांटा. कथक के लखनऊ घराने को दुनिया के सामने जयपुर घराने से अलग एक नई और ललित पहचान दी.
इनपुट: संजय शर्मा