
इंडिया टुडे कॉनक्लेव साउथ 2021 के पहले दिन पैनलिस्ट लक्ष्मी मंछु, लक्ष्मी रामकृष्णन, चेतन कुमार और पू को सरवनन ने कुछ बहुत रोचक और दमदार पॉइंट पेश किए. इन चारों पैनलिस्ट ने सोशल डिसकोर्स (Social Discourse: Light, Camera, Action: Giving a Political Performance) के मुद्दे पर अपने विचार रखे. चेतन, लक्ष्मी मंछु, लक्ष्मी रामकृष्णन और सरवनन ने बताया कि किस तरह अपने स्ट्रॉन्ग ओपिनियन के लिए उन्हें आलोचना का सामना करना पड़ता है और किस तरह उन्हें इसकी कीमत चुकानी पड़ी है.
मुखर होकर बोलने की चुकानी पड़ी कीमत
कन्नड़ अभिनेता और एक्टिविस्ट चेतन कुमार ने कहा, "जब हम बोलते हैं तो हमें व्यावसायिक नुकसान उठाने पड़ते हैं. मुझे लगता है कि भारत में कला और राजनीति आपस गुंथे हुए हैं. वे बुनियादी रूप से जुड़े हुए हैं. चलिए कला और राजनीति की परिभाषाओं पर गौर करते हैं. राजनीति की बात करें तो इसे चुनाव या पावर आधारित नहीं होना चाहिए. ये लोगों से आपके जुड़ाव के बारे में है. फिल्म इंडस्ट्री में हैरार्की का ढांचा भी राजनैतिक है.
हमें राजनीति जॉइन करने या किसी भी एक आइडियॉलजी पर कूद पड़ने की जरूरत नहीं है. देवदासी सिस्टम में, दलित और हाशिए पर धकेल दी गई महिलाएं शोषित होती हैं. ये कला और राजनीति कि बातें हैं. अपने विचार व्यक्त करते हुए एक्ट्रेस और प्रोड्यूसर लक्ष्मी मंछु ने कहा, "मुझे लगता है कि हमें जीवन के हर हिस्से में सुधार की जरूरत है. मैं फिल्म इंडस्ट्री में ही पली-बढ़ी हूं. मेरे पिता (मोहन बाबू) एक असिस्टेंट डायरेक्टर थे और स्कूल में एक ड्रिलमास्टर थे."
"उन्होंने अपने जीवन की शुरुआत इसी तरह से की. जब वह अपने करियर में काफी बेहतर कर गए तो उन्होंने अपने गांव में सड़क बनवाई. उन्होंने हमारे लिए रास्ता बनाया. हमें अब भी वो इंडस्ट्री देखने की जरूरत है जो पूरी तरह परफेक्ट हो. हमने बहुत सारी यूनियन बनाई हुई हैं. महिला ग्रुप भी हैं ताकि लोग हम तक पहुंच सकें और हमें मिलकर बता सकें कि किस तरह हम चीजों को बेहतर बना सकते हैं. हमने कुछ चीजों के लिए कदम बढ़ाए हैं. मैं कहूंगी कि खुद अपने युद्धों का चुनाव करो. सरकार के पीछे दौड़ना आपको दिक्कत देगा."
मंछु ने कहा, "जब वो (कलाकार) आगे आकर बोलते हैं, तो उन्हें बहिष्कृत किया जाता है. हमने हैदराबाद में बहुत से ग्रुप बनाए हैं ताकि बातचीत खुलकर हो सके. यहां तक कि चेंजिंग रूम के मामले में मुझे लगता है कि हम बेहतर कर सकते हैं. हम एक खराब चीज के लिए ढेरों चीजों को नजरअंदाज नहीं कर सकते. क्योंकि हमारे पास एक मंच है तो हम हर चीज के बारे में बोलते नहीं रह सकते हैं. अगर कुछ भी कला से संबंधित है तो इसके लिए लड़िए. सरकार को करने दीजिए अपना काम."
अपने NGO की बात करूं तो, मैं सरकार के साथ मिलकर काम करता हूं और इसे पूरा करता हूं. मैं इसलिए एक्टिंग और प्रोडक्शन नहीं छोड़ सकता हूं क्योंकि राजनीति इसे प्रभावित करती है. हम इसकी प्राथमिक सीमा पर रहे हैं. आंध्र प्रदेश और तेलंगाना जब अलग हुए तो हमें घेरा गया क्योंकि हम एक पक्ष का समर्थन कर रहे थे. तो मैं इस चीज का चुनाव करता हूं कि कौन का युद्ध चुनना है."
इसी तरह के विचारों को का समर्थन करते हुए, अभिनेत्री और फिल्म निर्माता लक्ष्मी रामकृष्णन ने कहा, "अपनी लड़ाइयों का चुनाव आप तब करते हैं जब आप विकसित होते हैं. कलाकार होने के नाते, आप सहजता से प्रतिक्रिया देते हैं और इसके बारे में बात करते हैं. आप निश्चित रूप से इसकी एक कीमत चुकाते हैं. लेकिन, ऐसा तब होता है जब आपका व्यक्तित्व बाहर आता है. कौन सी लड़ाई लड़नी है ये उस बात पर निर्भर करता है कि आप कैसे व्यक्ति हैं. कला और राजनीति को अलग-अलग रखना जरूरी है. कॉलीवुड में बहुत से नेता हैं. एक नेता होने के लिए, आपको आउट-ऑफ-द-बॉक्स सोचने की जरूरत होती है. आपको नई चीजें जोड़ने की जरूरत पड़ती है. लेकिन, क्या वह एक अच्छा नेता बनने के लिए ये काफी है?"
उन्होंने कहा कि एक राजनेता होने के लिए लोगों को एक अलग कौशल की जरूरत होती है. उन्होंने कहा, "यदि आप सिनेमा में हैं, तो यह राजनीति में आपको एक जम्पस्टार्ट देता है. लोगों को जमीनी स्तर पर लोगों की दिक्कतों के बारे में जानना जरूरी है. ऊपर से खेल को देखना और उंगलियां उठाना बहुत आसान होता है. सरकारी काम को सर्वोत्तम तरीके से करना आवश्यक है. उंगलियां उठाना ठीक चीज नहीं है. यह प्रगति को रोक देगा. जब आप बोलते हैं तो नतीजे के बारे में चिंता न करें. एक अभिनेता के रूप में, आपकी जिम्मेदारी आपकी परफॉर्मेंस को लेकर है. एक स्टार के रूप में, आपकी भूमिका विकसित होती है और व्यक्ति के ऊपर बोलना है. आने वाले नतीजों के लिए तैयार रहें."
हालांकि लेखक पू को सरवननन ने इस विचार को खारिज कर दिया कि तमिलनाडु में लोग कलाकारों को देवी-देवताओं के रूप में नहीं देखते हैं. उन्होंने कहा, "उन दिनों, सिनेमा एक उपकरण के रूप में उपयोग किया जाता था. यहां तक कि द्रविड़ियन आंदोलन के दौरान, उनकी अपनी विचारधाराएं थीं. उन्होंने अपनी करिश्माई ताकत से लोगों को नहीं लुभाया. उनकी फिल्मों में एक अंतर्निहित सामाजिक न्याय था."
यह पूछे जाने पर कि क्या कमल हासन चुनाव जीतेंगे. सरवनन ने कहा, "वह लहरों का निर्माण कर रहे हैं. ईमानदारी से कहूं तो कमल हासन तमिलनाडु में अच्छा प्रदर्शन नहीं करेंगे क्योंकि कोई वैचारिक आधार नहीं है. आप सिर्फ राजनीति में आकर ये नहीं कह सकते कि कि आपके पास चार्म है और इसके लिए लोग आपको वोट दें. तमिलनाडु के लोग वोट नहीं देंगे."
चार्म और दादागिरी के साथ अपनी बात कहना
अपनी बात रखने के लिए आलोचना का सामना करने के बारे में चेतन ने कहा, "कलाकारों को नहीं बोलना चाहिए क्योंकि वो खुद गलत हैं. आप यौन उत्पीड़न, स्टार वार्स के बारे में बोल सकते हैं. जितना अधिक आप उनसे [फैन्स से] प्राप्त करते हैं, आपके पास उतनी ही ज्यादा जिम्मेदारी बढ़ जाती है. सिस्टम के अन्याय से सितारों को फायदा होता है. उसके दम पर आप जो चाहते हैं उसके लिए और लीड कास्ट बनने के लिए लड़ सकते हैं. रचनात्मक सफलता का मुख्य कलाकारों के साथ बहुत कम संबंध होता है. केवल सितारों को ही सफलता का अधिक लाभ मिलता है. जितना अधिक आपको फायदा मिलेगा उतना ही आपको उसे लौटाना भी होगा. कोई सच्चा कलाकार तब है जब आपको फैन्स के बीच अधिक सम्मान मिलता है. आप अपनी फिल्मों के लिए सम्मानित नहीं हैं, आप अपने द्वारा निभाए जाने वाले किरदारों के लिए सम्मानित हैं. मैं 15 साल से सिनेमा में हूं. सालों से, लेकिन एक भी फिल्म ने बुनियादी बदलाव नहीं किया है. इसलिए, सड़कों पर उतरें और संघर्ष करें."