
दिल्ली के तिहाड़ जेल के बारे में तो आपने सुना ही होगा. जेल के माहौल के बारे में भी कई किस्से-कहानियां सुनी होंगी जिन्होंने हमें चौंकाया होगा. अब, रियल लाइफ तिहाड़ जेल की कहानी बहुत जल्द एक वेब सीरीज के रूप में दिखेगी. नेटफ्लिक्स पर बहुत जल्द तिहाड़ जेल से जुड़ी सच्ची घटना पर आधारित वेब सीरीज रिलीज होने वाली है जिसका नाम 'ब्लैक वारंट' है.
हाल ही में इसका एक ट्रेलर भी रिलीज किया गया है. कपूर परिवार की चौथी पीढ़ी से जहान कपूर इस शो में लीड रोल प्ले करने जा रहे हैं. जहान, शशि कपूर के पोते हैं. फिल्ममेकर विक्रमादित्य मोटवानी की ये वेब सीरीज, तिहाड़ जेल के पूर्व जेलर सुनील कुमार गुप्ता की तिहाड़ जेल में गुजरी लाइफ और कहानियों पर आधारित है.
सुनील गुप्ता ने कुछ समय पहले 'द लल्लनटॉप' से बातचीत में अपने तिहाड़ जेल के दिनों के बारे में बात की. उन्होंने इस बीच आतंकवादी अफजल गुरु की फांसी से लेकर, सपा नेता मुलायम सिंह यादव के जेल में आने के बारे में खुलकर किस्से साझा किए. उन्होंने तिहाड़ जेल में क्या-क्या हुआ करता है, और किन-किन प्रकार के आरोपी जेल में आते हैं उसके बारे में भी बताया.
कौन है सुनील गुप्ता? जेलर बनने से पहले, क्या किया करते थे?
सुनील गुप्ता ने तिहाड़ जेल में करीब 25 साल तक बतौर जेलर और लीगल ऑफिसर काम किया है. उनके समय में कई बड़े-बड़े गैंगस्टर्स और हत्यारे जेल में हुआ करते थे. उन्होंने बताया कि वो जेलर की नौकरी से पहले एक साल रेलवे में भी काम कर चुके हैं. वो वहां 1980-81 तक कार्यरत थे. वो बताते हैं कि रेलवे में लोगों का ट्रांसफर कहीं भी हो जाता है, और वो दिल्ली में ही रहना चाहते थे इसलिए उन्होंने ये नौकरी छोड़ दी.
उस समय उन्होंने तिहाड़ में नौकरी के लिए एक कॉम्पिटिशन में भाग लिया था जिसे वो पास कर गए थे. तब तिहाड़ जेल में सहायक अधीक्षक की नौकरी निकली थी और उन्हें पुलिस की वर्दी पहनने का शौक था जिसके कारण उन्होंने तिहाड़ जेल में नौकरी करना ठीक समझा.
सुनील गुप्ता ने कहा कि वो पहले राउंड में रिजेक्ट हो गए थे क्योंकि वो काफी पतले हुआ करते थे. उनकी छाती इतनी पतली थी, कि उन्हें आगे के लिए चुना नहीं गया. उन्होंने वहां के अधिकारियों को समझाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं माने. बाद में वो इंटरव्यू बोर्ड के सामने गए जहां उन्हें सेलेक्ट किया गया. वो बाद में जेल सुपरिटेंडेंट भी बने.
'अमर सिंह से लेकर मुलायम सिंह यादव जैसे राजनेताओं को भी तिहाड़ जेल में आते देखा'
तिहाड़ जेल में कई कैदियों को रखा जाता है. इसमें कई राजनेता भी शामिल होते हैं जो तिहाड़ जेल में बतौर कैदी रहते हैं. सुनील गुप्ता ने बताया कि उन्होंने अपने सामने कई राजनेताओं को आते देखा है. जिसमें से एक मुलायम सिंह यादव भी थे जो किसी विधायक से जेल में मिलने आए थे. उन्होंने उन राजनेताओं की मांग का भी खुलासा किया जो वो जेल में रहने के लिए किया करते हैं.
वो बताते हैं, 'जो भी राजनेता आता है, तीन चीजों की मांग करता है जो बड़ी मामूली सी है. रोटी, कपड़ा, मकान. सबसे पहले वो कहते हैं कि हमें अलग से सेल दो रहने के लिए, उन्हें दूसरे कैदियों के साथ नहीं रहना होता. दूसरा, कहते हैं कि हमें बाहर का खाना लाकर दो. ये सबकी अनुमति नहीं होती, लेकिन वो सुपरिटेंडेंट के ऊपर होता है. तीसरी मांग होती है कि कोई भी अगर उनसे मिलने आ रहा है किसी भी समय, तो उससे मिलने दिया जाए.'
'आम कैदियों के लिए हफ्ते में दो बार की सुविधा होती है, और वो भी बीच में ग्रिल होती है. एक तरफ घरवाले और दूसरी तरफ वो कैदी. बाकी टेलीफोन की सुविधा भी होती है, लेकिन जो वीआईपी लोग होते हैं वो कहते हैं कि हम ऐसे आमने-सामने ही मिलेंगे. ना टेलीफोन, ना ग्रिल. चूंकि अब मैं रिटायर हो गया हूं तो मैं इस बात को मान सकता हूं कि हमने कानून के खिलाफ जाकर सभी राजनेताओं की डिमांड पूरी की है. एक बार मैंने कोशिश की जब मदन भैया जेल में था. उसे मिलने एक बार मुलायम सिंह जी आए.'
'वो आए और उनके साथ काफी सिक्योरिटी थी, तो मैंने मुलायम सिंह जी को समझाया कि हमारे यहां नियम कानून ये है हम आमने-सामने मुलाकात नहीं करवा सकते. मैंने उन्हें कहा कि हमारी जेल में कैदी काफी चालाक है वो आपकी सिक्योरिटी से हथियार छीनकर भाग सकते हैं, तो वो बहुत आराम से मान गए. तो उनकी मुलाकात आम तरीके से थोड़ी अलग हुई, अच्छे से हमने मिलवा दिया. तभी मदन भैया बोल पड़े कि देखो नेताजी जब ये आपकी परवाह नहीं करते तो ये सोचिए मुझे कितना टॉर्चर करते होंगे. तो वो समझ गए कि ऐसा कुछ नहीं है, वो चुपचाप मिलकर चले गए.'
तिहाड़ जेल में कैदी कैसे करते हैं फोन का इस्तेमाल?
जेल की अक्सर ये बातें सुनने को मिलती है कि कैदी फोन का इस्तेमाल करते हैं. पुलिस को इस बात की जानकारी नहीं हो पाती. कुछ समय पहले गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई का भी जेल से इंटरव्यू सामने आया था जिसने सभी को चौंका दिया था. सुनील गुप्ता ने इसपर भी बात की. उन्होंने कैदियों की मानसिकता और चालाकी का जिक्र करते हुए बताया, 'आज के समय में या हमारे समय से कैदी हमेशा ही पुलिस से 10 कदम आगे होते हैं. तिहाड़ जेल पहली थी जहां मोबाइल जैमर लगाए गए. और वो 2G जैमर थे, आज के समय में टेक्नोलॉजी काफी आगे है.'
'अगर 3G का फोन है, तो उसमें 2G जैमर कम काम करेगा. दूसरा उसके काम करने का तरीका आप देखिए वो घूमता रहता है, एक ही तरीके से. कोई एक जगह ऐसी होगी जहां वो काम नहीं करेगा. ये कैदी वो जगह भी खोज लेते हैं, इतने चालाक होते हैं. ज्यादा से ज्यादा वो जेल स्टाफ को लालच दे देंगे. वो स्टाफ जाकर उसमें कुछ कर देगा जिससे वो बिगड़ जाएगा. फिर जैमर को एक सही मात्रा में रौशनी की जरूरत होती है, तो ज्यादातर रात में ही जेल से कॉल होती है.'
अफजल गुरु की फांसी का पूरा वाकया. क्या हुआ था उस दिन?
सुनील गुप्ता जिस दौरान तिहाड़ जेल में कार्यरत थे, तब संसद भवन पर हमला करने वाला मास्टरमाइंड आतंकवादी अफजल गुरु भी जेल में कैद था. उसे बाद में फांसी लगाई गई थी. सुनील गुप्ता ने अपने किताब 'ब्लैक वारंट' में इसका जिक्र भी किया है जहां उन्होंने खुलासा किया कि उन्हें अफजल गुरु की फांसी के बाद बहुत रोना आया था. वो अपने इंटरव्यू में बताते हैं, 'अफजल गुरु की फांसी के लिए मुझे उसका इंचार्ज नियुक्त किया गया था. मुझे हेडक्वार्टर से कहा गया था कि आपको ये मामला देखना है. अफजल गुरु मुझे जानता था. हमने उनके घरवालों को दो दिन पहले बता दिया था कि हम उन्हें फांसी लगा रहे हैं, हालांकि उन्हें चिट्ठी नहीं मिली. उन्हें जब अफजल गुरु को फांसी हुई तब चिट्ठी मिली. हम चाहते थे कि जब अफजल गुरु को फांसी हो, तब ज्यादा लोगों को इसके बारे में पता ना चले.'
वो आगे कहते हैं, 'क्योंकि हम एक सिक्योरिटी रिस्क कैदी को फांसी पर लटकाने जा रहे थे. तो मैं जेल के सुपरिटेंडेंट के साथ शाम को ही जेल पहुंच गया था ताकि किसी को पता ना चल पाए कि आखिर क्या हो रहा है. हम सारी तैयारी कर रहे थे, रस्सी को देख रहे थे कि वो ठीक तरह से है या नहीं. अफजल गुरु के समय मैं लीगल ऑफिसर था तो मैंने कहा कि सबकुछ कानून के दायरे में रहकर किया जाएगा. हम जो भी रस्सी इस्तेमाल कर रहे थे वो टूट रही थी. हम हमेशा कैदी के दुगने वजन की बोरी को रस्सी से लटकाते थे ताकि उसकी मजबूती का अंदाजा हो पाए. पहले हमने उसके वजन की बोरी इस्तेमाल की, फिर दोगुना वजन लिया लेकिन रस्सी टूट रही थी. मुझे लगा कि मैं सरकार को क्या जवाब दूंगा कि मैं एक फांसी नहीं संभाल पाया.'
'लेकिन भगवान की दया से हमने बाकी रस्सी देखी और वो काम कर गई. हमें लेकिन उसके लिए कोई जल्लाद नहीं मिल रहा था. हमारे पास बस ऑफिसर और सिपाही थे. मैं सुबह अफजल गुरु के पास पहुंचा, तो उसे लगा कि आज कुछ खास होने वाला है. वो पूछते कि आज सर फांसी दे रहे हैं. मैंने पूछा कैसे, तो वो कहता कि रात को पहले तो आपके दर्शन हुए और दूसरा मुझे रात को ही अलग सेल में रखा गया सिपाहियों की निगरानी में. कानून कहता है कि फांसी से 24 घंटे पहले आप कैदी को निगरानी में रखेंगे. मैंने कहा उन्हें कि हां हम फांसी दे रहे हैं. पहले उसने सभी के साथ चाय पी' सुनील गुप्ता ने बताया.
'अफजल गुरु मेरी आंखों में देखता रहा, मैं घर पहुंचते ही रोने लगा था'
सुनील गुप्ता ने आगे कहा, 'उसने मुझे कहा कि सर मैं आतंकवादी नहीं हूं, अगर मैं होता तो मैं अपने बच्चे को डॉक्टर नहीं बनाता. वो अपनी सफाई देने लगा, मैंने उसे कहा कि अब कोई फायदा नहीं. फिर मैंने पूछा कि तुम अपने घरवालों को कुछ कहना चाहते हो? मैंने कहा कि तुम लिखकर दे दो कुछ. वो इतना अच्छा था कि उसने लिखकर मुझे दे दिया. उसने अपनी पत्नी को लिखा कि जो अब भगवान की मर्जी है, मैं हमेशा के लिए जा रहा हूं. आप बेटे की पढ़ाई पूरी कराना और सभी को कहना कि वहां शांति बनाए रखें. उसने मुझे कहा कि मैं चाहता हूं कि जब मुझे फांसी दी जाए, मैं आपकी आंखों में देखता रहूं. क्योंकि मुझे आपकी आंखों में काफी दया दिख रही है.'
'मैंने कहा कि जब तुम्हें फांसी दी जाएगी, तब मुंह पर काला कपड़ा पहनाया जाएगा. उसने कहा कि मैं जबतक फांसी की तरफ जाता रहूंगा, तबतक मैं आपकी आंखों में देखता रहूंगा. फिर उसने संजीव कुमार की एक फिल्म का गाना गाया जो देशभक्ति पर लिखा हुआ था. हम सभी उसके साथ वो गाना गाने लगे. फिर हम उसे फांसी के फंदे पर लेकर गए, हम सभी वहां खड़े थे. जबतक वो जा रहा था, मेरी आंखों में देख रहा था. और फिर उसे फांसी लगाई गई. हम दो घंटे बाद डॉक्टर को बुलाते हैं कि इंसान मरा है या नहीं. हमें हुकुम था कि उसके शरीर को जेल में ही दफनाना है. अफजल गुरु को उनके मेंटर मोहम्मद मक्बूल भट के साथ ही हमने दफनाया था जिसकी फांसी मैंने देखी थी.'
'फिर मैं अपने घर गया, और मैंने उन्हें इसके बारे में नहीं बताया था कि मैं फांसी के लिए जा रहा हूं. मैं घर पहुंचा और मुझे उसकी वही बात याद आ रही थी कि मुझे आपकी आंखों में दया दिख रही है. एक जेलर इंसान होता है, कुछ पलों के बाद जब वो इंसान आपकी आंखों के सामने नहीं होता तो दुख तो होता है. तो मेरा दिल भरा हुआ था. मेरी बेटी और पत्नी थी वहां और मैं गले लगकर बड़ी देर तक रोता रहा उसके बारे में सोच-सोचकर.'
डायरेक्टर विक्रमादित्य मोटवाने की बनाई 'ब्लैक वारंट' 10 जनवरी को नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम होगी.