Advertisement

करण जौहर की 'रॉकी और रानी' की वो 5 बातें, जिसने पॉपुलर हिंदी सिनेमा का लेवल बढ़ा दिया

करण जौहर की फिल्म 'रॉकी और रानी की प्रेम कहानी' ऊपर से एक टिपिकल बॉलीवुड एंटरटेनर लगती है. लेकिन अपने ट्रेडमार्क चमक-दमक वाले सेटअप के अंदर करण ने कई ऐसी चीजें बदल दी हैं, जो पॉपुलर बॉलीवुड फिल्मों में बहुत कम देखने को मिलता है. इस फिल्म में करण ने पॉपुलर हिंदी फिल्म जॉनर के कई टिपिकल आईडिया तोड़ दिए हैं. आइए बताते हैं कैसे.

करण जौहर, रणवीर सिंह, आलिया भट्ट करण जौहर, रणवीर सिंह, आलिया भट्ट
सुबोध मिश्रा
  • नई दिल्ली ,
  • 05 अगस्त 2023,
  • अपडेटेड 9:17 AM IST

फिल्मों में अंतिम संस्कार के सीन भी अपने आप में बहुत दिलचस्प होते हैं. किसी महत्वपूर्ण किरदार को आखिरी विदाई देने वाला इमोशनल सीन, अक्सर कहानी में किसी बड़े बदलाव का एक सेटअप होता है. ये कहना गलत नहीं होगा कि बहुत लोगों ने तो फिल्मों से देखकर ये सीखा है कि अंतिम संस्कार पर सफेद कपडे पहने जाते हैं.

'रॉकी और रानी की प्रेम कहानी' में भी ऐसा एक सीन है. इस अंतिम संस्कार के सीन में जितने लोग आपको स्क्रीन पर दिखेंगे, वो सफेद कपड़ों में तो हैं. मगर उनके कपड़ों में इतने करीने से कढ़ाई और कारीगरी है कि अंतिम संस्कार जैसा सीन देखते हुए भी आप इन डिजाइन्स की खूबसूरती पर ध्यान देने से खुद को नहीं रोक पाएंगे. डायरेक्टर करण जौहर के फिल्म स्टाइल का इससे बेहतर नमूना और कुछ नहीं हो सकता! 

Advertisement

टीजर, ट्रेलर, गाने और प्रोमो वीडियोज से ही ये साफ था कि 'रॉकी और रानी की प्रेम कहानी' एक टिपिकल करण जौहर फिल्म है. जहां सबकुछ सपनों जैसा सुंदर होगा, यहां तक कि अंतिम संस्कार भी. महंगे सेट्स, चमक-दमक भरे कपड़े, खूबसूरत डांस और शानदार गानों वाली बॉलीवुड एंटरटेनर फिल्में करण का ट्रेडमार्क है. 'रॉकी और रानी की प्रेम कहानी' भी इस पैमाने पर पूरी तरह खरी है. लेकिन फिल्म की चमक-दमक को कुरेदने के बाद, कहानी का जो दिल मिलता है वो कमाल का है. 

'रॉकी और रानी की प्रेम कहानी' में आलिया भट्ट, रणवीर सिंह (क्रेडिट: सोशल मीडिया)

करण की फिल्मों में फीमेल किरदार जितने दमदार होते हैं, उनकी झलक हम उनकी पिछली फिल्मों में देखते रहे हैं. हालांकि, इसके बावजूद करण की फिल्मों पर प्रोग्रेसिव न होने का एक आरोप लगता रहा है. बॉलीवुड स्टाइल की पक्की वाली रोमांस-ड्रामा फिल्में बड़े पर्दे पर एक फ़ॉर्मूला एंटरटेनमेंट क्रिएट करने पर जोर देती हैं, जिसमें प्रोग्रेसिव आईडिया और बदलाव की बातें रखने का स्कोप थोड़ा कम हो जाता है.

Advertisement

इस तरह के बदलाव जाने का जिम्मा, बॉलीवुड की दूसरी साइड पर रहता है जिन्हें एक ब्रैकेट में रखकर 'कंटेंट वाली फिल्में' कह दिया जाता है. मगर 'रॉकी और रानी की प्रेम कहानी' में करण ने पॉपुलर हिंदी फिल्म सिनेमा का सारा स्वाद बचाते हुए भी, प्रोग्रेसिव आईडियाज को जितने प्यार मिक्स किया है, वो अपने आप में एक कमाल की चीज है. आइए बताते हैं कैसे...

लड़की का गुस्सैल बाप
हिंदी सिनेमा की बड़ी-बड़ी यादगार लव स्टोरीज में, लड़की के पिता का खड़ूस बनकर टांग अड़ाना, कहानी का एक सेट फ्रेम सा बन चुका है. शाहरुख खान की 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' में सिमरन के बाऊजी, चौधरी बलदेव सिंह तो सबके दिमाग में बसे ही हैं. लेकिन इस लाइन पर कई लव स्टोरीज में पंगे हुए हैं. बॉलीवुड की सबसे आइकॉनिक लव स्टोरीज में शामिल 'वीर जारा' और 'गदर' में भी हिरोइन के पिता ही 'प्यार का दुश्मन' मोड में थे. 'हीरो नंबर 1' में जहां हिरोइन के पिताजी नहीं थे, वहां ये जिम्मा मीना (करिश्मा कपूर) के दादाजी (परेश रावल) ने अपने कंधों पर लिया था. 'जब वी मेट' में जहां गीत (करीना कपूर) के पापा इस काम में थोड़ा कम एक्टिव थे, तो उसके चाचा ने पूरा मोर्चा अकेले संभाल लिया था. 

Advertisement
'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' का एक सीन (क्रेडिट: सोशल मीडिया)

'रॉकी और रानी' में करण ने इस फ्रेम को बहुत अच्छे से तोड़ा है. यहां कंजर्वेटिव, गुस्सैल पिता रॉकी (रणवीर सिंह) के हिस्से आए हैं. तिजोरी रंधावा (आमिर बशीर) ऑलमोस्ट 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' वाले बलदेव सिंह के सगे भाई लगते हैं. दोनों की आत्मा इतनी एक जैसी है कि अगर इन दोनों की औलादों में प्यार हो जाता तो शायद तीसरा विश्व युद्ध हो सकता था. 

ऐसा नहीं है कि हिंदी फिल्मों में ये पहले नहीं हुआ. आइकॉनिक लव स्टोरी 'मुग़ल-ए-आजम' को ही देख लीजिए, या फिर 'बॉबी'. खुद करण की ही फिल्म 'कभी खुशी कभी गम' में यशवर्धन रायचंद (अमिताभ बच्चन) अपने बेटे राहुल (शाहरुख खान) की मुहब्बत से खफा हैं. लेकिन शायद रियलिटी से इंस्पायर होकर फिल्मों में भी इज्जत और पगड़ी का सारा बोझ लड़की के पिता के सर पर ही धर दिया गया.

नतीजतन, लव स्टोरीज में लड़की के पिता (या परिवार) ने जितना खड़ूस बर्ताव किया है, उस टक्कर के खड़ूस लड़कों के पिता कम ही नजर आए. यहां बात का मतलब ये नहीं है कि फिल्मों में कभी भी ऐसा नहीं हुआ. हुआ बिल्कुल है, जैसे 'इश्क' में अजय (अजय देवगन) के पिता जैसे षड्यंत्र रचने का दम तो शायद 'टीवी सीरियल की सास' वाले किरदारों में भी नहीं है. 

Advertisement
'रॉकी और रानी की प्रेम कहानी' में आमिर बशीर (क्रेडिट: सोशल मीडिया)

पॉपुलर सिनेमा की मेमोरी में आपको 'मुग़ल-ए-आजम' के बादशाह अकबर जैसा, लड़के के पिता का किरदार कम ही मिलेगा. लेकिन 'रॉकी और रानी' में तिजोरी का किरदार अपने खुद के दिमाग में बादशाह अकबर से कम नहीं है. 

डोले वाले लड़के का 'डोला रे डोला' डांस 
संजय लीला भंसाली ने 'देवदास' में माधुरी दीक्षित और ऐश्वर्या को एक ऐसा गाना दिया जो ग्रैंड-बॉलीवुड-डांस की उम्दा मिसाल है. 'डोला रे डोला' गाना, अपने टाइप का इतना बड़ा आइकॉन है कि भंसाली खुद 'बाजीराव' के 'पिंगा' से उसे मैच नहीं कर पाए. 'डोला रे डोला' में दो महिलाएं, एक ही पुरुष के लिए एक तरह का कॉम्पिटीशन कर रही हैं.  

हमारे समाज में जहां एक कुर्ता, महिलाओं के शरीर पर जाते ही 'कुर्ती' कहलाने लग जाता हो, वहां लोगों भला किस चीज का जेंडर नहीं तय कर रखा होगा. तो हमारे यहां बहुत सारे लोगों के दिमाग में  डांस भी लड़कों वाला-लड़कियों वाला बन चुका है, भले अपने यहां बिरजू महाराज 'कथक सम्राट' रह चुके हों. ऐसे में 'डोला रे डोला' गाना अपने आप में फेमिनिन गुणों का इतना तगड़ा सिंबल बन गया कि 'मुन्नाभाई एमबीबीस' में इस गाने पर लड़कों को नचाना, उन्हें बुली करने का तरीका है. फिल्मों में ही नहीं, रियल लाइफ में भी 'डोला रे डोला' को, डांस में दिलचस्पी रखने वाले लड़कों पर हमेशा व्यंग्य की तरह ही इस्तेमाल किया जाता है. 

Advertisement
क्रेडिट: सोशल मीडिया

'रॉकी और रानी' में करण ने दो पुरुषों को इस गाने पर डांस करवाया है, ये शायद आपको पता लग ही गया होगा. लेकिन यहां सबसे कमाल की बात है इस गाने का ट्रीटमेंट. चंदन चैटर्जी (तोता रॉय चौधरी) अपनी बेटी रानी के बॉयफ्रेंड, रॉकी के साथ 'डोला रे डोला' पर डांस कर रहे हैं. वही जिम-बॉय रॉकी, जिसके बारे में रानी का ख्याल था कि उसके अंदर डांस करने जितनी लचक ही नहीं होगी. और ये डांस किसी पैरोडी की तरह ट्रीट नहीं हुआ है. होने वाले ससुर-दामाद की इस जोड़ी की अपनी एक अलग केमिस्ट्री है. 

पंजाबी घर में महिला सरदार
जैसे बॉलीवुड लव स्टोरी में खड़ूस पेरेंट के नाम पर 'लड़की का बाप' एक स्टीरियोटाइप है. ऐसे ही, ऑनस्क्रीन पंजाबी फैमिली के हेड के नाम पर सबसे पहले तो 'बाऊजी' या 'दार जी' ( यानी दादाजी, जैसे 'जब वी मेट') याद आते हैं. कुछेक जगह 'बीजी' (दादी) भी होती हैं, जैसे 'सन ऑफ सरदार' में. लेकिन अगर स्क्रीन पर पंजाबी परिवार की हेड कोई महिला भी दिखी है, तो उसे नौकरी या बिजनेस करते कम ही दिखाया गया है. 

क्रेडिट: सोशल मीडिया

'रॉकी और रानी' में जया बच्चन का किरदार, धनलक्ष्मी रंधावा अपने कंजर्वेटिव आईडिया के साथ ही पूरे परिवार को बांधे हुए है. लेकिन इस महिला ने अपना एक पूरा बिजनेस खड़ा किया है. वो अपने ही पति को, अपने बेटे से दूर रखती है, ताकि वो एक प्रॉपर घर का सरदार 'मर्द' बने और कविता-शायरी जैसी 'बेहूदा' हरकतें न करे, जो उसका पति करता था. रॉकी और उसके परिवार की लाइफ में सबसे अक्खड़ प्रेजेंस धनलक्ष्मी की ही है. रॉकी की दादी के दिल में नरमाई का एक कण नहीं है. 

Advertisement

एक ऐतिहासिक लाइन 
'रॉकी और रानी की प्रेम कहानी' में सारा कनफ्लिक्ट जब सुलझने की तरफ है. तब रॉकी के पापा, तिजोरी जी, रानी के घर पर हैं. और वो रानी के परिवार के आगे कहते हैं- 'मैं चाहता हूं कि रॉकी आपका ही दामाद बने'. सिनेमा के सेट पैटर्न आपके दिमाग में कैसे फिट हो जाते हैं, ये जानने के लिए उदाहरणों से ज्यादा, अपनी मेमोरी पर भरोसा करना ठीक रहता है. पॉपुलर हिंदी फिल्मों में ऐसी सिचुएशन खूब देखी गई हैं जब लड़की के परिवार से कोई, लड़के वालों से कह रहा हो कि 'हम चाहते हैं हमारी बेटी आपके ही घर की बहू बने.' जबकि 'रॉकी और रानी की प्रेम कहानी' में ये लाइन ठीक उलट है. 

इस एक लाइन का सारा मतलब पावर गेम में छिपा है. रॉकी के पापा जब, रानी के पापा के आगे ये लाइन कहते हैं तो पहले एक छोटी सी बात और जोड़ते हैं- 'अगर आपको और रानी को मंजूर हो.' ये लाइन अपने आप में एक बहुत बड़ा चेंज है. यहां लड़के का पिता, लड़की और लड़की के परिवार को चुनने का एक मौका दे रहा है. ये वही पिता है जो थोड़ी देर पहले अपने बेटे को कह रहा था कि वो लड़की के पेरेंट्स के 'हाथ की कठपुतली' बन गया है. 

Advertisement
क्रेडिट: सोशल मीडिया

तिजोरी रंधावा का ये कैरेक्टर आर्क बहुत इम्पोर्टेन्ट मैसेज है. अभी तक लड़के वालों का खुद को, लड़की वालों से ऊपर समझना हमारे समाज में बदस्तूर जारी है. ये 'मर्दानगी' के उस खोखले वर्जन का एक और सैंपल है, जो न जाने कितने अपराधों की भी वजह बनता है. एक निहायत पत्थर दिल मर्द से, प्यार में पड़े बेटे का पिता महसूस करने तक, तिजोरी रंधावा का ये ट्रांजीशन एक खूबसूरत सिनेमेटिक बदलाव है.

बदलती नजर का खेल 
जिम में खुद को घिसकर शानदार बॉडी गढ़ना, तमाम महंगे इंटरनेशनल ब्रांड्स के कपड़े पहनना. फरारी में घूमना, अश्लीलता की हद तक पैसों बहाना और दुनिया जहान की कोई खबर न होना. इस तरह के किरदार फिल्मों में 'बड़े बाप का बिगड़ा हुआ बेटा' स्टीरियोटाइप में बंध चुके हैं. न्यूज चैनल में काम करने वाली रानी के ऑफिस में जब रॉकी पहली बार पहुंचता है, तो चैनल का एक जूनियर कहता है- 'मैडम आपने लोन लिया था क्या, रिकवरी वाले आए हैं.'

आलिया की नजर तो रॉकी की बॉडी पर पड़ती है, लेकिन उसे खुद अपने आप पर ये यकीन करने में डर लगता है कि ऐसे लड़के से उसे कैसे प्यार हो सकता है. ऐसा लड़का मतलब, जिसे खुद उसका पिता ही 'बॉलीवुड का आइटम बॉय' कहता है. रानी की मां जो इंग्लिश की प्रोफेसर है, वो रॉकी की देसी बोली और टूटी-फूटी अंग्रेजी के लिए रिजेक्ट करती रहती है. 

'रॉकी और रानी की प्रेम कहानी' में रणवीर सिंह (क्रेडिट: सोशल मीडिया)

रॉकी खुद एक बड़े पर्दे पर ऐसी कई कमियों का एक नमूना है, जिन्हें पढ़ा-लिखा इंटेलेक्चुअल समाज रिजेक्ट करता है. उनसे ये मिनिमम सिम्पैथी भी नहीं दिखाई जाती कि वो जैसे भी हैं अपने कल्चर के ही देन हैं. शुरुआत के सीन्स में रानी, अपने आप पर व्यंग्य में हंसती लगती है कि उसे 'रॉकी जैसा' लड़का अट्रैक्टिव लग रहा है. इवोल्यूशन की थ्योरी देने वाले चार्ल्स डार्विन के नाम पर एक अंग्रेजी कहावत है-Darwin never sleeps. यानी डार्विन कभी नहीं सोता. सीधा मतलब- जीवों का इवोल्यूशन कभी नहीं रुकता. 

करण जौहर की फिल्म में जरूरत पड़ने पर रॉकी जैसा ठस-बुद्धि जीव सीख कर इवॉल्व होने के लिए तैयार है. लेकिन रानी और उसके परिवार ने अपना सोशल क्लास मेंटेन करने से आगे इवॉल्व होना बंद कर दिया है. 

ऐसा नहीं है कि हिंदी फिल्मों में ऐसे टॉपिक छुए नहीं जाते. मगर इतना जरूर है कि पॉपुलर बॉलीवुड एंटरटेनर फिल्मों से इस तरह के टिक उठाने की उम्मीद भी नहीं की जाती. 'रॉकी और रानी की प्रेम कहानी' ऊपर से उस फ़ॉर्मूला स्टाइल की फिल्म लगती है, जिसे थिएटर्स में जनता की तालियों और सीटियों के लिए बनाया गया है. लेकिन असल में इस फिल्म में बहुत कुछ ऐसा है जो फ़ॉर्मूला को तोड़ता है. इसलिए जब करण जौहर जैसा मेनस्ट्रीम डायरेक्टर, एक बिग बजट, पॉपुलर फिल्म में इस तरह का टॉपिक उठाता है. और उसे ग्रैंड सेटिंग में पूरे एंटरटेनमेंट के साथ जनता तक पहुंचाता है, तो सिनेमा एक लेवल ऊपर चला जाता है. 

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement