
डायरेक्टर हंसल मेहता का नाम इंडियन सिनेमा के ऐसे फिल्ममेकर्स में गिना जाता है जो हिंदी सिनेमा को रेगुलर मसाला फिल्मों से हटकर नई कहानियां दे रहे हैं. वो बॉक्स ऑफिस को लेकर फैले क्रेज की तगड़ी आलोचना करते रहे हैं. 2024 में इंडिया टुडे के साथ एक इंटरव्यू में हंसल ने कहा कि ये आंकड़े फिल्मों की 'क्वालिटी' नहीं बताते और ये 'सतही फिल्ममेकिंग को छुपाने के लिए आंकड़ों का अश्लील प्रदर्शन' है.
बॉलीवुड के टॉप फिल्ममेकर्स में से एक करण जौहर भी आजकल अपने इंटरव्यूज में बॉक्स ऑफिस के इस क्रेज से खफा नजर आए हैं. हालांकि, अपने पुराने इंटरव्यूज में वो फिल्मों की कामयाबी पर बात करते हुए 'नम्बर्स' पर खूब बात करते थे और उन्होंने बॉक्स ऑफिस आकंड़ो को मैनिपुलेट करने की बात भी स्वीकार की है. तो क्या ये बॉक्स ऑफिस आंकड़े केवल फिल्म बिजनेस के जानने-चर्चा करने की चीज हैं, जनता के लिए नहीं?
इस सवाल के जवाब में डिस्ट्रीब्यूटर और ट्रेड एक्सपर्ट राज बंसल कहते हैं, 'मैं हंसल मेहता से सहमत हूं कि एक आम दर्शक को फिल्म से मतलब होना चाहिए लेकिन आजकल सोशल मीडिया का दौर है और एक आम दर्शक में भी इसे लेकर जागरुकता है. वो चाहता है कि उसे उसके फेवरेट एक्टर के, फिल्मों के आंकड़े पता हों.'
बॉक्स ऑफिस की होड़ से बनता है सिनेमा पर चर्चा का माहौल
पूर्णिया बिहार के फिल्म प्रदर्शक विशेक चौहान मानते हैं कि बॉक्स ऑफिस और फैनडम, फिल्मों को लेकर चर्चा का एक माहौल बनाता है इसलिए जनता में इसका क्रेज है. 'पूरी दुनिया में लोग बॉक्स ऑफिस डिस्कस करते हैं और लोगों को लगता है कि अगर किसी फिल्म के आंकड़े दमदार हैं तो वो फिल्म चल रही है. लोग फिल्म की क्वालिटी में तो दिलचस्पी लेते ही हैं, मगर इसमें भी दिलचस्पी लेते हैं कि फिल्म का बिजनेस कैसा है? क्योंकि इससे उन्हें एक फिल्म के देखने लिए डिसीजन लेने में मदद मिलती है. फिल्म 'चली थी' या नहीं 'चली थी' ये डिस्कशन हमेशा से चलता रहा है'
ट्रेड एक्सपर्ट गिरीश जौहर मानते हैं कि बॉक्स ऑफिस डिस्कशन आम जनता के काम की चीज नहीं है. उनका कहना है, 'मुझे नहीं लगता कि नंबर्स पर इतना जोर होना चाहिए. ये एक मार्केटिंग टूल है जो कुछ सालों पहले पीआर एजेंसीज ने इस्तेमाल करना शुरू किया था. लेकिन मुझे नहीं लगता कि आम जनता वो बॉक्स ऑफिस का नंबर देखकर टिकट खरीदती है.' हालांकि, सैकनिल्क इंडिया के फाउंडर सचिन जांगीर की ऑब्जर्वेशन है कि क्रिटिक्स से भरोसा उठने की वजह से लोग बॉक्स ऑफिस ही नहीं, एडवांस बुकिंग के भी आंकड़े देखते हैं और माहौल देखकर फिल्म देखने का फैसला करते हैं.
सचिन कहते हैं- 'कोविड के बाद अगर फिल्मों की एडवांस बुकिंग अच्छी है, तो 90% चांस है कि वो चलेंगी. जिनकी एडवांस बुकिंग शुरू से ठंडी है वो अच्छा नहीं करती. मुझे लगता है कि लोग एडवांस बुकिंग की नंबर्स भी देख रहे हैं, क्योंकि इनसे एक परसेप्शन बन जाता है और फिर लोग तय करते हैं कि ये फिल्म उन्हें देखनी ही है क्योंकि इसकी बुकिंग मजबूत चल रही है. आजकल लोग नंबर्स देखकर फिल्म देखने का फैसला करने लगे हैं क्योंकि क्रिटिक का मामला तो ऊपर-नीचे हो चुका है. लोग देखते हैं कि फिल्म का बॉक्स ऑफिस अच्छा है, एडवांस बुकिंग अच्छी है, सीट नहीं अवेलेबल हैं, इसका मतलब अच्छी फिल्म है टिकट बुक कर लेते हैं'.
फिल्मों की ही तरह आईपीएल भी भारत का एक ब्लॉकबस्टर इवेंट है. इस क्रिकेट टूर्नामेंट का जलवा ऐसा है कि जब ये चालू होता है, तब फिल्ममेकर्स अपनी बड़ी फिल्में रिलीज करने से बचते हैं. इसी आईपीएल का एक हिस्सा है खिलाड़ियों की नीलामी. आईपीएल के लिए क्रेजी फैन्स इस नीलामी पर भी लगातार नजर रखते हैं, ये जानने के लिए कि कौन सा खिलाड़ी कितने में बिका. कोई खिलाड़ी जितने दाम में बिकता है, क्या उसकी वजह से उसका खेल देखने के एक्सपीरियंस में कुछ बदलता है? शायद नहीं.
लेकिन एक खिलाड़ी के साथ जब एक आंकड़ा जुड़ जाता है तो उसकी चर्चा करने वालों को एक नया एंगल मिल जाता है. ये चर्चा भी उसी एंटरटेनमेंट का हिस्सा है, जो आईपीएल देता है. शायद यही बात फिल्मों पर भी लागू होती है. बॉक्स ऑफिस के बहाने ही जब लोग फिल्मों पर चर्चा करते हैं तो एक माहौल बनता है, जो फिल्म की रिलीज से पहले और फिल्म देखने के बाद भी फैन्स को एंटरटेनमेंट देता है. जैसा कि राज बंसल ने हमसे कहा, 'लोगों को बॉक्स ऑफिस आंकड़े पता चलने में कोई बुराई नहीं है. लेकिन लोग जब इन आंकड़ों को लेकर कीचड़ उछालते हैं, वो गलत है.'