
इन दिनों आर्टिफिसियल इंटेलिजेंस (AI) सारे व्यवसायिक फील्ड पर तेजी से अपना पैर पसार रहा है. ऐसे में बॉलीवुड इंडस्ट्री भला कैसे इसके प्रभाव से बच सकती है. AI के आ जाने के बाद से किस तरह बॉलीवुड अपनी टेक्निकल कमियों पर विजयी हो पाएगा. आईए समझते हैं.
VFX क्या है ? और कैसे होता है काम?
AI को समझने के लिए सबसे पहले VFX को समझना जरूरी है. फिल्म्स व टीवी में दिखाए जाने वाले कई ऐसे सीन्स जिन्हें असल जिंदगी में शूट करना असंभव हो, ऐसे में विजुअल इफेक्ट्स का सहारा लेकर उसे पूरा किया जाता. फिल्मों में दिखाए जाने वाले अविश्वसनीय, खतरनाक सीन्स की सारी विजुअल का क्रेडिट वीएफएकस को ही जाता है. VFX (विजुअल इफेक्ट्स) दो तरह का होता है. एक थ्रीडी में आता है, जो सीजीआई(कंप्यूटर जनरेटेड इमेज) के तहत क्रिएट किया जाता है. दूसरा हिस्सा बैकग्राउंड के बदलाव का होता है, उसका इस्तेमाल होता है. मसलन ग्रीन-ब्लू क्रोमा, क्राउड की पोजिशन, पीछे का सीन बदलना हो, जिसे एडिटिंग के जरिए किया जाता है. थ्रीडी में मॉडल्स भी इसी सीजी के जरिए ही बनाए जाते हैं. थ्रीडी के लिए मैक और माया जैसे सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया जाता है. वीएफएक्स के लिए म्यूक, सीलआउट, मोका जैसे सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल होता है.
वीएफक्स में होते हैं तीन डिपार्टमेंट
1. पेंट डिपार्टमेंट -पेंट डिपार्टमेंट के तहत, शूटिंग के दौरान जो कुछ अनवांटेड चीजें फ्रेम में शूट हो गई हों, तो उसे पेंट डिपार्टमेंट के तहत रिमूव किया जाता है.)
2. रोटो डिपार्टमेंट - (किरदारों के छोटे पार्ट्स को उसके असल लोकेशन से अलग करने का काम करते हैं). जो किरदार कट हुआ है, वो अल्फा में कंपोजिशन में जाता है.
3. कंपोजेटिर -इसके तहत बैकग्राउंड चेंज कर दिया जाता है.
भारत की पहली वीएफक्स फिल्म
ट्रेड एनालिस्ट गिरीश जौहर वीएफएक्स के इतिहास पर बताते हैं, इंडिया में VFX का इतिहास तो वैसे बहुत पुराना है, हालांकि पॉप्युलैरिटी इसे 1998 से 2000 के बाद से मिलनी शुरू हुई है. पिछले दस सालों में इसको लेकर क्रेज बढ़ा है. पहले तो फिल्म देखते वक्त उन्हें 2डी एनिमेशन तक ही पता रहता था, अब जाकर लोग VFX को समझने लगे हैं. पहले वीएफएक्स के बजाए स्पेशल इफेक्ट शब्द का इस्तेमाल किया जाता था. जो भी बदलाव आया है, वो 90 के बाद आया है. इंडिया में जो पहली वीएफएक्स फिल्म थी, वो तेलुगू 'Ammoru (अमोरू)', उसके बाद अगर देखा जाए, तो बॉलीवुड में वीएफएक्स का इस्तेमाल अजय देवगन और काजोल स्टारर फिल्म 'प्यार तो होना ही था' में हुई थी. इसके बाद 'कृष', 'रा वन' जैसी फिल्में आईं, जिसमें वीएफएक्स का भरपूर इस्तेमाल किया गया.
ऐसे हुआ था अजय देवगन की पहली फिल्म का वीएफएक्स शूट
अनीस बज्मी ने अपनी फिल्म प्यार तो होना ही था से बॉलीवुड इंडस्ट्री में वीएफएक्स को ऑफिशियल इंट्रोड्यूज किया था. अनीस उन दिनों को याद करते हुए बताते हैं, प्यार तो होना था, सबके लिए स्पेशल रही है. मैं खुद को खुशनसीब मानता हूं कि इस फिल्म में मेरे प्रोड्यूसर्स इतने उदार थे कि वो विजुअल इफेक्ट जैसी तकनीक को इस्तेमाल करने के लिए हम पर इनवेस्ट कर रहे थे. अजय देवगन भी इस फिल्म के प्रोड्यूसर थे, उन्होंने मुझसे कहा कि अनीस इस फिल्म को स्पेशल बनाने में कोई कमी नहीं छोड़नी है. मुझे हिम्मत मिली, और हमने इसमें कई सारे स्पेशल इफेक्ट्स का इस्तेमाल किया था. हालांकि उस वक्त यह सबकुछ नया था और बहुत चैलेंजिंग था लेकिन टीम वर्क ने इसे संभव बनाया था.
अनीस विजुअल इफेक्ट्स के कुछ सीन्स का जिक्र करते हुए बताते हैं, अजय पहली बार रोमांटिक फिल्म करने जा रहे थे. इसमें एक गाने का सीक्वेंस है, जिसमें पीले फूल का का बैकग्राउंड है. वो शूटिंग चंडीगढ़ में होनी थी. हम एक साल तक फूलों का इंतजार किया था. जब पहुंचे, तो देखा कि पीले फूल कुछ सूख चुके थे और कुछ खराब हो गए थे. ऐसे में बैकग्राउंड में वो फूल उभरकर नहीं आ रहे थे. फिर वीएफएक्स के जरिए हमने फूलों के बैकग्राउंड को इनरिच किया था. इसके अलावा पहला गाना हमने ग्रीन क्रोमा पर शूट किया था. अजय देवगन का ट्रेन सीक्वेंस था, जहां वो गाड़ी लेकर टकराता है, वो वीएफएक्स के तहत शूट किया गया था.
कैसे डिसाइड होता है टर्नओवर
टर्न ओवर को समझने के लिए पहले तो ये समझना होगा कि आखिर किस तरह पैसे का डिविजन होता है. दरअसल यहां शूट के प्रति सीन के हिसाब से काम होता है. वीएफएक्स के तीनों डिपार्टमेंट को काम बांट दिया जाता है. फर्ज करें कोई फिल्म रिलीज होनी है, तो इसमें प्रति सेकेंड का सीन 24 फ्रेम पर ली जाती है. फिल्मों में 24 फ्रेम वहीं सीरियल व विज्ञापनों के लिए 25 फ्रेम के साथ शूटिंग होती है. एक फ्रेम के हिसाब से अगर 5 से 10 मिनट का काम हो, तो टोटल फ्रेम काउंट कर क्लिप्स को तैयार करते हैं. अगर 10 मिनट के लिए 1000 फ्रेम जरूरी लग रहे हैं, तो उसके हिसाब से एक से डेढ़ करोड़ का बजट चला जाता है. ये होता है, केवल वीएफएक्स के एक डिपार्टमेंट का हिसाब, ठीक वैसे ही बाकि दो डिपार्टमेंट में भी लगभग इतने ही पैसे लगते हैं. यानी तीनों डिपार्टमेंट पेंट, रोटो और कंपोजिटर मिलाकर 10 मिनट के क्लीप में दस पांच से छ करोड़ का बजट चला जाता है. इसमें क्वालिटी के हिसाब से भी प्राइज अप्स ऐंड डाउन होते हैं. आदिपुरुष का 80 प्रतिशत हिस्सा वीएफएक्स के तहत शूट किया गया है, जिसमें केवल वीएफएक्स पर 217 करोड़ का प्राइज केवल वीएफएक्स पर लगा है. वहीं ट्रेड एनालिस्ट गिरीश जौहर भी इसके बढ़ते बिजनेस पर कहते हैं, इंडस्ट्री की रिपोर्ट्स की मानें, तो हर साल वीएफएक्स की मार्केट में 20 प्रतिशत तक का इजाफा देखने को मिल रहा है. 2019 में 56 बिलियन रही थी, जो आने वाले वक्त में 2025 तक 115 बिलियन कमाई की संभावना है.
हॉलीवुड को भी पड़ती है इंडियन एक्सपर्ट की ही जरूरत
वीएफएक्स आर्टिस्ट प्रबीर बताते हैं कि इंडियन आर्टिस्ट्स की डिमांड हॉलीवुड में भी है. प्रबीर के अनुसार, इस वक्त इंडिया में वीएफएक्स का इस्तेमाल काफी तेजी से होता है. आप यकीन करें, हॉलीवुड की भी कई फिल्में इंडियन आर्टिस्ट के तहत करवाई जाती है. हॉलीवुड वाले भी यहीं से आर्टिस्ट्स को सोर्स करते हैं. दरअसल उन्हें कम सैलेरी में यहां मेहनती लेबर मिल जाते हैं. ज्यादातर हॉलीवुड फिल्में इंडिया से ही रिलीज होती हैं, भले उनका फाइनल आउटपुट लॉस एंजिल्स से हो. काम तो यहीं से हो रहा है. इसलिए यहां की जो कंपनी हैं वो इंटरनैशनल प्रोजेक्ट्स हाथों हाथ लेती रही है. मैंने खुद एवेंजेर्स में काम किया है, ट्रांसफॉर्मर 5 जैसे प्रोजेक्ट्स से जुड़ा हूं. बॉलीवुड में मैंने पठान, जवान और सत्यप्रेम की कथा फिल्में की हैं. फिलहाल मेरी कंपनी एक साथ चार फिल्में वीएफएक्स का काम संभाल रही है. जिसमें कंगना रनौत की तेजस है.
AI के आने से क्या होगा बदलाव
AI(आर्टिफिसियल इंटेलिजेंस) और ML(मशीन लर्निंग) टेक्नोलॉजी का अहम हिस्सा है. मुझे नहीं लगता है कि AI के आ जाने से बॉलीवुड इंडस्ट्री के मैनपावर पर कोई खास फर्क पड़ेगा, उल्टा मैं मानता हूं कि नौकरी के और ऑप्शन मिलेंगे. लोगों के बीच यह बहुत बड़ी गलतफहमी है कि AI आकर टेक्निशियंस की नौकरी खाएगा. बजाए घबराने के हमें तो बल्कि खुश होना चाहिए कि हम इसका इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं. फिल्म की कंटेंट की क्वालिटी में इजाफा होगा. आउटपुट की क्वालिटी भी बढ़ेगी. आप ही देखें न, टेक्नोलॉजी के तहत पहले SD,HD,2K,4Kअब हम 8Kफॉर्मैट पर पहुंचने जा रहे हैं. मशीन ने हमेशा हमारे काम को आसान बनाया है, जब भी कोई नया बदलाव आता है, तो उसे लेकर निगेटिव रिएक्शन बनते ही हैं. बाद में सबकुछ एक्सेप्ट कर लिया जाता है.
सिनेमा में अब कुछ भी असंभव नहीं होगा
तरण आदर्श बताते हैं, एआई के आने से बहुत रिवॉल्यूशनाइज हो जाएगा. अगर फिल्मों की बात करें, तो एक टेक्नोलॉजी का एडवांसमेंट होगा. बेशक हमारे मेकर्स को इसे अडैप्ट करने में वक्त लगेगा. यह एक ऐसी टेक्नॉलोजी है, जिससे आप वाकई में इंपॉसिबल चीजों को क्रिएट कर सकते हैं. इसे फिल्मों किस तरह इस्तेमाल किया जाता है, वो देखने लायक है. टेक्नॉलोजी बढ़ती है, तो बजट का भी इसपर असर पड़ता है. यह तो शुरुआत है, तो अभी बहुत कुछ बदलना बाकि है.