Advertisement

'मेरे साहेब चले गए, मैं तो भूल भी जाऊं शायद, सायरा जी कैसे सहेंगी?' इमोशनल हुए नाना पाटेकर

अब जब एक्टर नहीं रहे तो सभी उन्हें मिस कर रहे हैं और उनके आभाव का एहसास सभी को हो रहा है. हाल ही में एक्टर नसीरुद्दीन शाह ने दिलीप साहब से जुड़े अपने जीवन के किस्से शेयर किए. अब एक्टर नाना पाटेकर भी दिलीप साहब के गुजर जाने से बेहद दुखी हैं और उन्होंने फेसबुक पर ट्रेजडी किंग के नाम एक इमोशनल पोस्ट भी लिखा है.

दिलीप कुमार, नाना पाटेकर दिलीप कुमार, नाना पाटेकर
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 12 जुलाई 2021,
  • अपडेटेड 4:37 PM IST
  • नाना पाटेकर को आई दिलीप कुमार की याद
  • साहेब के नाम नाना ने लिखा पोस्ट
  • सायरा बानो को लेकर इमोशनल हुए नाना

बॉलीवुड इंडस्ट्री में अभिनय की पाठशाला माने जाने वाले एक्टर दिलीप कुमार का हाल ही में 98 साल की उम्र में निधन हो गया. दिलीप कुमार एक महान एक्टर थे और उनसे ना जाने कितनी पीढ़ियां इंस्पायर हुईं. अब जब एक्टर नहीं रहे तो सभी उन्हें मिस कर रहे हैं और उनके आभाव का एहसास सभी को हो रहा है. हाल ही में एक्टर नसीरुद्दीन शाह ने दिलीप साहब से जुड़े अपने जीवन के किस्से शेयर किए. अब एक्टर नाना पाटेकर भी दिलीप साहब के गुजर जाने से बेहद दुखी हैं और उन्होंने फेसबुक पर ट्रेजडी किंग के नाम एक इमोशनल पोस्ट भी लिखा है. 

Advertisement

हिमालय कि परछाई

मेरे साहेब चले गए. बहुत लोग लिखेंगे, बहुत कुछ लिखेंगे. शब्द फिर भी बौने रह जाएंगे. बहुत बड़ा कलाकार और बेहद जहीन इंसान. स्मृति वंदन करते हुए मैं रुंधा हुआ हूं कि उनकी आखरी यात्रा में सहभागी नहीं हो सका. मरते दम तक खलता रहेगा ये खोया हुआ पल. पिता समान थे वो मेरे.

नाना को दिलीप कुमार ने पहनाई अपनी शर्ट

मेरी पीठ पर उन्होंने हाथ फेरा था. वो आज भी मेरे हौसले की वजह हैं. मुझे आज भी याद है, एक दिन घर गया था उनके, बुलाया था उन्होंने मुझे. काफी बारिश थी और मैं पूरा भीगा हुआ. पहुंचा तो दरवाजे पर खड़े थे. अंदर गए, टॉवल लाए, मेरा सिर पोंछने लगे. अंदर से खुद का शर्ट लाकर पहनाया मुझे. मैं सूखा कहां रहता, भीतर तर भीगा ही रह गया था. आंखें दगा दे रही थी लेकिन मैं फिर भी खुद को संभालने की कोशिश कर रहा था. कितनी तारीफ कर रहे थे क्रांतिवीर फिल्म की. फिल्म के एक-एक प्रसंग पर उनकी टिप्पणी सुनते हुए मैं तो पूरा उनमें गुम हो गया था. मैं उनकी आंखे पढ़ रहा था. आंखों से बयां किए हुए कई संवाद मैंने सुने हैं उनके.

Advertisement

 

याद किया बचपन से जुड़ा किस्सा

'गंगा जमना' यह उनका पहला चित्रपट मैंने देखा था. तब ही अंदर मैंने तय कर लिया कि मैं बस दिलीप कुमार बन जाऊंगा. मेरी नजर में कलाकार होना यानी दिलीप कुमार होना. मेरे तो जेहन में भी नहीं आया था कि मैं कभी मिल भी पाऊंगा उनसे. लीडर की शूटिंग चल रही थी, इतनी भीड़ कि कुछ दिखाई नहीं पड़ता था. मैं पीछे कहीं भीड़ का हिस्सा था. स्टेज से दिलीप साहेब ने जोर से पुकारा कि मट्ठी ऐसे पकड़ो और हाथ से हवा में घुमा दो और बोलो, मारो. सबने किया ऐसा, लेकिन मैंने जरा ज्यादा दम से किया. लीडर फिल्म देखते हुए उस भीड़ में आसमान में हाथ उछालते हुए मैं अपने आपको ढूंढ रहा था. लेकिन पर्दे पर दो ही लोग थे, भीड़ और दिलीप कुमार. आज भी मैं अभिमान से कहता हूं कि मेरी पहली फिल्म लीडर है.

अमिताभ बच्चन नहीं दिलीप कुमार को बीआर चोपड़ा ने ऑफर की थी फिल्म बागबान, मगर...

एक फुटबॉल मैच रखा था किसी की मदद के लिए क्रिकेटर्स और कलाकारों के बीच. दिलीप साहेब रेफरी थे. मेरा सारा ध्यान उन पर ही था. खेलते-खेलते किरण मोरे का घुटना मेरे पेट में घुस गया. दर्द के मारे मैं गिर पड़ा. मुझे गाड़ी में डालकर नानावटी अस्पताल ले गए मेरे साहेब मुझे. मैंने किरण मोरे को शुक्रिया कहा, ये सौभाग्य ही था मेरा कि चोट की वजह से मैं उनके करीब था कुछ वक्त के लिए.

Advertisement

सायरा जी के बारे में सोच इमोशनल हुए नाना

बहुत यादें है सभी के पास. छोटे से क्लोज-अप में सब कुछ कह जाने वाले दिलीप साहेब. मेरी पीढ़ी को तो मगर उनका स्पर्श हुआ है. आज सुख-दुख, हर्ष-विमर्श, प्रेम -विद्वेष सभी की व्याख्या बदल चुकी है. मैं उनका कौन था, फिर भी मैं असीम पीड़ा महसूस कर रहा हूं. उनकी जीवन संगिनी सायरा जी पर क्या बीत रही होगी इस वक्त. पत्नी होना उनका कब कहां, खत्म हुआ था, रुक गया... किसने जाना. तब भी मां, कभी बाप, भाई, बहन, मित्र. कितनी भूमिकाएं निभाती रहीं वो, और कितने बेहतरीन तरीके से.

जब दिलीप कुमार से नर्वस होकर नसीरुद्दीन शाह ने कहा 'मैं एक्टर बनना चाहता हूं', मिला था ऐसा जवाब

अपने चेहरे की मुस्कान कभी ढलने नहीं दी उन्होंने. क्या याद करती होंगी अब? आंखों का क्या है, झरती हैं, बहती हैं. लेकिन मन का क्या? घर का हर कोना, साहेब का होगा. मैं तो कल-परसो भूल भी जाऊं शायद, वो कैसे सहेंगी? कभी-कभी ऐसा लगता है ये जो आखिरी वक्त साहेब को कुछ याद नहीं आ रहा था, ये शायद उनका अभिनय होगा. इर्द-गिर्द के सामाजिक, राजनीतिक परिस्थिति देखकर शायद उन्होंने सोचा हो कि भूलना ही बेहतर है. अकेले में सायरा जी से जरूर बात करते होंगे. एक-दूसरे की दुनिया बनकर रह रहे थे दोनों. सायरा जी मैं आपको झुककर प्रणाम कर रहा हूं. आपके जरिए मेरे भगवन तक मेरा भाव, मेरी श्रद्धा जरूर पहुंचेगी, मुझे पूरा यकीन है.

Advertisement

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement