
जावेद अख्तर को दुनिया आज हिंदी फिल्मों के एक लेजेंड राइटर के तौर पर जानती है, मगर फिल्म इंडस्ट्री में उनके स्ट्रगल की कहानी बहुत लोगों को नहीं पता होती. एक नए इंटरव्यू में जावेद ने मुंबई की सड़कों पर भटकने की कहानी बताई. उन्होंने कहा कि अक्सर कई-कई दिन उन्होंने खाना नहीं खाया.
जावेद ने बताया कि अगर आदमी ज्यादा दिन भूखा रहे तो एक हद के बाद उसमें और जानवर में कोई फर्क नहीं रह जाता. जावेद साहब ने कहा कि आज वो अक्सर अपने सामने लगे व्यंजन देखते हैं तो सोचते हैं कि इसमें से एक भी आइटम अगर उन्हें तब मिल जाता जब वो भूखे थे तो कितनी मदद हो जाती.
जिंदगी के शुक्रगुजार हैं जावेद अख्तर
जावेद अख्तर ने एक इंटरव्यू में बताया कि अपने पिता के साथ उनके संबंध बहुत अच्छे नहीं थे और उन्हें घर से निकाल दिया गया था. 19 साल की उम्र में वो मुंबई की सड़कों पर भटकने के लिए मजबूर हो गए थे. जब जावेद से पूछा गया कि क्या उन्हें वो दौर याद है, तो उन्होंने कहा, 'मुझे सबकुछ बड़ी बारीकी से याद है. मैं जिंदगी का बहुत शुक्रगुजार हूं और उदास होने की बजाय या फिर पीड़ित या सताया हुआ महसूस करने की बजाय, मैं जिंदगी का बहुत शुक्रिया अदा करता हूं.'
उन्होंने बताया कि वो समंदर के किनारे रहते हैं और उनकी खिडकियों से सिर्फ दरिया ही दिखता है. और अक्सर सुबह जब उनके सामने ट्राली में नाश्ता आता है तो उन्हें लगता है कि वो किसी 'ड्रामा' का हिस्सा हैं और ये सब उनका नहीं है. जावेद ने कहा, 'और मैं जिंदगी को शुक्रिया कहता हूं. देखिए! मेरे पास कितना खाना है, मैं खा सकता हूं. मैं कई बार अपने डाइनिंग टेबल पर बैठता हूं, खाना खत्म करने के बाद सोचता हूं, अभी भी कितना खाना बचा है. और लगता है कि उस रात जब मैं भूखा था तब मुझे एक डिश, एक दाल या वो सब्जी मिल जाती तो मैं कितना एन्जॉय करता.'
इस बारे में आगे बात करते हुए जावेद अख्तर इमोशनल हो गए. भरी हुई आंखों के साथ उन्होंने अपने पिछले दिन याद किए और बोले, 'एक तरफ तो मुझे वो मुश्किल दिन याद रहते हैं, मगर दूसरी तरफ मैं बहुत शुकिया अदा करता हूं क्योंकि करोड़ों ऐसे लोग रहे होंगे जिन्होंने वैसी मुश्किलें झेलीं जैसी मैंने झेलीं, लेकिन उन्हें इसके लिए कोई रिवार्ड नहीं मिला.'
तीन दिन बाद सिर्फ खाना याद रहता है, पिता नहीं
जावेद ने बताया कि वो अक्सर कई दिन तक भूखे रहते थे. जब उनसे पूछा गया कि ऐसे में वो क्या करते थे? तो उन्होंने हंसते हुए कहा, 'जब आप कुछ नहीं खाते, तब आप कुछ नहीं करते, क्योंकि आप कर ही नहीं सकते. असल में ये बहुत दिलचस्प है. मान लीजिए आपने सुबह से कुछ नहीं खाया और आप किसी के घर गए. वो डाइनिंग टेबल पर बैठे हैं और कहते हैं- आइए खाना खा लीजिए. और कितनी बार अपने आप ये हुआ है कि मैंने कहा- नहीं खाकर आया हूं. अगर उन्हें पता चलता कि मैं भूख से मर रहा हूं तो बहुत शर्मिंदा होते.'
जावेद अख्तर ने कहा कि अब वो अपने दोस्तों के घरों में जाते हैं तो हक से खाना मांग लेते हैं, लेकिन तब वो खाने से इनकार करने के लिए खुद पर बहुत गुस्सा होते थे. उन्होंने बताया, 'दो-तीन मोमेंट्स ऐसे हुए जिन्होंने मुझे बुरी तरह ट्रॉमा दिया, वो ट्रॉमा मेरे साथ ही है. दो-तीन दिन भूखे रहना ट्रॉमेटिक होता है. तीसरे दिन से आदमी और कुत्ते में कुछ फर्क नहीं रह जाता. आपका सारा सम्मान, सारा आत्मसम्मान, सब बहुत खोखला हो जाता है. आपको सिर्फ एक बात याद रहती है कि आप भूखे हैं.'
जब उनसे पूछा गया कि उन्हें किस बात से ज्यादा दुख होता था? इस बात से कि खाना नहीं खाया या इस बात से कि उनके पिता जीवित हैं और उनकी मदद नहीं कर रहे? जावेद अख्तर ने हंसते हुए कहा, 'तीसरे दिन, आपको अपने पिता नहीं याद रहते सिर्फ खाना याद रहता है.'