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फिल्में बैन होने का चलन है पुराना, किसी के जलाए गए प्रिंट तो किसी को दो साल नहीं किया रिलीज

क्या आप जानते हैं कि हिंदी फिल्म जगत में कई फिल्में ऐसी रही हैं, जिनपर विवाद कई सालों तक नहीं थमा. कॉन्ट्रोवर्सी इस कदर हुई कि कितनी ही फिल्मों के प्रिंट मुंबई से मंगवाकर जला दिए गए. यानी करोड़ों का नुकसान हुआ. पर हम आपको लेटेस्ट फिल्मों के बैन का अपडेट यहां नहीं देंगे. उन फिल्मों का देंगे जो पुराने जमाने की हैं. कुछ ऐसी भी हैं जो एक दशक पहले रिलीज हुईं, वह भी बहुत मुश्किलों से. 

किस्सा कुर्सी का, आंधी किस्सा कुर्सी का, आंधी
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 13 मई 2023,
  • अपडेटेड 9:34 AM IST

आजकल 'द केरल स्टोरी' को लेकर बहुत बज बना हुआ है. बंगाल में तो यह फिल्म बैन हो चुकी है. यानी की वहां कोई इसे थिएटर्स में देख नहीं पाएगा. विवाद इस फिल्म के रिलीज होने के बाद ऐसा छिड़ा कि ये अब तक शांत नहीं हुआ है. हर कोई आगे आकर इसपर अपनी राय रख रहा है. विवाद पर टिप्पणी कर रहा है. यहां तक कि मामला थोड़ा पॉलिटिकल भी होता जा रहा है. पर फिल्म के निर्माता और निर्देशक इसपर लगातार सफाई पेश कर रहे हैं. 

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ये तो रही 'द केरल स्टोरी' की बात, पर क्या आप जानते हैं कि हिंदी फिल्म जगत में कई फिल्में ऐसी रही हैं, जिनपर विवाद कई सालों तक नहीं थमा. कॉन्ट्रोवर्सी इस कदर हुई कि कितनी फिल्मों के प्रिंट मुंबई से मंगवाकर जला दिए गए. यानी करोड़ों का नुकसान हुआ. पर हम आपको लेटेस्ट फिल्मों के बैन का अपडेट यहां नहीं देंगे. उन फिल्मों का देंगे जो पुराने जमाने की हैं. कुछ ऐसी भी हैं जो एक दशक पहले रिलीज हुईं, वह भी बहुत मुश्किलों से. 

बैन हुई फिल्मों की लिस्ट

इस लिस्ट में पहली फिल्म 'किस्सा कुर्सी का' है- फिल्म में राज किरण, सुरेखा सीकरी, शबाना आजमी जैसी स्टार कास्ट नजर आई थी. इसका निर्देशन अमृता नाहटा ने किया था. यह फिल्म साल 1975 में रिलीज होने वाली थी. पर नहीं हुई. दरअसल, उस जमाने में इमरजेंसी का दौर था. कोई भी फिल्म जब रिलीज होने वाली होती थी तो उसे पहले सरकार देखती थी. इंदिरा गांधी की सरकार में कार्यरत लोगों ने इस फिल्म को देखा. फिल्म में मारुति कार प्रोजेक्ट के बारे में दिखाया गया था. सरकार को लगा कि यह फिल्म उनके इस प्रोजेक्ट का मजाक उड़ा रही है. साथ ही सरकार के चुनाव चिह्न ‘जनता की कार’ को भी इसमें लपेटे में लिया गया था. उस समय संजय गांधी का ड्रीम प्रोजेक्ट मारुति कार था. जिसे फिल्म में जनता की कार बताया गया था. 

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यह सब देख सरकार ने फिल्म के प्रिंट्स अपने हाथ में ले लिए थे. मुंबई से इन्हें मंगवाकर गुड़गांव स्थित मारुति कारखाने में जला दिया गया था. फिल्म में राज बब्बर लीड रोल में नजर आए थे. साल 1977 में जब इमरजेंसी हटी तो इस फिल्म को दोबारा बनाया गया. दोबारा बनी फिल्म में राज बब्बर ने काम नहीं किया. नई स्टार कास्ट के रूप में राज किरण, सुरेखा सीकरी और शबाना आजमी को देखा गया. 

साल 1975 में फिल्म 'आंधी' रिलीज हुई थी. पर शायद किस्मत अच्छी नहीं थी. फिल्म को रिलीज के कुछ दिनों बाद बैन कर दिया गया. दरअसल, लोगों को लगा कि फिल्म में इंदिरा गांधी को गलत तरह से दिखाया गया. इसपर काफी विवाद भी छिड़ा था. फिल्म में एक स्मोकिंग और ड्रिंकिंग सीन था जिसपर काफी लोगों ने आपत्ति जताई थी. फिल्म के डायरेक्टर गुलजार से कहा गया था कि इस सीन को दोबारा शूट किया जाए. फिल्म फरवरी के महीने में रिलीज हुई थी और जून में इसे बैन कर दिया गया. इमरजेंसी लगी तो कोई नहीं देख पाया. साल 1977 तक यह बैन ही रही. पर जब सरकार बदली तो इस फिल्म को रिलीज किया गया. कहा जाता है कि यह फिल्म सुत्रिता सेन की आखिरी हिंदी फिल्म थी. 

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शेखर कपूर की फिल्म भी रही बैन

फिल्म 'बैंडिट क्वीन' का निर्देशन शेखर कपूर ने संभाला था. वहीं, स्टार कास्ट में सीमा बिस्वास, निर्मल पांडे रहे. यह एक क्रांतिकारी फिल्म थी. फिल्म फूलन देवी की बायोपिक थी. फिल्म में जिस तरह से महिलाओं पर होने वाली यौन हिंसा को दिखाया गया था, वह फूलन देवी को अच्छा नहीं लगा था. फिल्म को देखने के बाद खुद फूलन देवी ने इसपर सवाल खड़े किए थे. उन्होंने यहां तक कह दिया था कि अगर इसे बैन नहीं किया गया तो वह थिएटर के बाहर आत्मदाह कर लेंगी. इसे बेस्ट फिल्म का नेशनल अवॉर्ड मिला. भारत की तरफ से इसे ऑस्कर में भी भेजा गया.

डायरेक्टर अनुराग कश्यप की फिल्म 'ब्लैक फ्राइडे' में मुंबई ब्लास्ट होने से पहले की प्लानिंग को दिखाया गया. यह फिल्म हुसैन जैदी की किताब 'ब्लैक फ्राइडे: द ट्रू स्टोरी' पर आधारित है. साल 2004 में इस फिल्म को लोकैर्नो फिल्म फेस्टिवल में दिखाया गया था. पर जब बारी आई भारत की तो इसे देखने के बाद सेंसर बोर्ड ने इसे दो साल के लिए बैन कर दिया. साल 2007 में जाकर यह रिलीज हो पाई थी. कहा जाता है कि फिल्म 1993 ब्लास्ट की असली कहानियों पर आधारित थी, इसलिए सेंसर बोर्ड इसको लेकर बहुत सतर्क था. इस फिल्म को सेंसर बोर्ड की ओर से एक शर्त पर सर्टिफिकेट दिया गया. वो यह कि फिल्म में दिखाए गए दृश्यों में किसी भी व्यक्ति पर कोई आरोप नहीं लगाया जा रहा है.

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नंदिता दास की पहली फिल्म 'फिराक' साल 2009 में रिलीज हुई थी. यह गुजरात दंगों पर आधारित फिल्म थी. फिल्म जब रिलीज हुई तो इसे गुजरात में बैन कर दिया गया था. कहा गया कि फिल्म के लिए डिस्ट्रीब्यूटर्स काफी पैसों की डिमांड कर रहे हैं. पर नंदिता इसके लिए मना कर रही हैं. काफी जद्दो-जहद के बाद इस फिल्म को रिलीज किया गया था. 

 

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