
सुरों की मल्लिका नहीं रहीं. लता मंगेशकर के साथ हर पीढ़ी के लोगों की भावनाएं जुड़ी थीं. सिंगर ने अपने शुरुआती जीवन में काफी संघर्ष देखा. छोटी सी उम्र में ही उन्हें परिपक्व होना पड़ा. खेलने-कूदने की उम्र में उनके ऊपर परिवार की जिम्मेदारियां थीं. मगर इस मैच्योरिटी के आने से पहले जब लता काफी छोटी थीं तब वे शरारती भी हुआ करती थीं. भले ही वो वक्त मुख्तसर सा रहा मगर उनके जेहन में उनके बचपन की यादें वृद्धावस्था में भी ताजा थीं. उन्होंने एक इंटरव्यू के दौरान एक किस्सा शेयर किया था और बताया था बचपन में उन्हें उनकी शरारतों की वजह से एक सबक मिला था.
दरअसल लता मंगेशकर बचपन में दूसरे बच्चों की तरह ही काफी जिद्दी थीं. वे कई सारी फरमाइशें किया करतीं और अगर उनकी कोई फरमाइश अधूरी रह जाती तो वे खफा हो जातीं. कई बार तो ऐसा भी होता कि वे सभी से रूठ कर दूर जाने लगतीं. वे अपना सामान एक गठरी में बांध घर से बाहर निकल जातीं. उनके घरवाले उन्हें पुकारते रहते मगर वे पीछे मुड़कर नहीं देखतीं. इसके बाद कोई ना कोई भागकर जाता और लता जी को गोदी में उठा वापस घर ले आता. साथ ही उनकी इच्छा भी पूरी कर दी जाती.
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घरवालों ने सिखाया सबक
कई बार ऐसा हुआ. मगर एक बार कुछ ऐसा हुआ जिसने छोटी उम्र में लता जी को परिवार की महत्ता का एहसास दिलाया. सीन वही था. लता किसी इच्छा के पूरा ना होने पर घर छोड़कर जा रही थीं. हर बार तो उन्हें कोई ना कोई आवाज देकर पुकारता था. मगर इस बार किसी ने नहीं पुकारा. घरवालों ने भी इस बार ठान लिया था कि लता को सबक सिखाना जरूरी है.
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जब लता चलते-चलते काफी आगे बढ़ गईं और उन्होंने घरवालों की कोई आवाज नहीं सुनी तो उनके कदम धीमे पड़ने लगे. नन्हीं लता को अकेलेपन का डर सताने लगा. घर पीछे छूट रहा था और नन्हीं लता को नहीं पता था कि वे कहां जा रही हैं. वो कुछ दूर ठहरीं और फिर रोने लगीं. तेज-तेज से चिल्लाने लगीं. तब वहां पर दूर खड़े उनके पिता भागते हुए उनके पास गए और उन्हें उठा कर घर वापस ले आए. ये वो दिन था जब लता को एहसास हुआ कि परिवार कितना जरूरी है. फिर कभी लता ने किसी चीज के लिए जिद नहीं की.