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'मेरे ऊपर बहुत एहसान हैं इलाहाबाद के, जो अब सौभाग्य से प्रयागराज है': मनोज मुंतशिर

गीतकार मनोज मुंतशिर उत्तर प्रदेश के अमेठी ज़िले के रहने वाले हैं. यूपी आना उनका अक्सर होता है. लखनऊ के बारे में वो कहते हैं कि ‘यहां सुनने-सुनाने और कहने का रिवाज़ है,परिपाटी है.' मनोज इस मुक़ाम तक पहुंचने के बाद भी कई बार अपने कॉलेज के दिनों की याद और बात खुलकर करते हुए देखे जाते हैं.

मनोज मुंतशिर मनोज मुंतशिर
शिल्पी सेन
  • लखनऊ,
  • 27 फरवरी 2023,
  • अपडेटेड 10:20 AM IST

अपने गीतों से, अपनी बातों से सबके दिलों पर राज करने वाले मनोज मुंतशिर शुक्ला लखनऊ आने पर सबसे पहले चाय और बन मक्खन का स्वाद लेते हैं. मनोज ने मिलते ही बताया ’ लखनऊ आते ही एक नहीं दो कुल्हड़ चाय पी चुका हूं. अब जो भी कहें, वो कर सकता हूं.’ साहित्य आजतक लखनऊ में शामिल होने के लिए पहुंचे मनोज मुंतशिर ने कई बातों और यादों को साझा किया.

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मनोज वैसे तो यूपी के अमेठी के रहने वाले हैं लेकिन अब लखनऊ ज़्यादा आना होता है. इसलिए लखनऊ आते ही अपनी चाय-बन मक्खन खाने की इच्छा पूरी करते हैं और बदलते लखनऊ के बारे में बात करते हैं. पर वो सबसे पहले कॉलेज के दिनों के यादों का पिटारा खोलते हैं. 

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के शिक्षक पढ़ाते ही नहीं थे, बल्कि साहित्यिक चर्चा भी होती थी 

अपने गृह राज्य उत्तर प्रदेश की बात करते हुए मनोज मुंतशिर अपने कॉलेज के दिनों की याद में चले जाते हैं. इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में बिताए अपने दिनों का ज़िक्र अक्सर मनोज करते रहे हैं. सोशल मीडिया पर जो उनके फॉलोअर्स हैं उनमें से भी कई उनके इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में बिताए दिनों को याद दिलाते रहते हैं. मनोज इस मुक़ाम तक पहुंचने के बाद भी कई बार अपने कॉलेज के दिनों की याद करते और बात खुलकर करते हुए देखे जाते हैं.

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'वो तो ऐसे दिन थे कि क्या कहूं. किसी के जीवन में जो फ़ॉर्मटिव ईयर (formative years) होते हैं. इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में टीचर्स को सिर्फ़ पढ़ाने में ही नहीं साहित्यिक चर्चा में भी रुचि होती थी. अक्सर साहित्यिक चर्चा होती रहती थी. ये बात हम जैसे स्टूडेंट्स के लिए बहुत ख़ास थी.'


फ़िराक़ के घर के आस-पास घर लेने की कोशिश की 

इलाहाबाद की साहित्यिक चर्चाओं और रुचि को सहेज कर अपने साथ मुंबई ले गए मनोज शुक्ला से मनोज मुंतशिर बनने के सफ़र में संघर्ष की रुकावटों के पत्थर भले ही आए हों पर मनोज ने अपने उसी फ़ॉर्मटिव ईयर में मिली समझ, सीख और ऊर्जा से सफलता की कहानी लिख दी.

मनोज मुंतशिर शुक्ला ने बताया कि उस समय भी खूब साहित्यिक बातें होती थीं. मनोज ने ये भी बताया कि किस तरह फ़िराक़ गोरखपुरी का मकान 8/4 बैंक रोड, इलाहाबाद के आस पास उन्होंने मकान लेने की कोशिश की. इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के अपने ठिकाने ‘सर जी एन झा हॉस्टल’ का ज़िक्र करते ही उनके चेहरे की रौनक़ और बढ़ जाती है.... मनोज कहते हैं ‘मैं जो कुछ भी हूं इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की वजह से. पहली बार इलाहाबाद में ही मैं माइक के सामने आया, पहली बार आकाशवाणी इलाहाबाद से मेरी कविताएं प्रसारित हुई... बड़े एहसानात हैं इलाहाबाद के, जो अब सौभाग्य से प्रयागराज है.’ 

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लखनऊ में सुनने-सुनाने और कहने का रिवाज है 

मनोज मुंतशिर उत्तर प्रदेश के अमेठी जिले के रहने वाले हैं. यूपी आना उनका अक्सर होता है. लखनऊ के बारे में कहते हैं कि ‘खूब बढ़िया खाना और बढ़िया लोग यहां की पहचान है. यहां सुनने-सुनाने और कहने का रिवाज है, परिपाटी है. ये परिपाटी आज की नहीं है. लखनऊ का ये कॉपीराइट है. यही वजह है कि कोई भी जो सरस्वती का साधक है यहां आना पसंद करता है.’

मनोज आगे कहते हैं ‘मैं ये नहीं कहता कि और जगह ऐसे लोग नहीं हैं पर जब लखनऊ आओ तो लगता है यहां वो भी बात कह सकते हैं जो और कहीं नहीं कह सकते.’ 

मनोज को उनके गीतों में मिट्टी की महक की वजह से तो लोग जानते ही हैं, उनकी खरी-खरी बात बोलने की वजह से भी जानते हैं. समय की कमी थी पर मनोज यूपी में हो रहे बदलाव पर इतनी टिप्पणी करके अपनी बात को समझा गए ‘आज हर जगह यूपी की चमक की बात होती है. पिछले 5-6 साल से यूपी बहुत बदला है. यूपी में जितने GDP पर मुख्यमंत्री जी ने जॉइन किया था. आज उससे काफ़ी ज़्यादा है. इतना बताने के लिए काफ़ी है कि किस तरह की तरक़्क़ी हुई है यूपी में...’ 

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'तेरी मिट्टी में मिल जावां' जैसे गीत लिखकर अपनी जड़ों से जुड़ाव को महसूस कराने वाले, कई हिट गीतों को लिख कर सफलता का आसमान छूने वाले और अपने राष्ट्रवादी सोच और बातों को खुलकर लोगों के सामने रखने वाले मनोज मुंतशिर ने जल्दी जी फिर लखनऊ वालों से मिलने का वायदा कर विदा ली. 

 

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